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हाईकोर्ट से चंपत हुए क्रशर मालिकान !

 








उत्तराखंड के चमोली जिले की थराली तहसील में कुलसारी के बाजार से कुछ किलोमीटर ऊपर ग्राम पास्तोली के राजस्व ग्राम ककड़तोली में लगाए जा रहे  स्टोन क्रशर के खिलाफ लगभग साल भर से महिलाएं और युवा लगातार आंदोलनरत हैं.


ठेठ पहाड़ी क्षेत्र में स्टोन क्रशर लगने से पर्यावरण, खेती और जीवन को होने वाले संभावित नुकसान को देखते हुए उक्त महिलाएं और युवाओं ने आंदोलन की राह पकड़ी तो उन्हें छकाने, थकाने और प्रताड़ित करने के लिए क्रशर लगाने वाले धनपति ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. जिस वक्त क्रशर के विरुद्ध इस इलाके में आंदोलन शुरू हुआ, उस वक्त यह इलाका पटवारी क्षेत्र में था. इसके बावजूद रेगुलर पुलिस के जरिये आंदोलनकारियों को डराने-धमकाने की कोशिश हुई. बाद में तो इस इलाके को रेगुलर पुलिस को ही सौंप दिया गया. प्रशासन के नुमाइंदे चाहे वो तहसीलदार हों या पटवारी, वे प्रशासनिक अफसर से ज्यादा क्रशर वाले के नुमाइंदे की तरह से आंदोलनकारियों से पेश आते रहे.


हालांकि अन्य तर्कों के अलावा क्रशर विरोधी आंदोलनकारियों के पास जिला विकास अधिकारी की 13 सितंबर 2022 की जांच रिपोर्ट भी है, जो बिंदुवार तरीके से बताती है कि स्टोन क्रशर का लगाया जाना अवैध है. लेकिन ऐसा लगता है कि चमोली जिले के जिलाधिकारी से लेकर थराली के नए-नवेले कोतवाल तक, इस रिपोर्ट को रिपोर्ट ही नहीं समझते !  इसलिए वे क्रशर लगाने को बिल्कुल वैधानिक समझते हैं और आंदोलनकारियों को क्रशर निर्माण की राह में रोड़ा ! इसी समझ से वो आंदोलनकारियों के साथ पेश आते हैं, कई बार सभ्यता की सीमाओं से परे जा कर भी उनसे निपटना चाहते हैं !


क्रशर स्वामी न केवल पुलिस और प्रशासन का प्रयोग, आंदोलनकारियों को हैरान-परेशान करने के लिए कर रहा है बल्कि अदालत में केस दाखिल करने को भी पैंतरे की तरह इस्तेमाल कर रहा है.


इसी पैंतरे को आजमाते हुए स्टोन क्रशर के मालिकान ने अक्टूबर 2022 में उच्च न्यायालय, नैनीताल में एक याचिका दाखिल की. उक्त याचिका में दावा किया गया था कि उनके पास स्टोन क्रशर लगाने के लिए तमाम वैध अनुमतियां हैं, लेकिन उन्हें क्रशर नहीं लगाने दिया जा रहा है. पता नहीं तैश में या सोची-समझी रणनीति के तहत उक्त याचिका में उन तमाम प्रशासनिक और पुलिस अफसरों को पार्टी बना दिया गया, जो धरातल में क्रशर स्वामी के ही पक्षकार नज़र आते हैं.


प्रशासन ने भी आव देखा, न ताव, इस रिट के बाद दोनों पक्षों को शांति भंग का नोटिस दे दिया ताकि उच्च न्यायालय में जवाब दे सकें !


बहरहाल उच्च न्यायालय की रिट में क्रशर स्वामी ने केवल सरकारी अफसरों  को ही पार्टी नहीं बनाया बल्कि आंदोलनकारियों को पार्टी बना दिया. 17 प्रतिवादियों में से 11 प्रतिवादी, आंदोलनकारी बनाए गए और उनमें से भी अधिकांश महिलाएं. क्रशर विरोधी आंदोलन के हर मोर्चे पर जूझ रहे इंकलाबी नौजवान सभा के राज्य संयोजक मंडल के सदस्य कपूर सिंह रावत तो कहते हैं कि प्रतिवादी बनाने में सबसे गरीब महिलाओं को चुना गया. इसके जरिये आंदोलन कर रही महिलाओं में भय पैदा करने और फूट डालने की कोशिश की गयी.


बहरहाल आंदोलनकारी तो घबराए नहीं. इसमें एसडीएम कोर्ट, जिला न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालय तक के जनपक्षधर अधिवक्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही, जिन्होंने निशुल्क इन आंदोलनकारियों की पैरवी की.

 

ऐसा लगता है कि उच्च न्यायालय की धमकी से भी आंदोलनकारियों को न घबराता देख क्रशर मालिकान के ही पाँव उखड़ गए और उच्च न्यायालय, नैनीताल से खिसक लेने में ही उन्होंने अपनी भलाई समझी.














ऐसा किसी कयास या अनुमान के आधार पर नहीं कहा जा रहा है बल्कि स्टोन क्रशर स्वामियों की याचिका को निस्तारित करते उच्च न्यायालय नैनीताल के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने 26 अप्रैल 2023 को अपने फैसले में लगभग ऐसा ही लिखा. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने लिखा- “याचिका की पुकार लगाए जाने पर याचिकाकर्ता की तरफ से कोई पेश नहीं हुआ.................ऐसा प्रतीत होता है कि इस याचिका में याचिकाकर्ता की रुचि अब नहीं रह गयी है. याचिका तदनुसार निस्तारित की जाती है.


आखिर क्या वजह रही कि जो स्टोन क्रशर स्वामी बड़े गाजे-बाजे के साथ उच्च न्यायालय गए और क्षेत्र में आंदोलनकारियों के बारे में अफवाह फैलते रहे कि वे तो नैनीताल जाते-जाते ही बिक जाएँगे, उनको जेल हो जाएगी, जुर्माना लग जाएगा आदि आदि, वे छह महीने बीतते-न-बीतते उच्च न्यायालय में अपना वकील खड़ा करने की स्थिति में भी न रहे और मुंह छुपा कर निकल लिए ?

संभवतः आंदोलनकारियों को डिगता न देख क्रशर स्वामियों को समझ में आ गया होगा कि वे कानूनी रूप से कमजोर जमीन पर खड़े हैं और मुमकिन है कि उनकी याचिका में, उनके ही खर्चे पर, उच्च न्यायालय कहीं क्रशर पर ताला न लगवा दे क्यूंकि कानूनी मामला उनका बेहद नाजुक है !












इन पंक्तियों को लिखते वक्त सूचना प्राप्त हुई कि निचली अदालत का एक और समन आंदोलनकारियों को भेजा गया है. अरे क्रशर मालिको, तुम और कुछ करो-न करो पर पहले अपने सलाहकार बदलो भाई ! जो हाई कोर्ट से भयभीत नहीं हुए, वे अब निचली अदालत में खड़े होने से घबराएंगे ? अरे उनका मुकदमा तो फिर कोई जनपक्षधर अधिवक्ता निशुल्क लड़ लेगा और तुम पैसा खर्च करोगे ! नए केस की न सोचो, अपना सामान बांधो भाई !


-इन्द्रेश मैखुरी   

 

 

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