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“पुलिस ने ठेका नहीं ले रखा है”” से “कहाँ लिखा है कि जवाब देना है”- तक की उधम सिंह नगर पुलिस की यात्रा !

 



 यह इसी साल अगस्त के महीने की बात है. रुद्रपुर में एक निजी अस्पताल में काम करने वाली एक नर्स की हत्या और बलात्कार के मामले में छात्र और अन्य जागरूक नागरिक, उधमसिंह नगर जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय पर प्रदर्शन कर रहे थे. प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत में पुलिस का पक्ष रखने के लिए तत्कालीन एसएसपी डॉ. मंजूनाथ टीसी लगातार बोले जा रहे थे.  बोलते- बोलते वे यहाँ तक कह बैठे कि “समाज किस तरफ जा रहा है, ये अकेले पुलिस ने ठेका नहीं ले रखा है !” एक बेहद संवेदनशील मामले पर बातचीत के बीच कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए जिम्मेदार पद पर बैठे अफसर का यह बयान गैर जिम्मेदाराना था !


उसके कुछ अरसे बाद डॉ. मंजूनाथ टीसी का उधमसिंह नगर जिले से तबादला हो गया और मणिकांत मिश्रा उनकी जगह उधमसिंह नगर जिले के एसएसपी बना कर भेजे गए.


जैसा कि नए अफसर के आने के साथ होता है, कुछ दिन खूब धूम रही, मीडिया ने भी नए एसएसपी के खूब जयकारे लगाए. फिर वक्त की बीतती रफ्तार के साथ फायरिंग में फरार बदमाशों पर पांच रुपया इनाम की राशि घोषित करने जैसे मीडिया हेडिंग बनाने वाले स्टंट करने पर कप्तान उतर आए.


इस बीच में दिनेशपुर,रुद्रपुर आदि स्थानों पर पुलिस के आम लोगों के साथ अभद्रता के किस्से भी सामने आते रहे. दिनेशपुर वाले मामले में तो चर्चा यह भी रही कि थानेदार साहेब कहते हैं कि वे मुख्यमंत्री के आदमी हैं !


मुख्यमंत्री के आदमी का तो कप्तान साहब क्या कर लेते, पर लगता है कि उनसे आचार-व्यवहार की प्रेरणा वे जरूर ले बैठे !


बीते दिनों युवा पत्रकार महेंद्र मौर्य के साथ उधमसिंह नगर जिले के एसएसपी मणिकांत मिश्रा ने जैसा व्यवहार किया, उसे देख कर तो यही लगता है !








   हुआ हूँ कि 25 नवंबर को रुद्रपुर में पुलिस द्वारा एक यातायात चौपाल लगाई गयी. इस चौपाल में कुछ लोगों को पुलिस द्वारा सम्मानित भी किया गया. सम्मानित किए गए लोगों में से एक के आपराधिक प्रवृत्ति के होने पर युवा पत्रकार महेंद्र मौर्य ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मणिकांत मिश्रा से सवाल पूछा. ऐसा सवाल पूछे जाने पर एसएसपी मणिकांत मिश्रा पहले तो थोड़े अचकचाए, लेकिन फिर कैमरे के सामने उन्होंने इस सवाल का बेहद शांत भाव से जवाब दे दिया.










लेकिन जैसे ही औपचारिक रूप से पत्रकार वार्ता समाप्त हुई,वैसे ही एसएसपी मणिकांत मिश्रा, युवा पत्रकार महेंद्र मौर्य पर बिफर पड़े. एसएसपी के रुख से साफ था कि उन्हें इस बात का रंज नहीं था कि उनके हाथों गलत व्यक्ति का सम्मान हो गया बल्कि इस बात की खुंदक थी कि गलत व्यक्ति को सम्मानित करने को लेकर सवाल कैसे पूछ लिया गया. वे बेहद आक्रामक हो कर बोले- आप नहीं पूछेंगे सवाल.......आप के कहने से सवाल का जवाब दूँगा, आप जो पूछोगे,मैं जवाब दूँगा...ये किसने कह दिया कि पत्रकार सवाल पूछेगा तो अधिकारी जवाब देंगे......









पत्रकार महेंद्र मौर्य का तो यह भी आरोप है कि एसएसपी साहब का गुस्सा इतने पर ही शांत नहीं हुआ बल्कि उनकी खड़ी बाइक का आठ हज़ार रुपये का चालान करके, सीज कर दिया गया.


देश के सर्वोच्च पदों पर विराजमान नेतागण तो यह कहते नहीं अघा रहे हैं कि  भारत मदर ऑफ डेमोक्रेसी है और उधमसिंह नगर के पुलिस कप्तान जरा सा सवाल पूछने पर सारी डेमोक्रेसी की ऐसी-तैसी कर दे रहे हैं. वे खुलेआम जवाबदेह होने से इंकार कर रहे हैं, हड़का कर पूरी पुलिसिया हनक के साथ कह रहे हैं कि कहां लिखा कि उन्हें सवालों का जवाब देना है !


हुजूर एसएसपी साहेब पत्रकारों के सवालों का जवाब नहीं देंगे तो सिर्फ अपराधियों पर इनाम की राशि पाँच रुपया करने जैसी स्टंट की खबरें मात्र देंगे इनको ?


माना कि एसएसपी साहेब पीपीएस से आईपीएस हुए हैं पर ऑल इंडिया सर्विस कंडक्ट रूल्स तो पढ़ाये गए होंगे पीपीएस से आईपीएस में प्रोन्नत होते वक्त ! पहली बात तो उसका नाम है आचरण नियमावली. तो जनाब मिश्रा साहेब आपके तो आचरण करने की भी नियमावली तय है. ऐसे भड़किए मत, बौखलाइए मत, उसके अनुसार आचरण कीजिये.


 उन्हीं कंडक्ट रूल्स यानि सेवा आचरण नियमावाली के बिंदु संख्या 3(1ए) (iv) में आपसे यानि अखिल भारतीय सेवाओं के हर अधिकारी से आचरण में जवाबदेही और पारदर्शिता की अपेक्षा की गयी है. सवाल का जवाब देने के बजाय भड़काना तो जवाबदेही की श्रेणी में नहीं आता होगा ना !


 इसी सेवा आचरण नियमावाली के बिंदु संख्या 3(2बी)(i) में लिखा है कि अखिल भारतीय सेवाओं का हर सदस्य संविधान की सर्वोच्चता और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए स्वयं को प्रतिबद्ध करेगा.


हुजूर मणिकांत मिश्रा साहेब सवाल पूछना और उसका जवाब देना दोनों ही संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध होने के लिए जरूरी है, जो आपको सेवा आचरण नियमावली के अनुसार करना है.


जनाब जिससे संविधान की सर्वोच्चता कायम रखने की अपेक्षा आपसे, आपकी सेवा आचरण नियमावली करती है, उसी में एक अनुच्छेद है 19 (1) (ए) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है. इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के बारे में देश का उच्चतम न्यायालय, कई मामलों में कह चुका कि जवाब पाने का अधिकार भी इसमें शामिल है.  


  1975 में उत्तर प्रदेश बनाम राजनारायण के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सार्वजनिक हित के मामलों में हर नागरिक को सूचना पाने और उसे प्रसारित करने का अधिकार है. उधमसिंह नगर जिले के एसएसपी साहेब ध्यान रखें कि इस फैसले में यह अधिकार सिर्फ पत्रकारों तक सीमित नहीं है बल्कि यह हर नागरिक को हासिल है.


इंडियन एक्सप्रेस बनाम भारत सरकार के मामले में 1985 में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतंत्रता भी शामिल है. उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि लोकतंत्र, प्रेस की स्वतंत्रता पर निर्भर है. न्यायालय ने कहा कि यह हर किसी का अविच्छिन्न अधिकार है कि वह सार्वजनिक महत्व के मामलों में स्वतंत्र हो कर टिप्पणी कर सके.


और जनाब एसएसपी साहेब, इस देश में 2005 में एक सूचना का अधिकार कानून भी बना था, जो कहता है कि जो कुछ भी संसद या विधानसभा को बताने से इंकार नहीं किया जा सकता, वो किसी आम नागरिक को बताने से इंकार नहीं किया जा सकता.


अखिल भारतीय सेवा आचरण नियमावाली है, संविधान है, उच्चतम न्यायालय के फैसले हैं और सूचना के अधिकार का कानून है और उधमसिंह नगर जिले के एसएसपी पूछते हैं कि कहां लिखा है कि जवाब देना पड़ेगा ? जनाब मिश्रा साहेब, लोकसेवक हैं आप, जनताके टैक्स के पैसे से तनख्वाह पाते हैं आप और उन्हीं को धमकाएंगे, जवाब नहीं देंगे !  जब तक संविधान, लोकतंत्र और कानून है, तब तक तो यह नहीं चलेगा !


मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पत्रकारों को असरकारी से सरकारी बनाने में लगे हुए हैं ताकि काम-धाम जो हो, जितना हो पर प्रचार में कोई कमी ना आने पाये ! दूसरी तरफ धामी जी के मणिकांत मिश्रा जैसे अफसर हैं, जो सरेआम पत्रकारों को धमका रहे हैं, सवाल पूछने पर दुश्मनी के भाव के साथ उनकी मोटर साइकिल तक जब्त करवा रहे हैं ! कुछ तो समझाइए धामी जी अपने अफसरों को या ये आपके कहने-सुनने में नहीं हैं ?


-इन्द्रेश मैखुरी  

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