चलिए साहब, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जाति जनगणना कराने का फैसला ले लिया. विपक्षी राजनीतिक पार्टियां, जिसमें हमारी पार्टी- भाकपा (माले) भी शामिल है, लगातार जाति जनगणना कराने की मांग कर रही थी. 2024 के लोकसभा चुनाव में जाति जनगणना इंडिया गठबंधन का एक प्रमुख मुद्दा था.
बिहार में जब थोड़े अरसे के लिए महागठबंधन की सरकार रही तो वहां जाति गणना हुई. इस गणना ने बिहार की आबादी की बहुसंख्या की घनघोर गरीब और उपेक्षा की तस्वीर उघाड़ कर रख दी. पता चला कि कमजोर तबके आबादी में बहुसंख्यक हैं, लेकिन हिस्सेदारी में हाशिये पर हैं. जब केंद्रीय मंत्रिमंडल जाति गणना को स्वीकृति दे रहा है तो बिहार द्वारा कमजोर तबकों के आरक्षण का दायरा बढ़ाने का जो प्रस्ताव भेजा गया था, क्या अब केंद्र उसे स्वीकार करेगा ?
लेकिन जाति जनगणना भी तभी होगी जब जनगणना होगी. अंग्रेजों के जमाने से हर दशक में होने वाली जनगणना 2021 से लंबित है. 18-18 घंटे काम करने वाले नॉन बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री के कार्यकाल में सरकारी मशीनरी द्वारा किया जाने वाला यह रुटीन काम भी ना हो सका !
रोचक तथ्य यह भी है कि जिस सरकार ने जाति जनगणना को स्वीकृति दी है, प्रधानमंत्री समेत उसके सभी नेता अभी कुछ दिन पहले तक इसके धुर विरोधी थे ! वे और उनके समर्थक गोदी एंकर तर्क देते थे कि यह जातिवाद को बढ़ाने वाला काम होगा ! उन्हें कौन समझाए कि जातिवाद का संबंध जाति के गिने जाने से नहीं जाति के क्रूर ढांचे की मौजूदगी से है ! गणना से जाति नहीं है बल्कि जाति है तो उसकी गणना होनी है !
बहरहाल जाति जनगणना के विपक्ष में खम ठोक कर उतरे रहने वाले एकाएक जाति जनगणना के पैरोकार कैसे हो गए ? बिहार में चुनाव है ना, इसलिए ! बिहार वो प्रदेश है, जहां जाति गणना के पक्ष की सबसे मजबूत जमीन है. साहेब की अपनी जमीन वहां डांवाडोल है. इसलिए बिहार की सत्ता की कुंजी के तौर पर जाति जनगणना के मसले को आगे किया गया है. सबक ये कि इस सरकार से कुछ भी करवाया जा सकता है बशर्ते कि उससे चुनावी लाभ हो ! इसलिए समाज के कमजोरों, वंचितों को अपनी जायज मांगें मनवाने के लिए एकजुट हो कर ,मांगे न माने जाने की दशा में चुनावी सबक सिखाने का भय पैदा पैदा करना होगा, फिर देखिये सरकार और नॉन बायोलॉजिकल महाप्रभु सारी हेकड़ी छोड़ आपके कदमों में गुलाटी खा रहे होंगे !
- इन्द्रेश मैखुरी
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