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उफ़्फ़ वे हमारे गौरव हुए !

 








उत्तराखंड में अभी जो सत्ता है,वह गोधूलि की बेला में है. उसकी कोशिश है कि घोषणाओं की फुलझड़ी से जितनी चमक पैदा कर सकती है,उतनी करे ! सो राज्य स्थापना दिवस की पूर्व बेला पर यानि 08 नवंबर 2021 को वर्तमान सरकार के तीसरे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पाँच लोगों को “उत्तराखंड गौरव” घोषित किया.






जो शख्सियतें “उत्तराखंड गौरव” घोषित हुई तो उनमें एनडी तिवारी को भी मरणोपरांत गौरव घोषित कर दिया गया. उनका राजनीतिक सफरनामा दिलचस्प तो हो सकता है पर उसमें हमारे लिए गौरव जैसा क्या है ?


1994 में जब उत्तरखंडी जनमानस का बड़ा हिस्सा अलग राज्य के आंदोलन में शरीक हुआ तो एनडी तिवारी इसके विरोध में थे. चूंकि उत्तराखंड राज्य की पुरानी मांग के आंदोलन का यह दौर आरक्षण विरोध से शुरू हुआ था तो अनुसूचित जाति के लोग इस आंदोलन के प्रति शशंकित थे. उनकी शंका को वाजिब सिद्ध करने वाली कुछ घटनायें भी उस समय हुई थी. पर तिवारी जी कोई आंदोलन के  आरक्षण विरोधी पुट की वजह से तो उसके विरोधी नहीं थे. वे तो बकायदा “पंडित” नारायण दत्त तिवारी कहलाते थे !


वे प्रधानमंत्री होने की ख्वाब देखते थे. इसलिए उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का नेता बने रहना चाहते थे. 5 सांसदों का नेता होने के बनिस्बत 85 सांसदों का नेता होना उनकी प्राथमिकता थी. इस लिए उन्होंने लखनऊ में अलग राज्य के खिलाफ धरना दिया. उन्होंने बकायदा घोषणा की कि “अलग राज्य मेरी लाश पर बनेगा.” इस घोषणा को देखें तो ऐसा लगता है कि उनके राजनीतिक जीवन का यह बिरला अवसर था, जब वे रीढ़ की हड्डी का प्रदर्शन करते प्रतीत हो रहे थे !


हालांकि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2002 में पहली निर्वाचित सरकार बनी और उसके मुखिया बनने का प्रस्ताव जब उनके पास आया तो वे लपक कर मुख्यमंत्री बन गए. उस समय “अलग राज्य मेरी लाश पर बनेगा” वाले अपने गर्जन को भूल जाना ही उन्होंने श्रेयस्कर समझा ! राजनीतिक अवसरवाद की इससे बड़ी मिसाल और क्या हो सकती है कि जिस राज्य के बनने के विरुद्ध व्यक्ति लाश होने को तैयार था,उसी राज्य की गद्दी पर वह लपक कर जा बैठा !


और मुख्यमंत्री बन कर जो उन्होंने किया,वह भी गज़ब था. भ्रष्टाचार को संस्थाबद्ध करने का कौशल उनके जैसा तो किसी के पास था ही नहीं ! उन्हीं के कार्यकाल के दौरान यह कानूनी बाध्यता हुई कि केवल ग्यारह ही मंत्री बनाए जा सकते हैं. अपने मंत्रिमंडल में से कुछ मंत्री उन्होंने हटाये भी. पर उसके बाद ढाई सौ से अधिक लोगों को उन्होंने निगमों,आयोगों आदि का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष बना कर लाल बत्ती और मंत्री पद का दर्जा दे डाला. कानून की आँख में धूल झोंकने और उसकी बांह मरोड़ने की यह अभूतपूर्व मिसाल है.


पुष्कर सिंह धामी लगता है कि तिवारी जी पर कुछ ज्यादा ही फिदा हैं. बीते दिनों पंतनगर औद्योगिक आस्थान का नाम उन्होंने तिवारी जी के नाम पर करने की घोषणा की. पंतनगर के उस सिडकुल से भी तिवारी जी के विकास के मॉडल को समझ सकते हैं. जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय की हजारों एकड़ भूमि,जो कृषि शोध के उपयोग में आती थी, वह विश्वविद्यालय से छीन कर कौड़ियों के मोल उद्योगपतियों को दे दी गयी. टाटा को कार फ़ैक्ट्री लगाने के लिए पाँच रुपया वर्ग मीटर लीज़ रेंट पर जमीन दी गयी, जिसे खंडुड़ी जी के समय घटा कर दो रुपया वर्ग मीटर कर दिया गया. उद्योग लगाने वालों के लिए टैक्स हॉलीडे घोषित कर दिया गया. उसके बावजूद वहां जो लगे उनमें अधिकांश असेम्ब्लिंग प्लांट थे, जो उत्पादन कहीं और करते थे और टैक्स छूट पाने के लिए असेंबल यहाँ करते थे. और वहां काम करने वाले मजदूरों के लिए श्रम क़ानूनों की कब्रगाह है,सिडकुल. कोई श्रम कानून नहीं, बस मालिकों की मनमानी और उसके पीछे खड़ा राज्य का मजबूत तंत्र और पुलिसिया दमन.


उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से वे विरत होने के बाद वे आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बनाए गए. लेकिन वहां पहुँचते-पहुँचते वे राजनीतिक मूल्यों और सुचिता के ह्रास के न्यूनतम बिन्दु तक पहुँच चुके थे. आंध्र प्रदेश के राजभवन में खनन के ठेकों के संदर्भ में उनका एक अश्लील एमएमएस वाइरल हुआ, जिसके चलते बेआबरू हो कर वे वहां से रुखसत किए गए. 80 वर्ष से अधिक का व्यक्ति और अश्लील एमएमएस, यह सुनना और लिखना भी शर्मिंदगी भरा है.


बाकी उत्तराखंड में उनके कार्यकाल के कारनामें, जिनकी स्मृतियों में धुंधला गए हों, वे लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी का गीत “नौछ्म्मी नारेण” सुन सकते हैं. इस बात से याद आया कि नरेंद्र सिंह नेगी जी को भी एनडी तिवारी के साथ उत्तराखंड गौरव देने की घोषणा की गयी है. यह भी गजब  विद्रूप है. एनडी तिवारी भी उत्तराखंड गौरव हैं और एनडी तिवारी के राजनीतिक व्यक्तित्व के सारे दुर्गुणों को उभार कर उनकी चिंदी-चिंदी करने के लिए गीत लिखने और उस गीत को लिखने के लिए सरकारी नौकरी छोड़ने वाले नरेंद्र सिंह नेगी भी, उन्हीं तिवारी के साथ उत्तराखंड गौरव हैं !


बस इतना और कर दो धामी जी कि जब एनडी तिवारी को मरणोपरांत उत्तराखंड गौरव से नवाजा जा रहा हो तो बैकग्राउंड में “नौछ्म्मी नारेण” बजता रहे !


कुल जमा कथा यह है कि वे पहले हमारे बड़े नेता हुए, फिर वे अलग राज्य के विरोधी हुए,फिर वे उसी राज्य के मुख्यमंत्री हुए, फिर तो जो हुआ मुख्यमंत्री से राज्यपाल तक, वह सभ्य समाज में वर्णन करने योग्य नहीं है और अंततः सरकारी तौर पर उन्हें हमारा गौरव ठहरा दिया गया ! उफ़्फ़,उत्तराखंड के गौरव की ऐसी त्रासदी !


-इन्द्रेश मैखुरी

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2 Comments

  1. 'एन.डी.तिवारी का उत्तराखण्ड गौरव, बैकग्राउंड में नरेन्द्र सिंह नेगी के गीत 'नौ छमी नारायण'की धुन पर नवाज़ा जाय। क्या माँग है।

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