29 अक्टूबर 2024 को उत्तराखंड के
टिहरी जिले के कीर्तिनगर में फिर सांप्रदायिक बवाल हुआ. आरोप था कि एक नाबालिग बच्ची
गायब हो गयी है. आरोप था कि कीर्तिनगर में नाई का काम करने वाले दूसरे धर्म के युवक
ने बच्ची को भगा दिया है.
यह उत्तराखंड में आए दिन का घटनाक्रम बनता था जा रहा है
कि एक मुट्ठी भर भीड़ किसी ना किसी बहाने सांप्रदायिक बवाल करती रहती है.
लेकिन कीर्तिनगर का मामला इस मायने में अलग था क्यूंकि
इसमें बच्ची के लापता होने के पहले दिन यानि 28 अक्टूबर को भी बवाल हुआ था और आरोप
लगाया गया था कि बच्ची का धर्मांतरण करने की कोशिश की जा रही है. इस पहलू की सत्यता
की गहनता से जांच की आवश्यकता है. इस मामले
में कीर्तिनगर पुलिस द्वारा एफ़आईआर भी दर्ज की गयी थी. उसके बाद बच्ची का गायब हो जाना, चौंकाने वाली बात थी.
बहरहाल बच्ची के गायब होने की खबर फैलते ही सांप्रदायिक नारे लगाती एक भीड़ कीर्तिनगर की सड़कों पर उतर आई और अल्पसंख्यक समुदाय की बंद दुकानों को निशाना बनाना शुरू किया गया. कुछ फलों की ठेलियां पलटी गयी, क्रेटें सड़क पर फेंकी गयी और बंद दुकानों पर लगे साइनबोर्ड उखाड़ कर फेंके गए.
यह विचित्र बात है कि ऐसे होने के दौरान पुलिस लगातार भीड़ के साथ मौजूद थी. कहीं
पर भी भीड़ को पुलिस ने उत्पात करने से रोकने की कोशिश नहीं की. पहले दिन से इस मामले
में माहौल गर्म था तो क्या पुलिस को भीड़ की ऐसी अराजकता को रोकने के लिए ठोस इंतजाम
नहीं करने चाहिए थे ? इस प्रकरण के वीडियो फुटेज देख कर ऐसा लग
रहा था कि पुलिस ही भीड़ को “एस्कॉर्ट” करके ले जा रही हो !
किसी पर भी यदि अपराध करने का आरोप है तो उससे निपटने
का तरीका क्या होगा ? कोई उन्मादी भीड़ सड़क पर उतरेगी और आरोपी
के पूरे समुदाय को निशाना बना कर, उस अपराध का हिसाब-किताब चुकता
कर ले, क्या यही तरीका होगा किसी अपराध के आरोप से निपटने का
? ऐसे ही हर प्रकरण में
भीड़ को फैसला करने की छूट दे दी जाये तो क्या कानून व्यवस्था कायम रह सकती है ?
सवाल यह भी है कि पिछले कुछ अरसे से, खास तौर पर लोकसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद एकाएक इस तरह की घटनाएं कैसे
घटित हो रही हैं, उनकी संख्या में ऐसी अप्रत्याशित वृद्धि कैसे
है, जिनके बहाने कुछ खास लोगों को सांप्रदायिक बवाल करने का मौका
मिलता है ?
लड़कियों- महिलाओं की सुरक्षा निश्चित ही महत्वपूर्ण है.
लेकिन बवाल सिर्फ उसी वक्त क्यूँ जबकि आरोप दूसरे धर्म वाले पर हो ? स्वधर्म वाले व्यक्ति द्वारा महिलाओं- बच्चियों के विरुद्ध अपराध क्या स्वीकार्य
हैं ? पिछले डेढ़-दो महीने में ही उत्तराखंड में महिलाओं के विरुद्ध
अपराध के दर्जनों मामले सामने आए. यहां तक कि केदारनाथ में महिला
के साथ दुराचार की कोशिश का आरोप लगा और सत्ताधारी पार्टी से संबंधित होने के बावजूद
महिला से उनकी पार्टी ने इस मामले में चुप रहने को कहा. महिला चुप नहीं रही, वो अपनी लड़ाई लड़ रही हैं तो कोई स्वयंभू धर्म का ठेकेदार उनके साथ नहीं खड़ा
है.
ऐसे तमाम मामलों
में धर्म के स्वयंभू रक्षकों की जुबान खामोश रहती है क्यूंकि वहां आरोपी स्वधर्मी था
और इसलिए उसमें सांप्रदायिक बवाल करने की गुंजाइश नहीं थी !
कीर्तिनगर के प्रकरण में पुलिस ने बच्ची को नजीबाबाद से
बरामद कर लिया और सलमान व शान मालिक को गिरफ्तार कर लिया.
इस प्रकरण में पुलिस ने एक स्थानीय व्यक्ति राकेश भट्ट
को भी गिरफ्तार किया है, जिस पर आरोप है कि उसने बच्ची को भगाने
में मदद की. आम चर्चा यह है कि उक्त व्यक्ति एक हिंदुवादी संगठन से जुड़ा हुआ है. इस
व्यक्ति के इस मामले में आरोपी बनाए जाने से तो किसी गहरे षड्यंत्र का अंदेशा होता
है. एक तरफ हिंदुवादी कहे जाने वाले संगठन बच्ची के गायब होने पर बवाल करते है और दूसरी
ओर उन्हीं से जुड़ा हुआ एक व्यक्ति बच्ची के गायब होने में मददगार के तौर पर शामिल है
! क्या यह आसानी से हजम होने वाली बात है ? ऐसा प्रतीत होता है
कि सांप्रदायिक बवाल करने लायक माहौल बना रहे, इसके लिए परिस्थितियां
बनाने में वे खुद भी शामिल हैं, जो ऐसी घटनाओं में सर्वाधिक उग्र
नज़र आते हैं !
उन्माद, उत्पात और भीड़ की हिंसा
से ना तो न्याय हो सकता है और ना ही समाज में अमन-चैन कायम रह सकता है. किसी अपराध
के आरोप के निपटारे का जिम्मा किसी उन्मादी भीड़ के हाथ नहीं सौंपा जा सकता है, यह बात समाज, प्रशासन और पुलिस को अच्छी तरह समझ लेनी
चाहिए.
-इन्द्रेश मैखुरी
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