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दस डिब्बों की दानवीरता और उसका राष्ट्रीय महातम्य


अद्भुत,अनोखा,अकल्पनीय,अवर्णनीय दृश्य था वह. दान की अनोखी,अनूठी दास्तान,अब तक दान के जितने प्रतीक- प्रतिमान गढ़े गए,सबको बौना साबित करने वाली ! देश में दलबदल,ये दल-वो दल,दलदल करके बने सबसे बड़े दल के सबसे बड़े पद पर आसीन व्यक्ति ने जो जरूरतमंदों की मदद के लिए हाथ आगे निकाला तो तन कृत-कृत हो गया,मन धन्य-धन्य हो गया,दानवीरता हो तो ऐसी ! अपने आलीशान बंगले के आलीशान लॉन में “दुनिया रौशनी” नामधारी चमकती-दमकती गदराई काया प्रकट हुई और हाथ में देखो तो क्या-दस नन्हें-नन्हें डिब्बे खाने के ! वाह,बड़ा आदमी क्या कमाल होता है,ऐसी छोटी-छोटी चीजें भी सोच लेता है. सोचिए तो जो करोड़ों-करोड़ में एक-एक विधायक का सौदा करते हों,उनके लिए दस डिब्बे सोच पाने ही अपने आप में कितनी बड़ी बात है ! और डब्बे भी ऐसे की “दुनिया रौशनी” बाबू की भारी-भरकम काया के सामने मुर्गी के चूजे जैसे !
आप कहते हो दिल्ली में और देश भर में हजारों-हजार मजदूरों को भूखा-प्यासा पैदल चलता देखो. मैं कहता हूँ कि “दुनिया रौशनी” बाबू  को क्यूँ नहीं देखते ?सात सौ करोड़ के दफ्तर वाले दल का मुखिया दस का अंक जानता है,दस लोगों तक तो सोच लेता है ! करोड़ों-करोड़,कई सौ करोड़ की बात करने वालों के लिए दस जैसी तुच्छ संख्या सोच पाना ही क्या किसी पहाड़ चढ़ने से कम है ! 
वो इन दस की भी न सोचते तो कर क्या लेते आप उनका ? हमारे एक अग्रज एक जमाने में चुनाव लड़े. चुनाव लड़ने में कर्जा हो गया. कर्जदार तगादे करने लगे. अग्रज इस गली तो कर्जदार वहाँ कि मेरा पैसा, अग्रज उस गली तो कर्जदार भी उस गली कि भाई मेरा पैसा. एक दिन अग्रज एक कर्जदार पर ताव खा बैठे,बोले- पचास हजार रुपये रखें जेब में,चाहूँ तो अभी मुंह पर मार सकता हूँ पर नहीं दे रहा हूँ तो कोई न कोई बात होगी ना ! बस दस डिब्बों का सूत्र भी उन अग्रज की बात में छुपा है. पूरे देश में जहां चाहो वहाँ पार्टी की पार्टी खरीद सकते हैं,देश भर के सारे रिज़ॉर्ट सरकार बनाने के लिए खरीदे विधायकों को गोठ्याने के लिए हायर किए जा सकते हैं. पर अगर वे दस ही डिब्बे दे रहे हैं खाने के तो जरूर कोई बात होगी ना ! 


और बड़े आदमी की बात देखो,छोटे-छोटे काम में कितनी मेहनत लगती है,उसको ! दस डिब्बे ही नहीं लाने हाथ में,उनका विडियो भी शूट करवाना है,ट्वीट भी करना है. दस डिब्बों का राष्ट्रीय महातम्य भी समझाना है,ट्वीट में ! देवा-रे-देवा ,कितना कष्ट है बड़ा आदमी होने में ! पर इन भूखे नंगे लोगों की खातिर होना पड़ता है,इतना बड़ा ! दुनिया रौशनी बाबू जैसे दस डिब्बों वाले दानवीर न होंगे तो ये नंगे-भूखे पैदल ही घर को निकलने वाले लोग ऐसी दानवीरता को जानेंगे कैसे !

-इन्द्रेश मैखुरी

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