*दिल्ली में कई पत्रकारों के घरों पर छापेमारी और उन्हें हिरासत में लिए जाने की घटना निंदनीय है.
मोदी सरकार द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता पर हमला जारी है.
जिन पत्रकारों के घरों पर दिल्ली पुलिस द्वारा छापा मारा गया है, वे दशकों से निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं और हमेशा से ही सत्ता को आईना दिखाने का काम करते रहे हैं.
ऐसे पत्रकारों पर छापेमारी करके केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाली दिल्ली पुलिस न केवल इन पत्रकारों को जनसरोकारों के पक्ष में खड़े रहने के लिए धमकाने की कोशिश कर रही है बल्कि वह, इनसे इतर भी जो पत्रकार जनसरोकारों से जुड़े हैं, उन्हें भी भयाक्रांत करने की कोशिश कर रही है. इससे साफ है कि केंद्र की मोदी सरकार देश में केवल अपना गुणगान करने वाला चारण मीडिया चाहता है, जिसे लोकप्रिय तौर पर गोदी मीडिया कहा जा रहा है.
केंद्र की मोदी सरकार बीते दिनों के घटनाक्रम से भयभीत है और उसी भय में बदले की कार्यवाही के तौर पर इन पत्रकारों को निशाना बनाया गया है. विपक्षी पार्टियों के इंडिया गठबंधन के रूप में संगठित होने, उसके बाद पुरानी पेंशन स्कीम के पक्ष में कर्मचारियों का दिल्ली में भारी संख्या में जुटना और बिहार में जातीय जनगणना के परिणामों की घोषणा, वो कारक हैं, जिसके चलते केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह हताश और बदहवास हो गयी है. पत्रकारों, एक्टिविस्टों और स्टैंड अप कॉमेडियनों पर छापेमारी, केंद्र सरकार की इसी हताशा और बदहवासी की अभिव्यक्ति है. पहले से ही विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों में 161 वें स्थान पर है. केंद्र सरकार की इस कार्यवाही के बाद दुनिया भर में प्रेस स्वतंत्रता के मामले में देश की साख और रसातल को जाएगी.
हम तत्काल मीडिया की स्वतंत्रता पर हमले की इस कार्यवाही को रोके जाने की मांग करते हैं. धरातल की हलचल के संदेशों को सामने लाने वाले संदेशवाहक मीडिया का शिकार करने के बजाय, मोदी सरकार को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए और इस मुल्क में बीते साढ़े नौ साल से बरपाई गयी तबाही के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए.
- केंद्रीय कमेटी, भाकपा(माले)
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