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खेल के साथ न खेलो,सरकार !

 


उत्तराखंड सरकार के पास लगता है कि काम का बहुत अभाव है. इसलिए “समय बिताने के लिए करना है कुछ काम” की तर्ज पर सरकार और उसके खेवनहार  समय-समय पर कुछ-कुछ अजीबोगरीब करते रहते हैं. कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत सारे विभागों को देख कर ही सरकार का कलेजा मुंह को आने लगता है. सरकार की तारणहारों को लगता है कि आखिर इतने सारे विभाग क्यूँ बनाए गए हैं ? ऐसा प्रतीत होता है कि विभागों को सुचारु रूप से संचालित करने के बजाय सरकार में बैठे लोग इस बात को लेकर ही माथा पच्ची करते रहते हैं कि आखिर यह विभाग बना क्यूँ हैं ! फिर एकाएक वे घोषित करते हैं कि अमुक दो विभागों का विलय कर दिया जाएगा. उन दो विभागों का आपस में कोई संबंध हो न हो, सरकार बहादुर को इससे कोई मतलब नहीं,उसे तो विभागों की संख्या घटानी है !


ऐसा ही खेल विभाग और युवा कल्याण विभाग के साथ हो रहा है. उत्तराखंड सरकार ने खेल विभाग और युवा कल्याण विभाग के एकीकरण का फैसला किया है. हालांकि खेल विभाग का युवा कल्याण विभाग से कोई मेल नहीं है. दोनों के काम और कार्यप्रणाली बिल्कुल जुदा है.


युवा कल्याण विभाग के काम का संबंध महिला मंगल दल,युवक मंगल दल,यूथ हॉस्टल्स आदि से संबंधित है. साथ ही प्रांतीय रक्षक दल भी उससे जुड़ा हुआ है,जो अस्थायी प्रकृति का कार्य है.


खेल विभाग एकदम भिन्न प्रकृति का विभाग है,जो राज्य में खेल गतिविधियों के संचालन प्रोत्साहन एवं देखरेख के लिए उत्तरदाई विभाग है. खेल खेलने और प्रशिक्षण आदि के लिए विशिष्ट योग्यता एवं समझ की आवश्यकता होती है.


फोटो सौजन्य : खेल विभाग,उत्तराखंड 



तमाम खिलाड़ी संघ और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी,पूर्व खिलाड़ी और प्रशिक्षक खेल विभाग का विलय युवा कल्याण विभाग के साथ किए जाने का मुखर विरोध कर रहे हैं. पूर्व ओलोम्पियन और अब खेल प्रशिक्षक,सुरेन्द्र भंडारी,अंतरराष्ट्रीय वॉक रेसर और ओलोंपिक खिलाड़ी मनीष रावत समेत बड़ी संख्या में खिलाड़ी और प्रशिक्षक सरकार के इस कदम के प्रति अपनी नाखुशी का इज़हार कर चुके हैं.


 यह भी गौरतलब है की सरकार विभागों के एकीकरण का यह राग लगभग तीन साल से अलाप रही है और ऐसे विभागों की संख्या लगभाग दस के करीब है,जिनका यह एकीकरण किया जाना है.


खेल विभाग के अन्य विभाग से विलय को खिलाड़ी और प्रशिक्षक प्रदेश में खेल पर विपरीत प्रभाव के रूप में देख रहे हैं. लेकिन राज्य सरकार को लगता है कि खेल और खिलाड़ियों के सरोकारों से ज्यादा लेना-देना नहीं है.लगता है कि युवा कल्याण के नाम से उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि खेल के साथ कूद बोलने का चलन है,उसमें खेल से अलग जो कूद है,वो युवा कल्याण विभाग है और इनका विलय करके वह इस विभाग को पूरा खेलकूद विभाग बना कर रहेगी ! परंतु इस सारी उछल कूद से हासिल कुछ नहीं होगा बल्कि खेल विभाग का जो अभी ढांचा है,उसमें अफसरशाही और बढ़ेगी. सरकारी उपेक्षा के बावजूद जितना भी खेल में अभी हासिल है,वह भी इस उछल कूद में धराशायी हो जाएगा. प्रदेश में खेल और खिलाड़ियों के हित में यही बेहतर होगा सरकार खेल से खेलना बंद करे.


-इन्द्रेश मैखुरी     

 

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