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किताब कौथीग का विरोध : किताबों के विरुद्ध विद्यार्थियों के एकत्रीकरण का विष गुरु का हुनर !

 


दुनिया में एक बहस तो यह है कि किताबें या छपे हुए शव्द धीरे- धीरे चलन से बाहर हो रहे हैं. आम तौर पर लोग कहते रहते हैं कि अब किताबें कौन पढ़ता है !


दूसरी तरफ इन्हीं किताबों को लोग पढ़ना तो छोड़िये एक जगह पर एक साथ देख भी न सकें, इसके लिए सत्ताधारी पार्टी के मातृ संगठन से लेकर उसके बगल बच्चा संगठन तक सब, श्रीनगर (गढ़वाल) में मैदान में उतर आयें हैं ! लोगों को धर्म के नाम पर लड़वाने वाले, उन्माद- उत्पात की राजनीति करने वाले अगर किताबें का "कौथीग" नहीं होना देना चाहते तो इसका एक अर्थ यह भी है कि उन्माद- उत्पात और फूट की राजनीति के पैरोकार आज भी सर्वाधिक खतरा किताबों से ही महसूस करते हैं ! किताबों को लेकर उनका यह भय बना रहना चाहिए ! किताबों को देख कर उन्हें थरथर कांपना ही चाहिए क्योंकि जिस दिन निर्जीव किताबों में मौजूद ज्ञान, उनके झांसे में आये सजीव मनुष्यों को दिमाग में पहुंच कर असर दिखाने लगा तो उन्माद- उत्पात और फूट की राजनीति का तो तिया-पांचा हो ही जाएगा ! 





यह विचित्र विडंबना है कि किताबों के कौथीग से भयाक्रांत लोग देश को विश्वगुरु बनाने के ठेकेदार भी हैं ! किताबों और मनुष्यों से नफरत करके तो सिर्फ विष गुरु बना जा सकता है, जो भाई लोग बन ही रहे हैं, बना ही रहे हैं ! 


संघी बंधु किताब कौथीग का विरोध करके, उसके स्थान पर जो कार्यक्रम कर रहे हैं, उसका नाम उन्होंने रखा है- विधार्थी एकत्रीकरण ! 





क्यों भाई ये विधार्थी कहीं छूट गए थे, जो इनका एकत्रीकरण करना है ? या ये भेड़- बकरी हैं कि इनको एकत्र करके रेवड़ में लाना है ? किताबों के विरुद्ध विद्यार्थियों का एकत्रीकरण, यह भी गज़ब हुनर है भई - विष गुरु ! 


-इन्द्रेश मैखुरी


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