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हाथरस : आखिर किस बात की पर्देदारी की जा रही है ?



 


हाथरस में बलात्कार पीड़ित मृतका के घर और गांव को पूरी तरह पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है. कोई गांव के अंदर नहीं जा सकता,न बाहर आ सकता है. गांव से लगभग ढाई किलोमीटर पहले पुलिस द्वारा बैरिकेड लगा कर रास्ता बंद कर दिया गया है.



एफ़आईआर लिखने में देरी,इलाज में देरी,परिजनों के बिना जानकारी के, रात के अंधेरे में  मृतका का अंतिम संस्कार ; पूरे घटनाक्रम को देखें तो यह उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार और प्रशासन की संवेदनहीनता का चरम नमूना है.



प्रशासन और पुलिस के लोग न केवल विपक्ष के नेताओं और पत्रकारों से अभद्रता कर रहे हैं,बल्कि मृतका के परिजनों के साथ भी अपराधियों की तरह बर्ताव कर रहे हैं. अत्याधिक दबाव बढ़ने के बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने हाथरस के एसपी समेत कुछ पुलिस के अधिकारियों को निलंबित करने की घोषणा की है. लेकिन निलंबित होने वालों में हाथरस के जिलाधिकारी प्रवीण कुमार शामिल नहीं हैं. जबकि हाथरस के जिलाधिकारी प्रवीण कुमार द्वारा पीड़ित परिवार को धमकाए जाने का वाइरल वीडियो सार्वजनिक होने के बाद,सर्वाधिक संदेहास्पद बर्ताव तो उन्ही का प्रतीत हो रहा है. पीड़ित परिवार की तरफ से पीड़िता के ताऊ की छाती पर लात मारने का आरोप भी जिलाधिकारी पर लगाया गया. अंग्रेजी अखबार-इंडियन एक्स्प्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार जिलाधिकारी ने पुनः मृतक लड़की के परिजनों को धमकाते हुए कहा कि जब मीडिया यहां नहीं हैं तो आपके वीडियो कैसे वाइरल हो रहे हैं ! अखबार के अनुसार मृतका के घर के बाहर और छत पर भी पुलिस है और परिजनों को किसी से बात नहीं करने दी जा रही है.



इस प्रकरण में प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों के संवेदनहीन रवैये को देख कर हैरत होती है. लेकिन इन अफसरों के पुराने रिकॉर्ड को देखेंगे तो समझ में आता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इनके ऐसे संवेदनहीन बर्ताव के चलते ही इन्हें ऐसे प्रमुख प्रशासकीय पदों से नवाजा है. 



पीड़ित परिवार को लगातार धमकाने के लिए चर्चा में आए जिलाधिकारी प्रवीण कुमार,इससे पहले, इस वर्ष  मार्च में कोरोना की आड़ में मस्जिदों में अजान पर प्रतिबंध लगाने को लेकर सुर्खियां बटोर चुके हैं. उनके इस फैसले को इलाहबाद उच्च न्यायालय ने पलट दिया था. 






निलंबित किए गए हाथरस के एसपी विक्रांत वीर,हाथरस से पहले उन्नाव के एसपी थे. उनके एसपी रहने के दौरान पिछले वर्ष दिसंबर में उन्नाव में बलात्कार पीड़ित 23 वर्षीय दलित युवती को बलात्कार के आरोपी ने उस समय जला कर मार डाला,जबकि वो उस मामले की सुनवाई के लिए अदालत जा रही थी. हाथरस की ही तरह ही उन्नाव में भी एसपी विक्रांत वीर पर आरोप लगा कि  उन्होंने परिजनों को मारी गयी युवती की लाश तक नहीं देखने दी. ऐसी संवेदनहीनता के बावजूद यदि ये अफसर,जिलों के प्रमुख पदों से नवाजे जा रहे हैं तो समझा जा सकता है कि योगी आदित्यनाथ कैसा प्रशासन चला रहे हैं !



उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषणा की गयी है कि मृतका के परिजनों का भी पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट करवाया जाएगा. मृतका के परिजनों के साथ उत्तर प्रदेश सरकार,प्रशासन और पुलिस के बर्ताव देख कर ऐसा प्रतीत होता है,जैसे कि सरकारी अमले की नज़र में वे पीड़ित न हो कर अपराधी हों !



हैरत की बात यह है कि आरोपी पक्ष भी मृतका के परिजनों का भी पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट करवाने की मांग कर रहा है और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वह मांग मान ली गयी है ! यह भी आश्चर्यजनक है कि जहां मृतका के गांव में विपक्ष,मीडिया समेत किसी को नहीं जाने दिया जा रहा है,वहीं इलाके में लगी धारा 144 का खुला उल्लंघन करते, बलात्कार की जगह से महज 500 मीटर की दूरी पर सवर्णों द्वारा आरोपियों के पक्ष में प्रदर्शन किया गया और “न्याय” की मांग की गयी. बहुतेरे लोग इस प्रकरण में मृतका की जाति के उल्लेख पर आपत्ति जताते रहे हैं. लेकिन आरोपियों के पक्ष में यह सवर्ण गोलबंदी दर्शाती है कि जातीय वर्चस्व और घृणा का पहलू तो उक्त बलात्कार में शामिल था ही. वैसे जो मृतका की जाति के उल्लेख से दुखी हो रहे थे,उन्हें बलात्कार के आरोपियों के पक्ष में जातीय आधार पर पंचायत करने वालों को जाति से मुक्त होने और जाति के आधार पर नहीं बल्कि अपराध की जघन्यता के आधार पर पक्ष तय करने का ज्ञान देना चाहिए !



पीड़ित परिवार को किसी से बात तक नहीं करने दी जा रही,मीडिया तथा पीड़ित परिवार फोन टेप किए जाने का आरोप लगा रहे हैं और आरोपी पक्ष की मांग मानी जा रही है,आखिर योगी आदित्यनाथ की सरकार किसके पक्ष में खड़ी है ? पीड़ित परिवार को कैद करके क्या ढकने की कोशिश कर रहे हैं,योगी जी ?



-इन्द्रेश मैखुरी


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2 Comments

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  2. ☯️ बहुत दुखद है और अन्याय पूर्ण भी कि इस मामले में भी राजनीति हो रही है और सबसे बड़ी बात कि इस मामले में बहुत सारे वाद ism उभरे हैं, महिलाओं के अपराधों को लेकर कितनी दोयमता और राजनीति हमारे समाज में है यह दिखाई दे रही है। बहुत दुखद है यह सब, महिलाओं को भी एकजुट होकर के इस पर एक ही मत से आगे बढ़ना चाहिए कोई भी राजनीति स्त्री अस्मिता से ऊपर नहीं हो सकती है। इन सब मामलों में बौद्धिक पुरुषों का योगदान सराहनीय है, इस विषय को बौद्धिक रूप से लिख रहे हैं, बोल रहे हैं, पढ़ रहे हैं और समाज के सम्मुख ले जा रहे हैं।

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