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उत्तराखंड में सांप्रदायिक नफरत की जड़ें गहरी करने की कोशिशों

 








पूरे देश में जो वर्तमान निज़ाम है, सांप्रदायिक विभाजन और घृणा उसका एक अनिवार्य तत्व है. निरंतर ऐसे प्रयास किए जाते हैं, जिससे सांप्रदायिक घृणा का फैलाव निरंतर होता रहे. उसका स्थायी राग है कि बहुसंख्यक खतरे में हैं ! कोई पलट कर पूछे तो कि देश और अधिकांश प्रदेशों में भी तुम, बहुसंख्यक धर्म के स्वयंभू ठेकेदार सत्ता में हो तो उसके बावजूद उस धर्म पर यह तथाकथित खतरा क्यूं मंडरा रहा है ? तुम्हारे सत्ता में रहने से यदि उस धर्म पर खतरा बढ़ रहा है, जिसके तुम स्वयंभू ठेकेदार हो तो इस खतरे से उबरने का उपाय तो तुम्हारी सत्ता से बेदखली ही है !


उत्तराखंड अपेक्षाकृत शांत प्रदेश है. लेकिन बीते कुछ वर्षों से उत्तराखंड में भी सांप्रदायिक विभाजन की खाई को चौड़ा करने के प्रयास निरंतर जारी हैं.


बीते दिनों देहरादून जिले के हनोल में धर्मसभा नाम से एक आयोजन हुआ. अंग्रेजी अखबार- टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, इस “धर्म सभा का आयोजन किसी रुद्रसेना द्वारा किया गया था. इस आयोजन में उसी तरह के सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देने वाले वक्तव्य दिये गए, जैसे कि इस तरह के आयोजन की विशेषता बनते जा रहे हैं. उस में साधुवेश धारियों ने जो “प्रवचन” दिये, वे धर्म और सद्भाव के नहीं थे, बल्कि उनमें दूसरे धर्म के लोगों के बहिष्कार का आह्वान किया गया, दूसरे धर्म के लोगों को उत्तराखंड में न रहने देने और कारोबार न करने देने का आह्वान किया गया. यहां तक कहा गया कि यदि सरकार, दूसरे धर्म वालों को बाहर नहीं करेगी तो ये लोग करेंगे, ऐसी तैयारी का आह्वान किया गया, सफाये का तक आह्वान किया गया.










https://timesofindia.indiatimes.com/city/dehradun/at-dharm-sabha-in-uttarakhand-call-for-targeted-violence/articleshow/99744980.cms?fbclid=IwAR1DEff7rH1UQdsVXgbpO_QNtwS3ucRg95H7rfM6ghzYjk_Kq1eOGWR_a4A&from=mdr



हैरत यह है कि इस कार्यक्रम की अनुमति देते समय प्रशासन ने यह शर्त रखी थी कि घृणा फैलाने वाले भाषण नहीं दिये जाएंगे, मौके पर पुलिस भी मौजूद थी, एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के अनुसार तो देहरादून के अपर जिलाधिकारी डॉ. शिव कुमार बरनवाल और एसपी(देहात) कमलेश उपाध्याय भी मौके पर मौजूद थी, पर घृणा फैलाने वाले वक्तव्य खुल कर दिये जाते रहे और कोई कार्यवाही नहीं हुई.


गौरतलब है कि दिसंबर 2021 में हरिद्वार में इसी तरह धर्म संसद के नाम से हुए आयोजन में जम कर सांप्रदायिक घृणा और हिंसा फैलाने के आह्वान करते हुए वक्तव्य दिये गए. उस मामले में कुछ एफ़आईआर भी दर्ज हुए थे और उत्तराखंड सरकार और पुलिस का उच्चतम न्यायालय द्वारा जवाब तलब भी किया गया था.


बीते मार्च महीने में ही उच्चतम न्यायालय ने घृणा फैलाने वाले भाषणों के मामले में कठोर टिप्पणी की थी. उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने कहा था कि “घृणा फैलाने वाले वक्तव्य, इसलिए होते हैं क्यूंकि राज्य नपुंसक है, राज्य शक्तिहीन है, वह समय पर कार्यवाही नहीं करता.”


लेकिन लगता है कि उत्तराखंड सरकार को उच्चतम न्यायालय की इस टिप्पणी से कोई ज्यादा सरोकार नहीं है.


न्यायमूर्ति के एम जोसफ ने तो यहाँ तक कहा कि “जैसे ही धर्म को राजनीति से अलग कर दिया जाएगा, वैसे ही यह सब बंद हो जाएगा.”


धर्म को राजनीति से अलग करना तो दूर की बात है, अभी तो धर्म और धार्मिक उन्माद का राजनीतिक रोटियाँ सेंकने के लिए भरपूर इस्तेमाल हो रहा है.


उत्तराखंड में तो ऐसा लगता है कि स्वयं मुख्यमंत्री भी इसमें शामिल हैं. बीते कुछ अरसे से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी निरंतर यह राग अलाप रहे हैं कि लैंड जेहाद नहीं होने देंगे. धर्म संसद वाले स्वयंभू कह रहे हैं कि जेहादियों का सफाया करो, मुख्यमंत्री लैंड जेहाद का जाप कर रहे हैं. दोनों का स्वर काफी मिलता-जुलता प्रतीत होता है.


 लैंड जेहाद के मुख्यमंत्री के दावे के बाद वन भूमि पर अवैध धर्म स्थल तोड़ने के आदेश उत्तराखंड सरकार ने दिये. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दावा किया कि वन भूमि पर एक हजार से अधिक मजारें बनी हुई हैं. लेकिन उत्तराखंड के वन विभाग के प्राथमिक सर्वे ने मुख्यमंत्री के इस दावे की हवा निकाल दी. अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दी अखबार- राष्ट्रीय सहारा में छपी रिपोर्टों के अनुसार उत्तराखंड सरकार के वन विभाग द्वारा किए गए प्राथमिक सर्वेक्षण में पाया गया कि वन भूमि पर मंदिरों की संख्या मजारों से कई गुना ज्यादा है. टाइम्स ऑफ इंडिया में 19 अप्रैल को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार गढ़वाल क्षेत्र के चार वन क्षेत्रों में 155 अवैध मंदिर, 10 मजारें और दो गुरुद्वारे हैं. कुमाऊँ के 10 वन प्रभागों में लगभग 115 आनधिकृत मंदिर हैं. पूर्णगिरी और गर्जिया जैसे मंदिर भी इस सूची में हैं.






टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर का लिंक : 

https://timesofindia.indiatimes.com/city/dehradun/more-illegal-temples-in-uttarakhand-forests-than-mazaars/articleshow/99526677.cms?fbclid=IwAR3KI8CVjiqCYJ4hNsqEQ_f7rviSivUuSKzVpek82JikYz961KkHcgr_sKQ&from=mdr







संभवतः दांव उल्टा पड़ते देख कर ही वन मंत्री सुबोध उनियाल को अखबारों को बयान देना पड़ा कि वनों में अवैध ढांचों का निर्माण धार्मिक मुद्दा नहीं है बल्कि वन भूमि पर अवैध अतिक्रमण का मसला है. होना तो यही चाहिए कि अपराध को अपराध की निगाह से देखा जाये और कार्यवाही की जाए, लेकिन अपराध पर धर्म की चादर लपेट कर, उसके जरिये राजनीतिक उल्लू सीधा करने की कोशिश है.


वैसे यह हैरत की बात है कि जमीन को धार्मिक उन्माद का मसला उस सरकार के मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिनकी पार्टी के ही पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री ने प्रदेश की ज़मीनों की बेरोकटोक बिक्री का इंतजाम किया था. पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने 2018 में उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम,1950 में संशोधन करवाते हुए, यह प्रावधान करवा दिया कि औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूमि खरीद की कोई सीमा (सीलिंग) नहीं होगी, उसके लिए कोई कितनी भी जमीन खरीद सकता है. जमीन की इस बेखटके असीमित बिक्री का इंतजाम होने के बाद उस कानून में जो थोड़ी जान बची थी, उसे निकालने का काम, उन्हीं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने किया, जो आज कल लैंड जिहाद का राग अलाप रहे हैं. ऊपर वर्णित जमीन के कानून में ज़मीनों की असीमित खरीद का प्रावधान कर देने के बावजूद उसमें यह प्रावधान शेष था कि भूमि जिस प्रयोजन के लिए ली जाएगी, यदि उस प्रयोजन के लिए उपयोग नहीं की जाती है तो ऐसी जमीन सरकार के खाते में दर्ज हो जाएगी. बीते बरस सत्ता में आने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा में कानून में संशोधन करवा कर, इस प्रावधान को समाप्त करवा दिया. अब कोई भी धनपति चाहे तो उत्तराखंड में जितनी मर्जी जमीन खरीदे और उसका जो मर्जी उपयोग करे, कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है. प्रदेश की ज़मीनों की ऐसी बेरोकटोक बिक्री का इंतजाम करने वाला मुख्यमंत्री,जब ज़मीनों को बिकने के मामले में चिंता प्रकट करता है और उसमें जबरन जेहाद का एंगल जोड़ देता है तो उनका उद्देश्य न तो ज़मीनों को बचाना है और ना ही अतिक्रमण की उन्हें कोई चिंता है, उनका मकसद तो धार्मिक ध्रुवीकरण कर अपनी राजनीतिक विफलताओं पर पर्दा डालना है.


विधानसभा से लेकर यूकेएसएसएससी तक युवाओं की नौकरियों की लूट हो रही है, अंकिता भंडारी, जगदीश चंद्र, केदार भंडारी आदि की हत्याएँ, इस बात के उदाहरण हैं कि राज्य में कानून-व्यवस्था चौपट है, जोशीमठ की तबाही को देश दुनिया देख रही है और राज्य के कई हिस्से संसाधनों की बेतहाशा दोहन से तबाही के कगार पर खड़े हैं.  राज्य में जीवन, आजीविका और संसाधनों की लूट बेधड़क चल रही है, ऐसे में धार्मिक ध्रुवीकरण को तेज कर नफरत की राजनीति को हवा दी जा रही है तो निश्चित ही इसका उद्देश्य सत्ता पक्ष की विफलताओं को ढकना और इस घृणा की आंच में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना है.


आम उत्तरखंडी को इस षड्यंत्र से सावधान रहना चाहिए.


     -इन्द्रेश मैखुरी

  

 

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1 Comments

  1. This issue has to be taken up by the major/established opposition parties. Why are they not raising the issue? We should pressurize them also.

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