जिस समय दुनिया में इस बात की चर्चा है कि
वेनेजुएला की मारिया कोरीना माचाडो को नोबल शांति पुरस्कार दिया गया है, लगभग उसी समय माचाडो
के देश वेनेजुएला के एक न्यूज़ पोर्टल- वेनेजुएला एनेलिसिस डॉट कॉम पर एक विश्लेषणात्मक लेख है, जिसका शीर्षक है-
विल द यूएस अटैक वेनेजुएला यानि क्या अमेरिका, वेनेजुएला पर हमला करेगा ? उसी पोर्टल पर एक दूसरी खबर है कि वेनेजुएला ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा
परिषद् की आपातकालीन बैठक बुलाने का अनुरोध किया है ताकि वेनेजुएला पर अमेरिकी
हमले को रोका जा सके. खबर के अनुसार चीन और रूस ने वेनेजुएला के इस अनुरोध का
समर्थन किया है.
लब्बोलुआब यह कि वेनेजुएला पर अमेरिकी हमले का खतरा
मंडरा रहा है. जब अपने देश या फिर किसी भी देश पर किसी अन्य देश द्वारा हमले का
खतरा मंडरा रहा हो तो नोबल शांति पुरस्कार विजेता से क्या अपेक्षा होगी ? यही ना कि वो युद्ध
रोकने और शांति की अपील करे. क्या आपने सुना कि मारिया कोरीना माचाडो ने ऐसी कोई
अपील की ? नहीं ना ! उन्होंने
क्या किया ? मारिया कोरीना माचाडो
ने अपना पुरस्कार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को समर्पित कर दिया !
उन्हीं डोनल्ड ट्रंप को जो किसी भी वक्त, उनके देश पर कुछ झूठे बहानों से हमला बोल सकता है.
कार्टून : सतीश आचार्य
जिन लोगों को मारिया कोरीना माचाडो, उनके शांतिकामी और
लोकतंत्र की चैम्पियन होने और उनकी राजनीती को लेकर कोई मुगालता हो, वो ऊपर दिए घटनाक्रम
से समझ सकते हैं कि उन्हें नोबल पुरस्कार बाकी जिस भी काम के लिए मिला हो, लेकिन कम से कम
शांति के लिए तो कतई नहीं मिला है.
उनकी राजनीति के बारे में थोड़ी से पड़ताल करेंगे तो
पता चलेगा कि वे अपने मुल्क वेनेजुएला में शांति और लोकतंत्र की नहीं, अमेरिकी साम्राज्यवाद
की पैरोकार और अमेरिका समर्थक सरकार लाने के लिए तख्तापलट तक की समर्थक रही हैं.
दरअसल सिर्फ वेनेज़ुएला ही नहीं समूचे लैटिन अमेरिका
में ऐसी सरकारें रही हैं, जो अमेरिकी साम्राज्यवाद की पिट्ठू रही हैं, अपने देश के आम जन के हितों के बजाय अमेरिकी
साम्राज्यवाद के हितों को तवज्जो देने वाली. अमेरिका के हितों के खिलाफ अपने देश
के आम जन का ख्याल रखने वाली कोई सरकार, लैटिन अमेरिका के देशों में अमेरिका ने रहने ही नहीं दी. जैसे 1973 में चिली के निर्वाचित कम्युनिस्ट
राष्ट्रपति सल्वाडोर अलेंदे की सीआईए ने हत्या करवा कर, लोकतंत्र बहाली के
नाम पर वहां एक तानाशाह पिनोशे को गद्दी पर बैठा दिया. लैटिन अमेरिका को बैकयार्ड ऑफ़ अमेरिका यानि
अमेरिका का पिछवाड़ा बनाए रखने के लिए अमेरिका साम-दाम-दंड-भेद, सब कुछ अपनाता है.
वेनेज़ुएला में भी 1998 में ह्यूगो शावेज के राष्ट्रपति चुने जाने से पहले
ऐसी सरकारें और हुक्मरान थे, जो सिर्फ अमेरिका और उसके बहुराष्ट्रीय निगमों के हितों के अनुरूप नीतियां
बनाते थे. 1989 में वेनेज़ुएला में खुले बाज़ार की नीतियां लागू कर दी गयी थीं, जिन्होंने आम लोगों
का जीना मुहाल कर दिया था. 1998 में ह्यूगो शावेज का राष्ट्रपति चुना जाना अमेरिकी
साम्राज्यवाद के लिए हैरत में डालने वाला झटका था.
शावेज ने तेल कंपनियों समेत बहुत सारे बड़े निगमों
का राष्ट्रीयकरण किया और तेल से होने वाली आय का उपयोग गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि को बेहतर
करने के लिए किया. जनमत संग्रह के जरिये ही देश का नया संविधान बनाया गया, जिसमें चुनाव की एक
पारदर्शी प्रणाली स्थापित की गयी.
2002 में शावेज तख्तापलट करने की कोशिश की गयी, जिसे वेनेज़ुएला की
जनता ने 48 घंटे में विफल कर दिया. मार्च
2013 में शावेज की मृत्यु के बाद उन्हीं की पार्टी- यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी के
निकोलस मादुरो राष्ट्रपति चुने गए. उन्हें भी गद्दी से हटाने की तमाम कोशिशें
अमेरिका करता रहा है. 04 अगस्त 2018 को
मादुरो पर ड्रोन से हमला करने की कोशिश की गयी, जबकि वो राष्ट्रीय गार्ड को संबोधित कर रहे थे. अमेरिका ने विभिन्न तरह की
पाबंदियां वेनेज़ुएला पर लगाई हुई हैं ताकि वेनेज़ुएला या तो अमेरिका के सामने
समर्पण कर दे या फिर मुल्क के तौर पर
बर्बाद हो जाए.
सनद रहे, वेनेज़ुएला के प्रति द्वेष और दुराग्रह के मामले में झक्की और नोबल शांति
पुरूस्कार के लिए व्याकुल ट्रंप से लेकर सौम्य और नोबल शांति पुरूस्कार प्राप्त
ओबामा तक, सब एक ही पाले में
हैं. 2016 में अपने कार्यकारी आदेश के जरिये तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने
घोषित किया कि “ अमेरिका की राष्ट्रीय
सुरक्षा के लिए और विदेश नीति के लिए वेनेज़ुएला दुर्लभ और अभूतपूर्व खतरा है. ”
अमेरिका समर्थित प्रकाशन खुलेआम वेनेज़ुएला में
तख्ता पलट का आह्वान करते रहे हैं.
ऐसे हालात में वेनेज़ुएला जिन तथाकथित लोकतंत्र की
योद्धा मारिया कोरीना माचाडो की क्या भूमिका रही है ?
मारिया कोरीना माचाडो ने एक बार संसद में ही ह्यूगो
शावेज को गोली मारने की बात कह दी थी.
2002 में ह्यूगो शावेज के 48 घंटे चले तख्तापलट में
वे शामिल रही, जिसे वेनेज़ुएला की
जनता और सेना ने विफल कर दिया.
वो अमेरिका की इच्छा के अनुसार खुले बाज़ार की
उन्हीं नीतियों को लागू करने की पक्षधर है, जिन की मार वेनेजुएला 1980 के दशक के अंतिम वर्षों और 1990 की शुरुआत में भुगत
चुका है और जिनके खिलाफ जनता के विक्षोभ ने ही ह्यूगो शावेज को सत्ता तक पहुंचाया
था. वे सरकारी तेल कंपनी के निजीकरण की पक्षधर हैं और तेल, पानी और ढांचागत
सुविधाएं, सब निजी कंपनियों के हवाले करना चाहती हैं.
अमेरिका जब वेनेज़ुएला के तटों पर नशीले पदार्थों के
आतंक को समाप्त करने के नाम पर नौ सेना के साथ आ धमका है तो वे ट्रंप की ऐसी
हरकतों की समर्थक हैं !
मारिया कोरीना माचाडो अमेरिका द्वारा वेनेज़ुएला पर
लगाए गए प्रतिबंधों की पुरजोर समर्थक हैं.
शांति का नोबल पाने वाली मारिया किस कदर हिंसक हैं, इसका अंदाजा उनके
एक्स (पूर्ववर्ती ट्विटर) पर किये पोस्ट्स से लगता है. अपने एक पोस्ट में मारिया
कोरीना माचाडो लिखती हैं कि वे इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू और 2019 तक
अर्जेंटीना के राष्ट्रपति रहे मॉरिसियो
मकरी को पत्र भेज रही हैं कि वेनेज़ुएला की आपराधिक हुकूमत को नष्ट करने के लिए
अपनी पूरी ताकत और प्रभाव का इस्तेमाल करें !
इन सारे विवरणों से बाकी जो भी निष्कर्ष निकले
लेकिन यह तो स्पष्ट है कि मारिया कोरीना माचाडो किसी भी तरह से ना तो शांति दूत
हैं और ना ही लोकतंत्र के लिए लड़ने वाली योद्धा, जैसा कि नोबल शांति पुरूस्कार देने के बाद उन्हें
चित्रित करने की कोशिश की जा रही है !
दुनिया भर के कई प्रकाशनों द्वारा प्रकाशित किये गए
एक लेख में एक्टिविस्ट मिशेल एल्नर ने लिखा कि मारिया कोरीना माचाडो को नोबल शांति
पुरस्कार मिलने से “शांति” शब्द ने ही अपना अर्थ खो दिया है. एल्नर ने लिखा- माचाडो शांति या प्रगति की प्रतीक नहीं हैं. वो
फासीवाद, जियोनवाद और
नवउदारवाद के वैश्विक गठजोड़ का हिस्सा हैं, एक ऐसी धुरी का हिस्सा जो कब्जे को लोकतंत्र और शांति का मुलम्मा चढ़ा कर सही
साबित करने की कोशिश करता है.
डेमोक्रेसी नाउ
डॉट ऑर्ग के साथ बातचीत में अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी के इतिहास के प्रोफेसर
ग्रेग ग्रैंडइन ने कहा : “.... अब उन्होंने यह ऐसे व्यक्ति को दे दिया है, जिसका गठजोड़ अमेरिकी साम्राज्यवाद के सर्वाधिक
सैन्यवादी, सबसे स्याह चेहरे के साथ है. ये सचमुच हथप्रभ करने वाला चयन
है.”
-इन्द्रेश मैखुरी
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