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केन्द्रीय मंत्रिमंडल फेरबदल : गवर्नमेंट फुल, गवर्नेंस गुल !

 







जून 2019 में लोकसभा में होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संशोधन) विधेयक पर चर्चा हो रही थी. थोड़ी देर होम्योपैथी पर बोलने के बाद नैनीताल के सांसद अजय भट्ट आयुर्वेद पर आए.  उसके बाद उन्होंने होम्योपैथी और आयुर्वेद दोनों को पीछे छोड़ते हुए गरुड़गंग के गंगलोडों (गंगलोड़े- नदी किनारे के चिकने पत्थरों को कहा जाता है) का महिमागान शुरू कर दिया. इस महिमगान में भट्ट जी यहाँ तक बढ़ गए कि उन्होंने सिद्ध कर दिया कि  सिजेरियन डिलिवरी का विकल्प गरुड़गंगा के गंगलोडों के घिसे हुआ पानी है .






 केंद्रीय मंत्रिमंडल फेरबदल में भट्ट जी रक्षा और पर्यटन राज्य मंत्री बनाए गए हैं.

नए स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए हैं मनसुख मांडविया. उनके मंत्री बनते ही उनके पुराने ट्वीट भी सोशल मीडिया पर घूम रहे हैं. इनमें उनकी अंग्रेजी का जबरदस्त प्रदर्शन है. अब वे अंग्रेजी दवाओं के विभाग के भी मंत्री बना दिये गए हैं. स्वतंत्रता दिवस को इंडिपेंडेंट डे और उसमें भी इंडिपेंडेंट की स्पेल्लिंग्स गलत(indipedent) लिखते हैं. 





 

महात्मा गांधी को “nation of father” लिखते हैं और उसपर तुर्रा ये कि मंत्री बनाए गए महाशय भावनगर विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र के पोस्ट ग्रेजुएट हैं ! 





यह देखना रोचक होगा कि क्या स्वास्थ्य सेवाओं का हाल भी उनके ट्वीट्स की भाषा जैसा होगा यानि हास्यास्पद !


केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस फेरबदल में दलबदलुओं पर भी खूब मेहरबानी की गयी है. कॉंग्रेस से आए ज्योतिरादित्य सिंधिया नागरिक उड्डयन मंत्री बनाए गए हैं. शिव सेना, कॉंग्रेस और फिर स्वयं की पार्टी के जरिये राजनीतिक यात्रा करने वाले महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यमों के मंत्री बनाए गए हैं. पश्चिम बंगाल में तृणमूल काँग्रेस से भाजपा में आए निशिथ प्रमाणिक गृह, खेल और युवा मामलों के राज्य मंत्री बनाए गए हैं. राष्ट्रवादी कॉंग्रेस पार्टी से आए कपिल मोरेश्वर पाटिल और किसी समय सपा में रहे एसपी सिंह बघेल भी मंत्री बनाए गए हैं. 

 

केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार से पहले 12 मंत्रियों से इस्तीफे ले लिए गए. इनमें स्वास्थ्य,पर्यावरण,कानून, सूचना, शिक्षा, रसायन जैसे प्रमुख मंत्रालयों के मंत्री हैं. 





प्रधानमंत्री का प्रशस्ति गान करते हुए कहा जा रहा है कि मंत्रियों का प्रदर्शन ही पद से हटाये जाने का आधार है. प्रश्न यह है कि जिस सरकार के सभी प्रमुख मंत्रालयों के मंत्री खराब प्रदर्शन के आधार पर हटा दिये गए हैं, वह सरकार सफल  कैसे है ? मंत्रियों को हटाया जाना तो केंद्र सरकार की विफलता की स्वीकारोक्ति है. कोरोना काल में स्वास्थ्य मंत्रालय की नाकामी पूरी दुनिया में ही चर्चा का विषय बनी. लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय की नाकामी क्या सिर्फ मंत्रालय विशेष की नाकामी है ? कोरोना की दूसरी लहर से ऐन पहले कोरोना को हराने की शेख़ी स्वास्थ्य मंत्री ने नहीं, प्रधानमंत्री ने बघारी थी.


अगर प्रदर्शन ही आधार होता तो पेट्रोल की कीमतों को आसमान पर पहुंचाने वाले धर्मेन्द्र प्रधान शिक्षा जैसा महत्वपूर्ण विभाग कैसे पाते और अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुंचाने वाली निर्मला सीतारमण वित्त मंत्री कैसे बनी रहती ?


वैसे भी मोदी मंत्रिमंडल में मंत्रियों की क्या इतनी स्वतंत्र हैसियत है कि वे स्वयं सफल या असफल हो सकें ? वह तस्वीर तो सभी ने देखी है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऊंचे मंच जैसे स्थल पर बैठे हैं और ताजा फेरबदल में मंत्रिमंडल से बाहर किए गए डॉ. हर्षवर्द्धन सावधान की मुद्रा में ऐसे खड़े हैं, जैसे फौज में कोई सिपाही अपने अफसर के सामने खड़ा होता है.




राजनीतिशास्त्र कहता है कि प्रधानमंत्री “first among equals यानि  समान दर्जे वालों में प्रथम है.  उक्त फोटो देख कर लगता है कि प्रधानमंत्री तो प्रथम हैं और  बाकी सब दोयम हैं. जब मंत्री ऐसी दोयम दर्जे की अवस्था को प्राप्त हैं तो उनका प्रदर्शन उनको रखने या हटाये जाने का आधार कैसे हो सकता है ?





मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अब केंद्र सरकार में कुल मंत्रियों की संख्या हो गयी है -77. केंद्र में कुल बनाए जाने वाले मंत्रियों की संख्या से यह मात्र तीन मंत्री कम है. रोचक यह है कि इस जंबो जेट मंत्रिमंडल में राज्य मंत्रियों की संख्या, कैबिनेट मंत्रियों से कहीं अधिक है. कैबिनेट मंत्रियों की संख्या है 30 तथा राज्य मंत्रियों की संख्या है 45 और यदि इसमें स्वतंत्र प्रभार वाले 02 राज्य मंत्रियों को भी जोड़ दिया जाये तो यह संख्या 47 हो जाएगी. राज्य मंत्रियों की यह संख्या बता रही है कि अधिकांश को सिर्फ मंत्री पद का आनंद प्रदान करने के लिए या फिर किन्हीं समीकरणों को साधने के लिए मंत्री बनाया गया है.   2014 में नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने नारा दिया था- मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस. अब गवर्नमेंट फुल है, गवर्नेंस तो लंबे अरसे से गुल  है, उसमें सुधार की कोई गुंजाइश फिलहाल तो नजर नहीं आती.


-इन्द्रेश मैखुरी

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