cover

उत्तराखंड में स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई का फरमान !

 


 




मैं कुछ दिन पहले अपने गाँव में था और आज यानि 01 जुलाई से उत्तराखंड में स्कूल शुरू होने की घोषणा सरकार ने कर दी है. बात थोड़ी अटपटे तरीके से शुरू की है. पढ़ने वाले सोचेंगे कि इन दोनों बातों का क्या कनैक्शन है ? दोनों बातों का कनैक्शन है.


गाँव में हफ्ते भर पहले प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका, हमारी एक चाची ने कहा कि अब तो स्कूल शुरू हो ही जाने चाहिए, बच्चों की पढ़ाई का बहुत नुकसान हो गया है. जब स्कूल खुलने के आदेश के बारे में मैंने सुना तो सबसे पहले उनका ही ख्याल आया.


लेकिन यह, वो कनैक्शन नहीं है, जिसकी बात इस लेख के शुरू में की गयी है. पहले-पहल जब यह खबर सुनी कि 01 जुलाई से स्कूल शुरू होंगे तो लगा कि स्कूल खुलेंगे मतलब स्कूल बच्चों से गुलजार होंगे. थोड़ी देर में आदेश पढ़ा कि ऑनलाइन पढ़ाई होगी तो समझ में आया कि उत्तराखंड शिक्षा विभाग और सरकार सिर्फ अपनी तरफ से कुछ करते हुए दिखना चाहते हैं.





तो स्कूल जो ऑनलाइन खुलने की बात से मुझे गाँव में रहने और इंटरनेट के चलने की स्पीड याद आई. इंटरनेट की गति गाँव में ऐसी थी कि छह एमबी का वीडियो व्हाट्स ऐप पर भेजने या अपलोड करने में तकरीबन डेढ़ घंटा लगा मुझे. और यह कोई एक दिन की बात नहीं है. आधे महीने से अधिक केवल टेक्स्ट ब्लॉग में अपलोड करने में पसीने छूटते रहे. कुछ खास जगहें थी, जहां पर सिग्नल की डंडियों में बढ़त दिखाई देती थी. अब ऐसे ही हाल में ऑनलाइन पढ़ाई होनी है !


ऑनलाइन पढ़ाई का आदेश देने वाले अफसरान ने माना होगा कि पढ़ने वाला और पढ़ाने वाला ऐसी जगहों पर होंगे जहां इंटरनेट की स्पीड फोर जी से कुलांचें भरती हुई फाइव जी में बस पहुँचती ही होगी !


ऑनलाइन शिक्षा के आदेश का एक और पहलू है. चूंकि यह उत्तराखंड सरकार का आदेश है तो उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों पर भी लागू होगा ही. सरकारी स्कूल में बच्चों को किताबें और ड्रेस सरकार उपलब्ध करवाती है. दोपहर का भोजन यानि मिड डे मील भी सरकार देती है. अक्सरहां पढ़ाई से ज्यादा ज़ोर मिड डे मील का रिकॉर्ड दुरुस्त करने पर रहता है.


अब किताबें, ड्रेस और मिड डे मील सरकार से पाने वाले विद्यालयों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई का फरमान है. यानि सरकारी अफसर यह मानते हैं कि विद्यार्थी किताबें नहीं खरीद सकता, ड्रेस लेने में सक्षम नहीं है, दिन का खाना भी उसे देना है, लेकिन यह सब न होने पर भी विद्यार्थी या उसके माँ-बाप स्मार्ट फोन धारी होंगे, यह गज़ब समझदारी है ! इस समझ को प्रणाम है.


-इन्द्रेश मैखुरी

Post a Comment

1 Comments

  1. सला बिरणी सगोर अपणू...नि खै जाणी क्य कन तब

    ReplyDelete