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उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक के नाम पत्र


प्रति,
   श्रीमान महानिदेशक,
    उत्तराखंड पुलिस,
     देहारादून.


महोदय,
      दिनांक 05 जुलाई 2020 को हरिद्वार जिले के झबरेड़ा पुलिस थाने में तैनात कांस्टेबल मंजीता द्वारा आत्महत्या करने की खबर आई थी. यह बहुत विचलित करने वाली खबर थी. परंतु  सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों में सुश्री मंजीता के भाई महेंद्र सिंह द्वारा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक,हरिद्वार को लिखा हुआ पत्र सार्वजनिक हुआ,जो उक्त घटना से भी अधिक विचलित करने वाला है.





उक्त पत्र में मृतका के भाई ने थाना झबरेड़ा के इंचार्ज एवं एक अन्य पुलिस अधिकारी पर मृतका को मानसिक एवं शारीरिक तौर पर परेशान करने का आरोप लगाया है. मृतका के भाई का आरोप है कि अनुसूचित जनजाति का होने की वजह से भी उसकी बहन को परेशान किया जाता था. मृतका का फोन परिजनों को न दिये जाने का आरोप भी मृतका के भाई ने लगाया है. 


ये सभी आरोप बेहद गंभीर प्रकृति के हैं. यदि जाति के आधार पर और महिला होने के कारण,पुलिस बल में भी किसी को उत्पीड़ित होना पड़ता है तो फिर अन्यत्र न्याय की आस कहाँ रह जाएगी ? जातीय और लैंगिक उत्पीड़न गैरकानूनी है और ऐसे गैरकानूनी कृत्य रोकना पुलिस का दायित्व है. लेकिन दायित्व निभाने के लिए नियुक्त लोगों पर ही गैरकानूनी कृत्य में लिप्त होने का आरोप लगे तो मामला बेहद गंभीर हो जाता है. यह तो उत्तराखंड पुलिस के नारे “मित्र पुलिस” पर ही गंभीर प्रश्न चिन्ह है. पुलिस अपने कार्मिकों के प्रति मित्रवत नहीं है तो फिर समाज के कमजोर तबकों के प्रति कैसे होगी ? समाज के कमजोर तबके यदि पुलिस बल के अंदर सुरक्षित नहीं हैं तो समाज में उनके उत्पीड़न को पुलिस कैसे रोकेगी ?


महोदय, मृतक महिला कांस्टेबल के भाई के पत्र से उक्त अत्यंत चिंताजनक सवाल उपजते हैं. आपसे निवेदन है कि प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए उक्त प्रकरण में तत्काल उच्च स्त्रीय स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच करवाने की कृपा करें. साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि किसी अन्य कार्मिक को,खास तौर पर कमजोर तबकों से आने वाले कार्मिक को किसी तरह के उत्पीड़न का सामना न करना पड़े.

सधन्यवाद,

सहयोगाकांक्षी,

इन्द्रेश मैखुरी
गढ़वाल सचिव
भाकपा(माले)
                             

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