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कोरोना को नहीं छोड़ेंगे पाताल तक,शराब की दुकानें खुलेंगी 11 बजे रात तक !

 


वैसे शीर्षक में कही दो बातों में आपसे में कोई संबंध हो भी सकता है और नहीं भी. नहीं, इसलिए कि हमारे यहाँ पहाड़ी गीतों में पहली पंक्ति सिर्फ टेक के लिए होती है,असली बात दूसरी पंक्ति में होती है. तो इसे आप उस पट शैली में समझ सकते हैं कि असली सूचना दूसरी बात में है.


सूचना यह है कि उत्तराखंड में त्रिवेंद्र रावत जी की सरकार ने निर्णय लिया है कि  शहरी इलाकों में शराब की दुकानें 11 बजे रात तक और अन्य इलाकों में 10 बजे रात तक खुली रहेंगी.बताइये तब लोग त्रिवेंद्र भैजी पर तोहमत लगाते रहते हैं कि वो कुछ करते नहीं,फैसला लेते नहीं !  मंत्रिमंडल की हर बैठक में देखिये शराब और खनन वालों के लिए कोई न कोई फैसला होगा,किसी न किसी को मुफ्त जमीन देने का भी फैसला होता ही है. इंजन है डबल,आदमी तो एक ही है. अकेला आदमी, शराब जो पिलवाए,खनन जो करवाए या रात-दिन कुर्सी हिलाने वालों का बंदोबस्त जो करे !



  तुक मिलाने के लिए पहली बात है शीर्षक में उसका संबंध आप जोड़ भी सकते हैं,इस फैसले से. कोरोना में क्या चाहिए- सैनिटाइजर. सैनिटाइजर में क्या होता है- एलकोहॉल.शराब का प्रमुख तत्व क्या है- एलकोहॉल.कोरोना काल की सबसी बड़ी जरूरत है सैनिटाइजर और सैनिटाइजर की आत्मा है- एलकोहॉल. यानि मानव सभ्यता के लिए इस समय जीवन रक्षक तत्व है- एलकोहॉल ! उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार समझ गयी इस युग मर्म को. फिर डबल इंजन वाली सरकार ने आगे बढ़ कर सोचा कि इस एलकोहॉल के चककर में तो जनता का डबल खर्चा हो रहा है ! हाथ साफ करने के लिए भी आदमी को एलकोहॉल चाहिए और गला तर करने के लिए भी ! तो क्यूँ न दोनों के खर्चों को एक कर दिया जाये ! इसलिए शराब की दुकानों पर विशेष फोकस है.


सरकार कटिबद्ध है कि शहरों से लेकर गाँव देहात तक चाहे कुछ हो जाये, पर एलकोहॉल की कमी न होने पाए. रात-बेरात जब हाथ धोना हो या गले की प्यास सताये,गाली-नाकों पर शराब की दुकानें पर बेधड़क आयें !हाथों और प्राणों को व्यर्थ न सुखाएं !


जैसा कि ज्ञात हो ही चुका है कि बाहरी सैनिटाइजर के रूप में तो इसका प्रयोग कर  सकते हैं और अंदर जाने पर आंतरिक सैनिटाइजर का काम भी ये करेगी. कोरोना की वजह से जब चारों ओर भय व्याप्त है तब आंतरिक बल भी यह जगाने में सक्षम है . रामायण की कथा में हनुमान का बल जगाने के लिए जामवंत को कहना पड़ा था- का चुप साधी रहा बलवाना ! लेकिन यहाँ तो आदमी के अंदर जैसे पहुंचा एलकोहॉल,उसने मचाई हलचल तो फिर देखिये बलवान को थामना मुश्किल हो जाता है. कोरोना क्या, कोरोना की सात पुश्तें भी सामने आ जाएँ तो अगला आंतरिक  सैनिटाइजेशन के बूते सीधा भिड़ जाएगा, उससे ! कोरोना के भय से प्रदेश को उबारने की कोशिश है, उत्तराखंड सरकार की ! रात-बेरात कोरोना का भय सताये तो फौरन नुक्कड़ की दुकान पर जाएँ,भय का हल- एलकोहॉल पाएँ.


2007 में जब भाजपाई राज में शराब की दुकानें बंद होने का समय रात 09 बजे किया गया तो शराब की दुकान का एक संचालक,राहत की सांस लेते हुए बोला- ये बहुत अच्छा हुआ,पब्लिक का प्रैशर बहुत ज्यादा बढ़ जाता था,जल्दी दुकान बंद करने में. 2007 में रात 09 बजे शराब की दुकान बंद करने के लिए जो प्रेशर था,वो 2020 तक आते-आते शहरों में रात 11 बजे और अन्य इलाकों में रात 10 बजे शराब की दुकान बंद करवाने की हद तक बढ़ गया है.  


 देखा आपने हमारे लोकतंत्र का ज़ोर,शराब की दुकान पर जनता के प्रेशर से सरकार भी दबाव में आ जाती है.तुरंत इस प्रेशर में आ कर शराब की दुकान बंद करने का समय बढ़ा देती है. भई आखिर यही पब्लिक तो चुनती है, सरकार को ! उसकी सुख सुविधा का ख्याल तो रखना ही ठैरा,बल !  


कुछ नामुराद लगे रहते हैं-रोजगार दो,शिक्षा दो,अस्पताल दो,डाक्टर दो ! माना कि ये नहीं दे पा रही तो जो दे सकती है,वो भी न दे सरकार ! फर्ज कीजिये कि दवा नहीं है तो बड़े बुजुर्ग ऐसे ही थोड़े दवा के साथ दारू को जोड़ कर दवा-दारू कह गए हैं. दवा की उपलब्धता न हुई तो क्या, उसके साथ जुमले में बगलगीर दारू की व्यवस्था तो देर रात तक कर ही दी गयी है. वैसे भी जब हाथ से लेकर शरीर तक और शरीर से लेकर मन-मस्तिष्क तक फुल होगा एलकोहॉल तो बाकी चीजों की परवाह किसको होगी ! सब समस्याओं का एक ही हल- एलकोहल, एलकोहल !


-इन्द्रेश मैखुरी

 

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1 Comments

  1. दारू बिना यख मुक्ति नि ,बिना दारू कखि जुगति नि

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