अमेरिका में पिछले दिनों भारी उथल-पुथल रही. एक
अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस
द्वारा हत्या किए जाने का मामला सामने आने
के बाद अश्वेतों के साथ होने वाले भेदभाव के खिलाफ वहाँ भारी जन उभार हुआ. Black Lives Matter नाम
से अभियान भी चला.
उसी अमेरिका के संदर्भ में एक नया सवाल खड़ा हो गया कि
क्या अमेरिका में जातीय भेदभाव भी है ? इस प्रश्न के उठने
की वजह बना एक मुकदमा. कैलिफोर्निया स्थित एक कंपनी सिस्को(CISCO) पर एक मुकदमा दर्ज करवाया गया है,जिसमें यह आरोप
लगाया है कि उक्त कंपनी में काम करने वाले एक प्रिन्सिपल इंजीनियर का जातीय
उत्पीड़न कंपनी में काम करने वाले भारतीय मैनेजरों सुंदर अय्यर और रमन्ना कोम्पेला
द्वारा किया गया.
सैन जोस के फेडरल कोर्ट में दर्ज मुकदमें में कहा गया कि उक्त
इंजीनियर ने 2016 में अय्यर द्वारा भेदभाव करने की शिकायत एच.आर. विभाग से की थी.
लेकिन कंपनी का मत था कि जातीय भेदभाव अमेरिका में अवैध नहीं है. समाचार एजेंसी
राइटर्स के अनुसार कंपनी ने उक्त इंजीनियर को अलग-थलग कर दिया और प्रमोशन के
अवसरों से भी वंचित कर दिया.
इस मामले के सामने आने के बाद अमेरिका में जाति
आधारित भेदभाव की चर्चा सामने आई है.लेकिन यह अमेरिका में पहला मामला नहीं है,जब जातीय भेदभाव को लेकर शिकायत दर्ज करवाई गई है. डब्ल्यू.बी.जी.एच.(WBGH) नामक पोर्टल पर पिछले वर्ष प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 में
मैनहट्टन में “साहिब” नाम के रेस्तरां में एक नेपाली वेटर (जो दलित था) ने आरोप लगाया कि सवर्ण मैनेजर और स्टाफ ने उसे अपमानित किया. इस मामले
को लेकर मुकदमा दर्ज करवाया गया.
डब्ल्यू.बी.जी.एच. की इसी रिपोर्ट में अलबामा
विश्वविद्यालय के एक मामले का भी उल्लेख है,जिसमें एक छात्र का
विज्ञान में पी.एच.डी. के लिए आवेदन पहले स्वीकार कर लिया गया. लेकिन लैब का
डाइरेक्टर चूंकि भारतीय था तो जैसे ही उसे छात्र की जाति का पता चला,उसका आवेदन खारिज कर दिया गया.
आम तौर पर ऐसा लगता है कि अमेरिका एक विकसित और
आधुनिक देश है तो वहाँ जातीय भेदभाव तो नहीं होगा.बोस्टन रीडेवलपमेंट अथॉरिटी के
सर्वे के अनुसार 91 प्रतिशत विदेश में पैदा भारतीय स्नातक या उससे अधिक शिक्षित
हैं. लेकिन बावजूद इसके अमेरिका में भी
जातीय भेदभाव भारतीयों की आबादी की तरह ही फैल रहा है. चूंकि अमेरिकी समाज में जाति की अवधारणा नहीं है,इसलिए जातीय भेदभाव से कानूनी बचाव के
उपाय भी वहाँ नहीं हैं.
मानवाधिकार संगठन इक्वालिटी
लैब के 2018 के एक अध्ययन के अनुसार अमेरिकी कार्य स्थलों पर काम करने
वाले 67 प्रतिशत दलित जातीय भेदभाव महसूस करते हैं.
Caste in the United States : A Survey of Caste among South Asian Americans शीर्षक वाली इक्वालिटी
लैब की रिपोर्ट कहती है कि जाति से सम्बद्ध असमानताएं सभी दक्षिण एशियाई अमेरिकी संस्थानों में घर कर गयी हैं और वहाँ से
वह उन अमेरिकी मुख्य धारा के संस्थानों में पहुँच रही है,जिनमें
दक्षिण एशियाई मूल के अमेरिकी लोग बड़ी तादाद में हैं.
रिपोर्ट कहती है कि 40 प्रतिशत दलित बच्चे स्कूलों
में जातीय भेदभाव का सामना करते हैं. कार्यस्थलों और पूजा स्थलों पर भेदभाव के
आंकड़े भी उक्त रिपोर्ट में दिये गए हैं. यहाँ तक कि प्रेम संबंधों की चर्चा में
जातीय आधार के हावी होने के आंकड़े सर्वे में दिये गए हैं.
सर्वे बताता है कि 59 प्रतिशत दलितों ने स्वीकार किया कि उन को अमेरिका में
भारतीय प्रवासियों के बीच जाति आधारित चुटकुले और ताने सहन करने पड़े.
उक्त सर्वे सिर्फ आंकड़ों का सर्वे नहीं है बल्कि
विभिन्न तरीके के भेदभाव झेलने वालों की आप बीती भी दर्ज करता है. जैसे एक दलित
युवती का कथन है कि उसके एक उच्च वर्णीय सहयोगी ने उससे कहा कि मैं तुम्हारी जाति
के कारण तुमसे डेट करने की सोच भी नहीं
सकता. एक सवर्ण व्यक्ति का कथन भी है कि उसने निचली कही जाने वाली जाति की लड़की से
प्रेम किया पर माता-पिता ने इंकार कर दिया. बहुत दबाव डाल कर युवक ने अपने माँ-बाप
को सगाई के लिए मना लिया पर सगाई वाले दिन युवक के माता-पिता ने लड़की के घर वालों
से अभद्रता कर दी और रिश्ता टूट गया. एक बच्चे की माँ के कथनानुसार दूसरी कक्षा
में पढ़ने वाला उसका बच्चा,एक अन्य बच्चे के साथ खेलता था.
बातों-बातों में चर्चा हुई और पहले बच्चे की माँ ने अपना धर्म बौद्ध बताया. बच्चे
की माँ के अनुसार बौद्ध धर्म को चूंकि दलितों का धर्म माना जाता है,इसलिए यह अंतिम बार था कि उसका बच्चा,उस दूसरे बच्चे
के साथ खेला,जिसके साथ वह रोज खेलता था. उसके बाद घर और
स्कूल में अन्य उच्च वर्णीय बच्चों ने उसके साथ खेलना बंद कर दिया.
इससे अधिक सिहरन भरे और दलित उत्पीड़न के कलेजा मुंह
को ला देने वाले वाकये हम भारत में देखते-सुनते हैं. लेकिन ये किस्से भारत के नहीं
हैं,अमेरिका के हैं. उस अमेरिका के जो दुनिया के आधुनिकतम देशों में से एक है.
उस आधुनिकता के फलों को हासिल करने गए भारतीय, अपने साथ जाति
के जहर और घृणा की पुड़िया ले जाना नहीं भूले. नतीजतन अमेरिका में भी वे उस जाति के
नकली श्रेष्ठता बोध की विष बुझी खेती कर रहे हैं,जिससे भारत
को मुक्त होने की अनिवार्य जरूरत है. जाति के दंभ और नकली श्रेष्ठता बोध और दंभ के
साथ भारत रहो या अमेरिका, न आधुनिक हो सकोगे और ना ही मनुष्य
!
-इन्द्रेश
मैखुरी
3 Comments
🙏🙏🙏🙏
ReplyDelete👍👍👍
ReplyDeleteCorrect comrade
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