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त्रिपुरा जलते हुए देखो पर मुंह न खोलो !

 







अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में त्रिपुरा में एक रैली निकाली गयी. रैली में उग्र सांप्रदायिक नारे, जो नारे की शक्ल में गाली-गलौच जैसे थे, लगाए गए. यूं कहा तो गया कि रैली बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुई हिंसा के खिलाफ थी. लेकिन हिंसा का विरोध करने के नाम पर हुई रैली के जरिये उत्तर त्रिपुरा के पानीसागर इलाके में हिंसा का तांडव किया गया.  मस्जिद, दुकाने और घर, इस हिंसा का निशाना बने. हिंसा के तथाकथित विरोध के नाम पर यह हिंसक रैली विश्व हिन्दू परिषद द्वारा आयोजित की गयी थी.


अंग्रेजी न्यूज़ पोर्टल- द वायर में छपी रिपोर्ट के अनुसार त्रिपुरा के अपर पुलिस महानिरीक्षक सुब्रत चक्रवर्ती ने उक्त हिंसा की बात स्वीकार की थी.


उक्त हिंसा और भड़काऊ सांप्रदायिक नारे लगाने वालों पर क्या कार्यवाही हुई यह तो पता नहीं परंतु इस हिंसा के वास्तविक तथ्य जानने और सोशल मीडिया पर हिंसा की निंदा करने वालों पर तत्काल कार्यवाही करने के लिए त्रिपुरा पुलिस मैदान में उतर पड़ी है.


“लॉंयर्स पर डेमोक्रेसी” की ओर से त्रिपुरा में हिंसा की घटना के तथ्यों को जानने के लिए उच्चतम न्यायालय के वकीलों का दल त्रिपुरा गया. इस दल ने जो भी कहा, उसके आधार पर उक्त दल में शामिल दो अधिवक्ताओं मुकेश और अंसार इंदौरी के विरुद्ध आतंकवाद निरोधक अधिनियम (यूएपीए) के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. 







यह जैसे कुछ कम था तो त्रिपुरा पुलिस ने 102 सोशल मीडिया हैंडल्स के विरुद्ध भी यूएपीए के तहत नोटिस जारी कर दिया. पत्रकार श्याम मीरा सिंह ने ट्विटर पर – त्रिपुरा इज़ बर्निंग- लिखा तो उन्हें भी यूएपीए के तहत नोटिस भेज दिया गया.


लगता है त्रिपुरा पुलिस कानून विहीनता(lawlessness) की नई मिसाल करना चाहती है. त्रिपुरा में हुए सांप्रदायिक दंगे के खिलाफ लिखने,बोलने वालों पर जिस तरह से आतंकवाद निरोधक कानून थोपा जा रहा है,उसका क्या संदेश है ? क्या किसी दंगाई के विरुद्ध यूएपीए थोपा गया है ? अगर किसी दंगाई के विरुद्ध, थोड़फोड़ और आगजनी करने वाले के विरुद्ध, ऐसी संगीन धाराओं में कार्यवाही नहीं की गयी है और सिर्फ सांप्रदायिक हिंसा के विरुद्ध बोलने वालों के खिलाफ ही कार्यवाही की जा रही है तो संदेश साफ है कि दंगे और सांप्रदायिक हिंसा से कोई तकलीफ नहीं है, लेकिन उसका खुलासा किए जाने,उस पर लिखने-बोलने से भारी तकलीफ है ! और कोई त्रिपुरा के पुलिस अफसरों को न्यूनतम कानून भी समझाओ कि अपराध और सजा का अनुपात भी एक चीज है, खबर लिखना, प्रसारित करना, किसी भी रूप में आतंकी कार्यवाही नहीं है !


 

त्रिपुरा की भाजपा सरकार और उसकी पुलिस को यह समझना होगा कि अगर उसे सांप्रदायिक हिंसा की खबरों के देश-दुनिया में प्रसारित होने से तकलीफ होती है तो इन खबरों को रोकने का तरीका सांप्रदायिक हिंसा पर अंकुश लगाना है. हिंसा होगी तो उसकी खबर यूएपीए से नहीं दबाई जा सकेगी ! त्रिपुरा पुलिस भले ही यह संदेश दे रही है कि “त्रिपुरा जलते हुए देखो पर मुंह न खोलो,मुंह खोलोगे तो यूएपीए लग जाएगा.” ऐसा करके दंगाइयों की मिजाजपुर्शी तो की जा सकती है पर हकीकत नहीं छुपाई जा सकती !


-इन्द्रेश मैखुरी

 

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