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तबाह करने वाली “भाईबंदी”


2019 में लोकसभा चुनावों से पहले का समय था. अचानक समाचार माध्यमों में खबरें चल पड़ी कि चौदह हजार करोड़ रुपये के पंजाब नेशनल बैंक घोटाले का आरोपी नीरव मोदी, किसी भी समय ब्रिटेन से भारत प्रत्यर्पित किया जा सकता है. खबरें यह भी चली कि विजय माल्या भी भारत लाया जाएगा. उस समय भाजपा समर्थकों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशंसकों ने इसे विश्व में बढ़ते भारत के दबदबे के तौर पर पेश किया.हवा कुछ ऐसी बांधी गयी कि लगने लगा कि मशीन में वोट पड़ने से पहले नीरव मोदी और माल्या भारत में जेल की सलाखों के अंदर पड़े होंगे.  माहौल ऐसा बनाया गया जैसे कि नीरव मोदी और विजय माल्या को फिल्मी अंदाज में घसीट कर भारत लाया जाएगा और यह सब प्रधानमंत्री के नायकत्व से ही “मुमकिन होगा.




बहरहाल, नरेंद्र मोदी का पुनः प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री बनना तो “मुमकिन हुआ पर नीरव मोदी और माल्या को भारत लाना अभी भी  “मुमकिन न हो सका.वह तो कपोल कल्पना सा ही लगता है पर वास्तव में जो घटित हो रहा है,वह भी कल्पना से परे ही है.
 नीरव मोदी के साथ पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के आरोपी उसका मामा मेहुल चौकसी भी देश से फरार हो गया था. इस बैंक घोटाले के सामने आने से पहले, एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने चौकसी को संबोधित करते हुए कहा था- “हमारे मेहुल भाई.”
घोटाला हो गया,मामा-भांजा देश से फरार हो गए, लेकिन लगता है कि मेहुल चौकसी और उसके जैसों के प्रति यह “भाईबंदी” अभी में कायम है. देश का पैसा लूट कर भागने वालों का यदि हजारों करोड़ रुपया माफ कर दिया जा रहा है तो बिना अपनेपन और “भाईबंदी” के तो नहीं हो रहा होगा.



सामाजिक कार्यकर्ता साकेत गोखले द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक से मांगी गयी सूचना का बैंक द्वारा दिया गया उत्तर तो मेहुल चौकसी के प्रति सरकारी “भाईबंदी” और उदारता की तरफ ही इशारा करता है.

साकेत गोखले की आर.टी.आई के जवाब में आर.बी.आई ने बताया कि 50 विलफुल बैंक लोन डिफॉल्टरों का 68607 करोड़ रुपये का ऋण बट्टे खाते में डाल दिया है यानि बैंक ने मान लिया है कि यह पैसा वापस नहीं आएगा.  मेहुल समेत जो 50 “भाई” हैं,जिनका कर्जा अप्रत्यक्ष तरीके से माफ कर दिया गया है,इन्हें बैंक ने विलफुल लोन डिफॉल्टर कहा है. कौन होता है, विलफुल लोन डिफॉल्टर ? बैंक की परिभाषा के अनुसार विलफुल लोन डिफॉल्टर वो व्यक्ति है,जो कर्ज चुका तो सकता है पर चुका नहीं रहा है.


वो  कर्ज चुका तो सकते हैं, पर 68607 करोड़ रुपये नहीं चुका रहे हैं  तो बैंक उनके कर्जे को भूल जाने का रास्ता अपना रहा है. परंतु जो गरीबी,तंगहाली के चलते कर्ज नहीं चुका पाते,बैंक उनके मरने और पूरी तरह तबाह होने के बावजूद उनका कर्जा क्यूँ नहीं भूल पाते होंगे ? क्या सिर्फ इसलिए कि प्रधानमंत्री जैसा कोई बड़ा व्यक्ति उन्हें- भाई कह कर संबोधित नहीं करता ?


मेहुल चौकसी के साथ “भाईबंदी” की चर्चा इसलिए की जा रही है क्यूंकि जो ये 68607 करोड़ रुपये नहीं चुकाने वाले 50 लोगों की सूची है,उसमें “अपने मेहुल भाई” की फर्म-गीतांजलि जेम्स 5492 करोड़ रुपये के साथ पहले नंबर पर है. चौकसी की दो अन्य फ़र्मे गिली इंडिया और नक्षत्र ब्रांड क्रमशः 1447 करोड़ और 1109 करोड़ रुपये के बैंक द्वारा भुलाए कर्जे की सूची में 15वें और 20वें स्थान पर विराजमान हैं. 50 फर्मों की सूची में,जिन चौकसी की तीन फर्मों का हजारों करोड़ रुपये का कर्जा बैंक भूल जाना चाहते हों तो वे निश्चित ही व्यवस्था के “बड़े” वाले “भाई” हैं. वैसे इस सूची में नौवें नंबर पर किंगफ़िशर एयर लाइन 1943 करोड़ रुपये के कर्जे के साथ मौजूद है,जिसके मालिक माल्या को लगभग साल भर पहले “घसीट कर” भारत लाने की बड़ी हवा बनाई गयी थी !

 साकेत गोखले को दिये जवाब में आर.बी.आई. ने कहा कि यह सूची 30 सितंबर 2019 तक की है यानि उसके बाद तो “भाइयों” की यह सूची अपडेट करने का कष्ट भी बैंकों ने नहीं उठाया. गोखले ने ट्विटर पर लिखा कि बैंकों द्वारा राइट-ऑफ की गई धनराशि इतनी है कि वह कोरोना से लड़ने के लिए भारत द्वारा विश्व बैंक से लिए गए कर्ज से आठ गुना है अथवा कोरोना से लड़ने के लिए घोषित भारत के राहत पैकेज का तीस प्रतिशत है या पैंतालीस करोड़ कोरोना टेस्टिंग किट खरीदने के लिए आवश्यक धनराशि के समतुल्य है.


 यह कर्जा माफ करने की जानकारी ऐसे समय में आ रही है,जबकि केंद्र सरकार और केंद्र की देखादेखी विभिन्न राज्य सरकारें कर्मचारियों और पेंशनरों का मंहगाई भत्ता कोरोना से लड़ने के नाम पर अगले छह महीने के लिए स्थगित करने की घोषणा कर चुकी है. जो देश की सेवा में रात-दिन लगे रहेंगे,टैक्स भी चुकाएंगे,कोई कर्ज होगा तो वो भी चुकाएंगे और फिर महामारी से लड़ने के नाम पर उन्हीं को मिलने वाले वेतन या पेंशन का एक अंश सरकार स्थगित कर देगी ! लेकिन जो सक्षम होते हुए भी हजारों करोड़ रुपए का ऋण डकार जाएँगे और उन पर कार्यवाही के नाम पर बस दे दिया जाएगा, अँग्रेजी नाम- विलफुल लोन डिफॉल्टर ! हजारों करोड़ रुपये कर्ज माफ किए जाने की सहूलियत हो तो यह नाम तमगा ही प्रतीत होगा ! लेकिन बड़े कर्जदाताओं के प्रति यह भाईबंदी, सार्वजनिक धन और सार्वजनिक बैंकों के ताबूत में कील ठोकने का ही काम करेगी.


गरीबों से भाईबंदी नहीं है,मध्य वर्ग से भाईबंदी नहीं है और जिनसे भाई बंदी है,वह इनको तबाह करने वाले भाईबंदी है.     


* इन्द्रेश मैखुरी 

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