cover

उत्तराखंड सरकार कोरोना की तीसरी लहर का मुक़ाबला बयानों से करेगी ?

 







उत्तराखंड सरकार की तरफ से आए दिन बयान छप रहे हैं कि सरकार ने कोरोना की संभावित तीसरी लहर की तैयारी शुरू कर दी है. मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के भी इस आशय के बयान लगातार ही आ रहे हैं कि सरकार इस मामले में क्या-क्या कर रही है.





परंतु 23 जून 2021 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.एस.चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा ने अदालत में उत्तराखंड सरकार द्वारा दाखिल शपथ पत्रों के आधार पर जो टिप्पणियाँ अपने फैसले में की है, उससे लगता है कि तीसरी लहर का मुक़ाबला उत्तराखंड सरकार सिर्फ बयानों से करने का इरादा बनाए हुए है. उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ, तीसरी लहर से निपटने, उत्तराखंड में ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों और चार धाम यात्रा के सिलसिले में उत्तराखंड सरकार की तैयारियों के संबंध में दाखिल जनहित याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी. 

 

फैसले के बिल्कुल शुरुआत में ही अदालत ने लिखा कि कोरोना की तीसरी लहर से निपटने की तैयारियों के संबंध में स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी द्वारा दाखिल शपथ पत्र का एक हिस्सा हवाई (vague) है.


उच्च न्यायालय ने लिखा कि तीसरी लहर के बारे में कहा जा रहा है कि अगस्त 2021 में संभावित तीसरी लहर बच्चों को सर्वाधिक प्रभावित करेगी. इस सिलिसले में स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने अपने शपथ पत्र में राज्य सरकार द्वारा टास्क फोर्स बनाए जाने की बात कही है. स्वास्थ्य सचिव ने अदालत को बताया कि टास्क फोर्स ने बच्चों को माइक्रोन्यूट्रिएंट्स देने का सुझाव दिया है. उच्च न्यायालय ने लिखा कि ये माइक्रोन्यूट्रिएंट्स कब से दिये जाने हैं,इसके संबंध में कोई स्पष्टता नहीं है. उच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य सचिव से पूछा कि क्या ये माइक्रोन्यूट्रिएंट्स पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं तो स्वास्थ्य सचिव ने अदालत को बताया कि ये पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं और इन्हें खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है.


स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने अदालत को बताया कि माता के कोविड पॉज़िटिव होने पर छोटे बच्चे को “वेल बेबी कोविड वार्ड” (well baby covid ward) में रखने और माता के कोविड पॉज़िटिव होने और बच्चे के बीमार होने की दशा में बच्चे को “एसएनसीयू / एनआईसीयू” रखा जाएगा. उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में इंगित किया कि स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी के शपथ पत्र में यह स्पष्ट नहीं है कि कितने वेल्ल बेबी कोविड वार्ड, एसएनसीयू / एनआईसीयू बनाए गए हैं, क्या वे सभी जिला अस्पतालों में बनाए गए हैं ?


इसी तरह के चलताऊ जवाब अदालत में बच्चों को अस्पताल पहुंचाने के मामले में उत्तराखंड सरकार के स्वास्थ्य सचिव ने दिये.


उच्च न्यायालय ने लिखा कि 09 जून 2021 को अदालत ने स्वास्थ्य सचिव को राज्य में कोरोना से हुई मौतों की “डैथ ऑडिट” रिपोर्ट पेश करने को कहा था. इसके अनुपालन में जो रिपोर्ट पेश की गयी,उस पर अदालत ने असंतोष जाहिर किया. डैथ ऑडिट के संबंध में अल्मोड़ा के मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा जो दस्तावेज़ जमा किए गए उनमें मई 2021 में कोरोना से हुई मौतों की संख्या 111 बताई गयी है. सभी मौतों का कारण हृदयाघात ( heart attack / cardiopulmonary arrest ) लिखा गया है. अदालत ने इस पर हैरत जाहिर की कि सभी मौतों का एक ही कारण लिख दिया गया है. अदालत ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया. उच्च न्यायालय ने लिखा कि उत्तराखंड सरकार यह भी बताने को राजी नहीं कि कोरोना की दूसरी लहर में राज्य में कितनी जाने गयी.


अपने पूर्व के फैसले में उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को पंचायत स्तर पर आइसोलेशन सेंटर बनाने की उपयोगिता जाँचने को कहा था. उच्च न्यायालय ने लिखा कि स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने इस सिलिसिले में की गयी बैठकों का ब्यौरा तो दिया है, लेकिन उनके शपथ पत्र में यह नहीं बताया गया है कि राज्य में अब तक पंचायत स्तर पर कितने आइसोलेशन सेंटर बनाए गए हैं.


उच्च न्यायालय ने लिखा कि ब्लैक फंगस की जो दवाएं राज्य सरकार ने केंद्र से उपलब्ध करवाने को कहा है और जो दवाएं राज्य सरकार को खुद खरीदनी है, उसके संबंध में कोई स्पष्ट ब्यौरा स्वास्थ्य सचिव के शपथ पत्र में नहीं है.


राज्य सरकार की चार धाम यात्रा शुरू करने की घोषणा पर भी उच्च न्यायालय ने तीखी टिप्पणी की. उच्च न्यायालय ने कहा कि उत्तराखंड में अप्रैल में हुए कुम्भ और कोरोना से हुई मौतों में सीधा संबंध है. उच्च न्यायालय ने लिखा कि 20 जून 2021 को हरिद्वार में गंगा दशहरा पर लाखों लोगों को इकट्ठा होना की अनुमति दे दी गयी और उसमें ऐसा लगा कि एसओपी का उपयोग अनुपालन के बजाय तोड़ने के लिए अधिक किया गया. उच्च न्यायालय ने कहा कि जैसे ही श्रद्धालु जमा होना शुरू होते हैं तो उसकी सबसे पहली शिकार एसओपी ही होती है और दूसरे शिकार आम लोग होते हैं.


उच्च न्यायालय ने चार धाम यात्रा स्थगित करने और धामों की लाइव स्ट्रीमिंग करने का सुझाव राज्य सरकार को दिया.  साथ ही कहा कि यात्रा स्थगन से होने वाली आर्थिक दिक्कतों के संदर्भ में आर्थिक अभिवृद्धि की योजनायें घोषित करने को स्वतंत्र है.उच्च न्यायालय ने चार धाम यात्रा स्थगित करने पर विचार करने को उत्तराखंड सरकार से कहा और मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने न्यायालय को आश्वस्त किया कि राज्य मंत्रिमंडल इस पर विचार करेगा और 28 जून तक न्यायालय को इस संदर्भ में सूचित किया जाएगा. 

 

उच्च न्यायालय ने चार धाम यात्रा स्थगित होने के चलते पैदा होने वाली आर्थिक दिक्कतों के लिए राज्य सरकार को आर्थिक योजना घोषित करने की छूट तो दे दी,लेकिन न्यायालय को यह विचार करना चाहिए था कि जो सरकार मामूली आंकड़े अदालत के कड़े निर्देश के बावजूद नहीं पेश कर रही है, वह क्या किसी “स्वतन्त्रता” में स्वतः कोई काम करेगी. राज्य सरकार अपने आप योजनायें सोचने वाली होती तो हजारों लोगों की आजीविका से जुड़ी चार धाम यात्रा के बाधित होने के दूसरे साल की शुरुआत होने पर अब तक कोई राहत पैकेज घोषित कर ही चुकी होती.  


उच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी को ढेर सारे निर्देश दिये और संस्कृति और धर्मस्व विभाग के अपर सचिव डॉ.आशीष चौहान को भी निर्देशित किया. साथ ही मुख्य सचिव ओमप्रकाश, स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी तथा संस्कृति और धर्मस्व विभाग के अपर सचिव डॉ.आशीष चौहान को न्यायालय में सुनवाई की अगली तिथि पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये उपस्थित रहने का निर्देश दिया.


कोरोना महमारी के इस भयावह दौर में उत्तराखंड सरकार और उसके अफसरों का रवैये कितना लापरवाह, गैरजिम्मेदाराना और टालमटोल वाला है, इसका अंदाजा स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी और संस्कृति और धर्मस्व विभाग के अपर सचिव डॉ.आशीष चौहान के शपथ पत्रों और उन के संदर्भ में उच्च न्यायालय की टिप्पणियों से लगाया जा सकता है.


उच्च न्यायालय ने लिखा कि “the State Government is committed to enhance the infrastructure facilities as per the need of the State”  यानि राज्य की जरूरतों के हिसाब से ढांचागत सुविधाओं में बढ़ोत्तरी करने को राज्य सरकार प्रतिबद्ध है अथवा “the State Government is making tremendous efforts to tackle the menace of black fungus” यानि ब्लैक फंगस से निपटने के लिए राज्य सरकार जबरदस्त प्रयास कर रही है, जैसे वाक्यों से स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी का शपथ पत्र भरा पड़ा है पर क्या प्रयास किए जा रहे हैं, इन सब का शपथ पत्र में कहीं अता-पता नहीं है.


उत्तराखंड सरकार ने 01 जुलाई से स्थानीय निवासियों के लिए चार धाम यात्रा शुरू करने की घोषणा की है. उच्च न्यायालय ने जब चार धाम यात्रा के लिए एसओपी के बारे में संस्कृति और धर्मस्व विभाग के अपर सचिव डॉ.आशीष चौहान से पूछा तो उन्होंने शपथ पत्र दे कर न्यायालय को बताया कि वे “शीघ्रातिशीघ्र” जारी कर दी जाएंगी ! अपने शपथ पत्र में संस्कृति और धर्मस्व विभाग के अपर सचिव डॉ.आशीष चौहान ने यह भी कहा कि उत्तरकाशी,चमोली और रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारियों, गढ़वाल मंडल के स्वास्थ्य महानिदेशक (यह संशय की बात है कि गढ़वाल मंडल का स्वास्थ्य महानिदेशक होता है) और देवस्थानम बोर्ड को चार धाम यात्रा शुरू करने की कार्ययोजना प्रस्तुत करने को कहा गया है. अपर सचिव ने अपने शपथ पत्र में आगे कहा कि “वांछित सूचना अभी तक राज्य सरकार को प्राप्त नहीं हुई है.”


उक्त दोनों शपथ पत्रों के ब्यौरे से समझा जा सकता है कि उत्तराखंड सरकार की कोरोना की तीसरी लहर से निपटने से लेकर चार धाम यात्रा तक के मामले में सारी तैयारियां बयानों में ही ज्यादा हैं, धरातल पर उनका नामोनिशान कम ही है. महामारी की दौर में यह हवाबाजी आम लोगों के लिए जानलेवा हो सकती है.


-इन्द्रेश मैखुरी

 

Post a Comment

0 Comments