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जय किसान-नारा था,क्षय किसान-हकीकत बनेगा !

 




सरकारी भाषा में कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने कृषि सुधार की दिशा में कदम बढ़ा दिया है. 1991 में नयी आर्थिक नीतियां लागू होने के साथ जो कुछ शब्द सत्ताधीशों द्वारा सर्वाधिक प्रयोग किए जाते हैं,सुधार उनमें से प्रमुख है.मोटे तौर पर बेखटखे मुनाफा कमाने की राह में जो भी कानूनी रुकावट है,उसे दूर करके मुनाफाखोरी की खूल छूट को ही सुधार कहा जाता है. इसलिए पूंजी की मुनाफाखोरी की अंधी दौड़ में जो भुगतने वाले छोर पर हैं,उनके लिए यह सुधार नहीं बिगाड़ है और इस बिगाड़ को कानूनी जामा पहना दिया गया है.



कृषि सुधार की लफ़्फ़ाजी को भी इसी रौशनी में देखे जाने की आवश्यकता है. लोकसभा से पारित हो चुके और राज्यसभा से जबरन पारित करवाए गए कृषि संबंधी विधेयकों की हकीकत भी यही है.बड़ी पूंजी के मुनाफे के लिए सुधार वाले ये विधेयक,किसान के भारी बिगाड़ का सबब बनेंगे.





यह भी गौरतलब है कि कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य( संवर्द्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020 और कृषक(सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन व सेवा पर करार विधेयक 2020, राज्यसभा में जिस तरह से पास करवाए गए,वह केंद्र सरकार की नियत का काफी हद तक खुलासा कर देता है. राज्यसभा में विपक्ष इन विधेयकों के खिलाफ हँगामा कर रहा था. विपक्ष ने मांग की कि इन विधेयकों पर मतदान करवाया जाये,जिसे अस्वीकार कर दिया. राज्यसभा टीवी की आवाज़ उपसभापति हरिवंश द्वारा बंद कर दी गयी और फिर विधेयकों को ध्वनिमत से पारित करने की घोषणा कर दी गयी. ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष द्वारा विधेयकों के विरुद्ध हंगामें की ध्वनि को भी विधेयक के पक्ष के ध्वनिमत में शामिल कर लिया गया. इस आलोकतांत्रिक प्रक्रिया से जिन विधेयकों को जबरन पास करवाया जा रहा है,वे किसका हित साधेंगे,यह समझा जा सकता है.


 सरकारी भाषा में कहा जा रहा है कि कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य( संवर्द्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020,किसानों को मंडी के बाहर कृषि उपज बेचने की छूट देता है. केंद्र सरकार का दावा है कि अब किसान,कहीं भी,किसी को भी अपनी उपज मनमाफिक दाम पर बेच सकेगा. परंतु जब न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित होने के बावजूद किसान अपनी उपज को कम दाम पर बेचने पर विवश होता रहा है तो जब उसे खुले बाजार में खड़ा कर दिया जाएगा तो क्या वह बाजार की ताकतों से,अपनी उपज का वाजिब मूल्य हासिल कर पाएगा ? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था जारी रहेगी. प्रश्न यह है कि सरकारी कृषि मंडी के बाहर खड़े बड़े व्यापारी से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसान की उपज की खरीद कौन और कैसे सुनिश्चित करवाएगा ? यह चोर दरवाजे से सरकारी कृषि मंडियों और न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था के खात्मे का इंतजाम है.



  कृषक(सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन व सेवा पर करार विधेयक 2020, किसान और खरीददार के बीच खरीद संबंधी समझौते की बात कहता है. केंद्र सरकार कह रही है कि यह किसानों के लिए “जोखिम रहित कानूनी ढांचा” है. लेकिन वास्तव में यह खेती पर कॉर्पोरेट शिकंजे का रास्ता है. ऐसे समझौत के बाद किसान,खेत में क्या,कैसे और कितना उपजाएगा यह पूरी तरह से कारपोरेट के हाथ में चला जाएगा. यह सब कुछ,बेचने वाले और खरीदने वाले की सहमति से समझौते में लिखने की बात, विधेयक कहता है. कमजोर किसान और आर्थिक रूप से संपन्न खरीददार की बीच कैसे समझौता होगा और किसकी शर्तों पर होगा,यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है. ठेके पर खेती यानि कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग का रास्ता विधेयक खोलता है. ठेके पर खेती भी कोई साधारण किसान तो करवाएगा नहीं,यह बड़ी पूंजी द्वारा ही की जाएगी.






इस तरह देखें तो किसान हितैषी बताए जा रहे ये विधेयक किसानों को और तबाही की ओर धकेल देंगे.वर्तमान समय में देश में किसानों की हालत का ब्यौरा संसद के वर्तमान सत्र में सरकार के उत्तरों से मिलता है.  संसद में सरकार ने एक प्रश्न के जवाब में बताया कि देश में कृषि जोतों के मालिकाने के हिसाब से बड़ी संख्या सीमांत किसानों की है. सीमांत किसान यानि जिसके पास एक हेक्टेयर से कम कृषि भूमि है और लघु किसान वह है,जिसके पास एक हेक्टेयर से अधिक किंतु दो हेक्टेयर से कम कृषि भूमि है. लोकसभा में 15 सितंबर को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि देश में 68.45 प्रतिशत सीमांत किसान हैं और 17.62 लघु किसान हैं.


एक अन्य सवाल के जवाब में कृषि मंत्री ने एनएसएसओ के सर्वे के हवाले से बताया कि देश में किसान की औसत आय 77112 रुपया है और उस पर औसतन 47000 रुपये का कर्ज है.


कृषि जोतों के आकार और किसानों पर कर्ज के सरकारी आंकड़े न केवल देश में किसानों की हालत बयान कर रहे हैं बल्कि इन आंकड़ों से यह भी समझ आता है कि खुले बाजार में जब ऐसी कमजोर माली हालत वाले किसान को खड़ा कर दिया जाएगा तो संपन्न नहीं होगा बल्कि उसके पास जो बचा-खुचा है,उसे भी गंवा बैठेगा. “बहुत हुआ किसान पर अत्याचार,अब की बार मोदी सरकार” नारे के साथ 2014 में देश की सत्ता में पहुँचने वाले नरेंद्र मोदी की सरकार ने किसानों पर अत्याचार और उनकी सरकारी तबाही की गति को और तेज कर दिया है. 

 

जय किसान तो नारे में रहा पर ये विधयेक- क्षय किसान को हकीकत बनाएंगे.  


 -इन्द्रेश मैखुरी

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1 Comments

  1. जीडीपी में जिस एकमात्र सेक्टर में सकारात्मक वृद्धि दर दर्ज की गयी थी वो कृषि सेक्टर ही था अब प्रधान सेवक ऐसे जैसे जाने देते

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