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आभार प्रकट करिए, उस कानून का जो अभी कानून हुआ नहीं !

 







उत्तराखंड में आजकल आभार प्रदर्शन ज़ोरों पर है. आभार प्रदर्शन के आयोजक कौन हैं- सत्ताधारी पार्टी के लोग, आभार किसका कर रहे हैं- सत्ताधारी पार्टी का. कुल मिला कर भाजपा का,भाजपा के द्वारा,भाजपा के लिए आभार का पैगाम है ! ऐसा समझिए कि आप स्वयं को, स्वयं के होने के लिए, स्वयं महान घोषित कर दें  और इस स्व घोषित महानता के लिए फिर स्वयं का ही आभार प्रदर्शन भी कर दें! इसे सरल भाषा में कहा जाता है- अपनी पीठ खुद थपथपाना ! इसके लिए एक और लोकप्रिय मुहावरा है- अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना !


पर आदमी को अपनी पीठ खुद कब थपथपानी पड़ती है, अपने मुंह मियां मिट्ठू कब बनना पड़ता ? जब कोई दूसरा आपकी पीठ थपथपाने को तैयार न हो, जब  आपकी तारीफ कोई दूसरा मुंह करने को राजी न हो !


राज्य में लगातार भर्ती परीक्षाओं में घपला सामने आ रहे हैं. कुछ दिनों पहले ही भर्ती परीक्षाओं में धांधली की सीबीआई जांच करने की मांग करने वाले युवाओं को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की पुलिस ने जम कर पीटा और फर्जी मुकदमा बना कर जेल भेज दिया. उस फर्जीवाड़े की तस्दीक अदालत के जमानत आदेश ने भी कर दी.


तो जाहिर सी बात है कि ये युवा तो मुख्यमंत्री का आभार इस लाठी प्रहार और फर्जी मुकदमों के लिए करते नहीं ! हो ऐसा भी सकता था कि मुख्यमंत्री जी, इनकी जमानत के लिए यह शर्त तजवीज़ करा देते कि जेल से रिहा होते ही इन्हें जेल भेजने के लिए मुख्यमंत्री का आभार प्रदर्शन करना होगा ! पर यह धांसू आइडिया धाकड़ भय्या और उनके सलाहकारों के दिमाग में आया नहीं, इसलिए हकीकत न बन सका !


युवाओं पर लाठीचार्ज और उन्हें जेल भेजने से चारों तरफ से आलोचना का शिकार हो रहे मुख्यमंत्री को आभार अल्पता यानि आभार का एनीमिया महसूस होने लगा था. उन्होंने या उनके सलाहकारों ने महसूस किया होगा कि मुख्यमंत्री को आभार के बूस्टर डोज़ की तत्काल जरूरत है. युवाओं का क्या है, वे तो पिटते रहते हैं, जेल भी जाते रहते हैं पर उनके चक्कर में मुख्यमंत्री को आभार एनीमिया से ग्रसित नहीं होने दिया जा सकता ना !


सो तत्काल अपने पार्टी के युवा पन्ना प्रमुख से लेकर पव्वा प्रमुख तक को निर्देश जारी किया गया कि मुख्यमंत्री को आभार एनीमिया से बाहर निकालना है, तुरंत  आभार रैली निकालो. बस फिर क्या था- पन्ना प्रमुख, अद्दा प्रमुख, पव्वा प्रमुख सब उतर पड़े आभार-आभार के हाहाकारी राग के साथ ! जिन्होंने खुद कोई परीक्षा न दी हो, “हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान” के नारे के बावजूद हिंदी के दो अक्षर ठीक से न लिख सकते हों, हाकम सिंह जिनका रोल मॉडल और संजय धारीवाल जिनका मंडल अध्यक्ष रहा हो, वे सब आभार प्रदर्शन की रैली में निकल पड़े ! अकल के पीछे वो वैसे ही लट्ठ लिए पड़े रहते हैं, कुछ दिन आभार पर ही थोड़ा भार रख लेंगे !











आभार किसका करना- नकल विरोधी कानून का ! क्यूं ? बक़ौल हाहाकारी,आभारियों के – देश का सबसे कठोर नकल विरोधी कानून बना दिया धामी जी ने ! हां जी बहुत ही कठोर है, नकल करना गुनाह हो न हो, नकल की बात करना गुनाह है, इस कानून में ! देखा नहीं, उत्तरकाशी में एक युवा ने अपने पेपर की सील टूटी होनी की बात की और उस पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया. बेहद कठोर मामला है, बंधू नकल करो तो करो पर नकल की बात कतई न करो, वरना मुकदमा दर्ज हो जाएगा !


धीरे-धीरे आभारी भार की चपेट में सरकारी विभाग भी आने लगे, उन्होंने भी सरकार की जयजयकार करते हुए लिखना शुरू किया- ऐतिहासिक नकल विरोधी कानून बनाया ! 












भाई सूचना समेत सरकारी विभाग वालो, माना कि तुम्हारी तनख्वाह सरकार में जो बैठा है, उसकी जयजयकार पर टिकी है ! पर हे सचिव, डाइरेक्टर, डिप्टी डाइरेक्टर, ज्वाइंट डाइरेक्टर आदि-आदि, तुम सरकारी मुलाज़िम हो,पन्ना प्रमुख, अद्दा प्रमुख, पव्वा प्रमुख नहीं ! तुम तो जानते होगे कि अध्यादेश और कानून में अंतर होता है ! अध्यादेश को कानून बनने के लिए विधानसभा के दरवाजे से गुजरना पड़ता है ! आभार के भार तले इस कदर न दब जाओ भाई कि अध्यादेश को ही कानून घोषित कर डालो ! सरकार में दो क्या दस-पंद्रह इंजन भी लगे हों तो भी अध्यादेश को कानून घोषित करने लायक स्थिति उनकी नहीं है !


वैसे मुख्यमंत्री आभार एनीमिया अभी भी महसूस कर रहे हों तो कल हुई कनिष्ठ सहायक परीक्षा होने के लिए भी आभार रैली आयोजित करवा सकते हैं. उस परीक्षा में चार सेटों में एक ही तरह के प्रश्न थे तो क्या हुआ ! अगर यातायात के झटकों से पटवारी परीक्षा के पेपर की सील टूट सकती है तो चार सेटों में एक ही तरह के प्रश्न होने से भी परीक्षा सुरक्षित रह सकती है. बात यह नहीं है कि प्रश्न पत्र कैसे थे बल्कि मार्के की बात यह है कि परीक्षा हुई ! परीक्षा हुई, क्या इतना काफी नहीं है, मुख्यमंत्री के लिए कि वे स्वयं का आभार करवाने के लिए रैली करवा सकें !


 वैसे ही आप सबसे हैंडसम मुख्यमंत्री हैं ! ये भी या तो आप ही जानते हो या आपको हैंडसम घोषित करने वाले ! तो जब तक कुर्सी पर हो तब तक खुद को हैंडसम घोषित करवाओ, सरकारी खर्चे पर अपनी पार्टी से अपना आभार करवाओ ! जिस दिन कुर्सी गयी तो उस दिन अपना आ और भार यानि आने-जाने का भार भी खुद ही ले कर घूमना पड़ता है. यकीन न हो तो त्रिवेंद्र भाई से पूछ लो ! वे बेचारे अपने कारनामे, जिनको वे उपलब्धि समझते हैं, का भार खुद ही लिए घूम रहे हैं. मजाल है कि पार्टी के अंदर से भी कोई उनके कारनामों को उनकी उपलब्धि बता दे ! तो आप भी जब तक सत्ता है, तब तक आभार करवाओ, खुद को हैंडसम घोषित करवाओ, जो मर्जी आए करो, कुर्सी रहने तक- जस्ट चिल ब्रो !


-इन्द्रेश मैखुरी

 

 

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1 Comments

  1. आभार व भार के बीच की अनूठी कशमश!

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