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आज के दिन : क्रिसमस, गढ़वाली जयंती और मनुस्मृति दहन दिवस


25 दिसम्बर को जीसस क्राइस्ट के जन्मदिन के मौके को क्रिसमस के रूप में इसाई लोग मनाते हैं.इसाई मित्रों को क्रिसमस की बधाई.  


                                





 25 दिसम्बर पेशावर विद्रोह के नायक कामरेड चन्द्र सिंह गढ़वाली का जन्मदिन भी है. हालांकि कामरेड चन्द्र सिंह गढ़वाली जन्मदिन या पुण्यतिथि से अधिक 23 अप्रैल को याद किये जाते हैं.23 अप्रैल को 1930 में उनकी अगुवाई में गढ़वाली फ़ौज के सिपाहियों ने अंग्रेजी हुकूमत की हुकुम उदूली करते हुए पेशावर में निहत्थे पठान स्वतंत्रता सेनानियों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया था.यह हमारे स्वतंत्रता संग्राम की अभूतपूर्व घटना थी.

25 दिसम्बर को एक और महत्वपूर्ण घटना हुई,जिसकी चर्चा कम ही की जाती है या यूँ कहें कि उसकी चर्चा न हो ऐसी भरसक कोशिश की जाती है.जातीय श्रेष्ठता के नकली बोध से ग्रसित हमारे समाज के लिए वह घटना एक बड़ी चुनौती थी.दरअसल 1927 में आज ही के दिन यानि 25 दिसम्बर को डा.भीमराव अम्बेडकर के नेतृत्व में मनुस्मृति को जलाया गया था.मनुस्मृति ही वो संहिता है,जो हिन्दू समाज के श्रमशील हिस्से को अछूत मानकर उसके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार को जायज ठहराने का आधार प्रदान करती है.महिलाओं के प्रति भी यह संहिता काफी क्रूर दृष्टिकोण लिए हुए है.मनुस्मृति को जलाकर बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म की वर्ण आधारित भेदभावपूर्ण व्यवस्था का ही दहन करने की शुरुआत की थी.

      

            



मनुस्मृति दहन कोई एकमात्र कार्यवाही नहीं थी,जब डा.अम्बेडकर ने जातीय भेदभाव पर तीखा प्रहार किया था.मूकनायक नाम से अखबार उन्होंने निकाला.उसके एक सम्पादकीय में उन्होंने लिखा कि हिन्दू समाज बिना सीढी और बिना प्रवेशद्वार का बहुमंजिला टावर है,जो जिस तल पर पैदा हुआ,उसे,उसी तल पर मरना है.

अपने बहुचर्चित लेख Annihilation of Caste (1936) यानि “जाति का खात्मा” में उन्होंने लिखा कि “जाति,इंटों की दीवार या तारबाड की तरह कोई भौतिक वस्तु नहीं है,जो हिन्दुओं को आपस में घुलमिल कर नहीं रहने दे रही और इसलिए गिरा दी जानी चाहिए.जाति एक दिमागी अवस्था है.इसलिए जाति के ध्वंस का मतलब किसी भौतिक बाधा का ध्वंस नहीं है..... जाति बुरी हो सकती है.जाति ऐसे आचरण की तरफ ले जा सकती है, जिसे मनुष्य की मनुष्य के प्रति अमानवीय व्यवहार कहा जाए.लेकिन साथ ही यह भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि हिन्दू जाति प्रथा को इसलिए नहीं मानते हैं क्यूंकि वे अमानवीय या बुरे दिमाग वाले हैं.वे जाति को इसलिए मानते हैं क्यूंकि वे अत्याधिक धार्मिक हैं. जाति को मानने वाले लोग गलत नहीं हैं.मेरे विचार से उनका धर्म गलत है जिसने उनमें जाति की भावना भरी है. अगर यह सही है तो शत्रु,जिससे आपको संघर्ष करना है,वो जाति को मानने वाले लोग नहीं हैं बल्कि वे शास्त्र हैं जो उन्हें जाति के धर्म का पाठ पढ़ाते हैं. लोगों की साथ-साथ न खाने और अंतरजातीय विवाह न करने के लिए आलोचना करना या उपहास करना अथवा समय-समय पर अंतरजातीय भोज और अंतरजातीय विवाह समारोह आयोजित करना,निरर्थक तरीका है.असल उपाय है शास्त्रों की पवित्रता में उनके विश्वास को ख़त्म करना.”

पिछले दिनों डा.अम्बेडकर के प्रति भाजपा-आर.एस.एस. के दिल में अचानक प्रेम उमड़ता देखा गया.पर दलितों की हत्या पर “कुत्ते के बच्चे को किसी ने पत्थर मार तो सरकार क्या करे” टाइप बयान देने वाले क्या अम्बेडकर के मनुस्मृति दहन दिवस के साथ भी स्वयं को खडा कर सकते हैं? जो लोग आरक्षण को समाप्त करने की बहस चलाये हुए हैं,जाति और जातीय भेदभाव को समाज और दिमाग दोनों से खत्म करने की पहल करें,आरक्षण की आवश्यकता स्वयं ही खत्म हो जायेगी.

आधुनिक गैजेटों से लैस होते भारत में जाति और जातीय भेदभाव की घृणास्पद स्तर तक मौजूदगी मनु और उनकी मनुस्मृति के कायदों की वजह से है.डा.अम्बेडकर ने भले मनु स्मृति को 1927 में सार्वजनिक रूप से जला डाला हो,लेकिन जातीय भेदभाव के रूप में वह 21वीं सदी में भी मौजूद है.मनुष्य और मनुष्य में भेदभाव करने वाले किसी ग्रन्थ को,चाहे वह कितना ही पवित्र क्यूँ न बताया जा रहा हो,कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता. मनुस्मृति दहन के आन्दोलन में शामिल वालंटियरों को पांच बातों की शपथ लेनी थी-

1. मैं जन्म आधारित चातुर्वर्ण में विश्वास नहीं रखता हूँ.

2. मैं जाति भेद में विश्वास नहीं रखता हूँ.

3. मेरा विश्वास है कि जातिभेद हिन्दू धर्म पर कलंक है और मैं इसे ख़तम करने की कोशिश करूँगा.

4. यह मान कर कि कोई भी उंचा - नीचा नहीं है, मैं कम से कम हिन्दुओं में आपस में खान पान में कोई प्रतिबन्ध नहीं मानूंगा.

5. मेरा विश्वास है कि दलितों का मंदिर, तालाब और दूसरी सुविधाओं में सामान अधिकार हैं.

आईये 1927 में मनुस्मृति दहन दिवस के मौके पर डा.अम्बेडकर के नेतृत्व में ली गयी शपथ को याद करें.जातीय भेदभाव समेत हर तरह की सामाजिक भेदभाव के खात्मे के लिए उठ खड़े हों.सच्चे प्रगतिशील,आधुनिक,भेदभाव मुक्त भारत के निर्माण के लिए कदम बढायें.


-इन्द्रेश मैखुरी 

  (पुराना लेख पुनः प्रस्तुत)

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1 Comments

  1. भैजी 👏
    काफी समय से पढ़ नहीं आया आपके लेख माफी चाहता हूं पिछले दिनों से व्यस्त रहा काफी आज कोशिश कर रहा सारे बचे हुए पढ़ने की 😊

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