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अंधेर नगरी के चौपट राजा की कहानी सुनी है, हैंडसम भैया ?















सुनते हैं कि हमारे राज्य के मुख्यमंत्री देश में सबसे हैंडसम हुए जाते हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि राज्य का कामकाज उनके हैंड यानि हाथ से निकला जाता है.

भर्ती परीक्षाओं में नकल और पर्चा लीक होने की घटनाएं काफी समय से सामने आ रही थीं. युवाओं में आक्रोश था और है, वे सड़कों पर उतरे, दमन का शिकार हुए जेल भी भेजे गए. आनन-फानन में सरकार ने ऐलान किया कि नकल विरोधी अध्यादेश लागू किया जा रहा है. 12 फरवरी को हुई पटवारी भर्ती परीक्षा के बाद नकल विरोधी अध्यादेश का पहला मुकदमा दर्ज किया गया. लेकिन मुकदमा किसी नकल कराने वाले या पेपर लीक कराने वाले पर नहीं हुआ, मुकदमा दर्ज हुआ एक अभ्यर्थी पर जिसने शिकायत की कि उसका पेपर सील नहीं था.









नकल अध्यादेश में नकल करने-करवाने वालों पर मुकदमा न होने के बजाय पेपर की सील टूटने की शिकायत करने वाले पर मुकदमा दर्ज होने से बरबस ही 1881 में प्रकाशित भारतेन्दु हरिश्चंद्र के प्रख्यात नाटक “अंधेर नगरी,चौपट राजा” की याद आ गयी.



बात आगे बढ़ाने से पहले भारतेन्दु हरिश्चंद्र के नाटक का वह अंश देखिये जिसमें राजा के न्याय का नमूना पेश किया गया है :





“फरियादी : दोहाई है महाराज दोहाई है। हमारा न्याव होय।
राजा : चुप रहो। तुम्हारा न्याव यहाँ ऐसा होगा कि जैसा जम के यहाँ भी न होगा। बोलो क्या हुआ?


फरियादी : महाराजा कल्लू बनिया की दीवार गिर पड़ी सो मेरी बकरी उसके नीचे दब गई। दोहाई है महाराज न्याय हो।


राजा : (नौकर से) कल्लू बनिया की दीवार को अभी पकड़ लाओ।
मन्त्री : महाराज, दीवार नहीं लाई जा सकती।


राजा : अच्छा, उसका भाई, लड़का, दोस्त, आशना जो हो उसको पकड़ लाओ।


मन्त्री : महाराज! दीवार ईंट चूने की होती है, उसको भाई बेटा नहीं होता।
राजा : अच्छा कल्लू बनिये को पकड़ लाओ।


(नौकर लोग दौड़कर बाहर से बनिए को पकड़ लाते हैं) क्यों बे बनिए! इसकी लरकी, नहीं बरकी क्यों दबकर मर गई?


मन्त्री : बरकी नहीं महाराज, बकरी।


राजा : हाँ हाँ, बकरी क्यों मर गई-बोल, नहीं अभी फाँसी देता हूँ।


कल्लू : महाराज! मेरा कुछ दोष नहीं। कारीगर ने ऐसी दीवार बनाया कि गिर पड़ी।


राजा : अच्छा, इस मल्लू को छोड़ दो, कारीगर को पकड़ लाओ। (कल्लू जाता है, लोग कारीगर को पकड़ लाते हैं) क्यों बे कारीगर! इसकी बकरी किस तरह मर गई?


कारीगर : महाराज, मेरा कुछ कसूर नहीं, चूनेवाले ने ऐसा बोदा बनाया कि दीवार गिर पड़ी।


राजा : अच्छा, इस कारीगर को बुलाओ, नहीं नहीं निकालो, उस चूनेवाले को बुलाओ।


(कारीगर निकाला जाता है, चूनेवाला पकड़कर लाया जाता है) क्यों बे खैर सुपाड़ी चूनेवाले! इसकी कुबरी कैसे मर गई?


चूनेवाला : महाराज! मेरा कुछ दोष नहीं, भिश्ती ने चूने में पानी ढेर दे दिया, इसी से चूना कमजोर हो गया होगा।


राजा : अच्छा चुन्नीलाल को निकालो, भिश्ती को पकड़ो। (चूनेवाला निकाला जाता है भिश्ती, भिश्ती लाया जाता है) क्यों वे भिश्ती! गंगा जमुना की किश्ती! इतना पानी क्यों दिया कि इसकी बकरी गिर पड़ी और दीवार दब गई।


भिश्ती : महाराज! गुलाम का कोई कसूर नहीं, कस्साई ने मसक इतनी बड़ी बना दिया कि उसमें पानी जादे आ गया।


राजा : अच्छा, कस्साई को लाओ, भिश्ती निकालो।


(लोग भिश्ती को निकालते हैं और कस्साई को लाते हैं)


क्यौं बे कस्साई मशक ऐसी क्यौं बनाई कि दीवार लगाई बकरी दबाई?


कस्साई : महाराज! गड़ेरिया ने टके पर ऐसी बड़ी भेंड़ मेरे हाथ बेंची की उसकी मशक बड़ी बन गई।


राजा : अच्छा कस्साई को निकालो, गड़ेरिये को लाओ।


(कस्साई निकाला जाता है गंडे़रिया आता है)
क्यों बे ऊखपौड़े के गंडेरिया। ऐसी बड़ी भेड़ क्यौं बेचा कि बकरी मर गई?


गड़ेरिया : महाराज! उधर से कोतवाल साहब की सवारी आई, सो उस के देखने में मैंने छोटी बड़ी भेड़ का ख्याल नहीं किया, मेरा कुछ कसूर नहीं।


राजा : अच्छा, इस को निकालो, कोतवाल को अभी सरबमुहर पकड़ लाओ।
(गंड़ेरिया निकाला जाता है, कोतवाल पकड़ा जाता है) क्यौं बे कोतवाल!

 तैंने सवारी ऐसी धूम से क्यों निकाली कि गड़ेरिये ने घबड़ा कर बड़ी भेड़ बेचा, जिस से बकरी गिर कर कल्लू बनियाँ दब गया?


कोतवाल : महाराज महाराज! मैंने तो कोई कसूर नहीं किया, मैं तो शहर के इन्तजाम के वास्ते जाता था।


मंत्री : (आप ही आप) यह तो बड़ा गजब हुआ, ऐसा न हो कि बेवकूफ इस बात पर सारे नगर को फूँक दे या फाँसी दे। (कोतवाल से) यह नहीं, तुम ने ऐसे धूम से सवारी क्यौं निकाली?


राजा : हाँ हाँ, यह नहीं, तुम ने ऐसे धूम से सवारी कयों निकाली कि उस की बकरी दबी।


कोतवाल : महाराज महाराज


राजा : कुछ नहीं, महाराज महाराज ले जाओ, कोतवाल को अभी फाँसी दो। दरबार बरखास्त।”

यह “अंधेर नगरी,चौपट राजा” की कथा का अंश है, जिसमें आगे फांसी कोतवाल को भी नहीं होती क्यूंकि फांसी का फंदा चौड़ा है और कोतवाल की गर्दन पतली. बल्कि फंदे के आकार का आदमी ढूंढा जाता है !

नकल विरोधी अध्यादेश में दर्ज मुकदमा भी “अंधेर नगरी,चौपट राजा” शैली के न्याय का रिपीट टेलीकास्ट है.

नौजवान अभ्यर्थी मुख्यमंत्री हैंडसम भैया के पास गए- हुजूर नकल रोकने का कानून बनाइये. हैंडसम भैया बोले- हम सबसे कठोर नकल विरोधी कानून बनाएँगे. युवाओं को थोड़ा आस बंधी. फिर युवाओं को पुलिसिया लाठियों से पीटने का डैमेज कंट्रोल करने के लिए ऐलान हुआ कि नकल विरोधी अध्यादेश लागू किया जाता है. चारणों ने पुष्पवर्षा के साथ जयजयकार की. उसके बाद नकल विरोधी अध्यादेश में पहला मुकदमा पेपर की सील टूटने की शिकायत दर्ज करने वाले पर हुआ.

ऐसा क्यूँ हुआ, इसको “अंधेर नगरी,चौपट राजा” शैली के संवादों में समझते हैं.

हैंडसम भैया अपने दरबारियों से- नकल विरोधी कानून बनाओ.

दरबारी- जो हुक्म मेरे आका !

हैंडसम भैया : पर यह बताओ कि नकल क्यूँ होती ?

दरबारी : क्यूंकि हुजूर परीक्षा होती है ?

हैंडसम भैया : तो परीक्षा होना बंद करवा दें ?

दरबारी : हुजूर, सालों-साल परीक्षाएं विवादों में फंसी रहती हैं तो उनका होना भी न होने के ही समान है. इसलिए इंतजाम रहे कि वे होती भी रहें और हो कर भी न हों !

इस बात पर हैंडसम भैया पुलकित हो उठे, उस समय सर्वे हो जाता तो वे डबल मर्डर की तर्ज पर देश के डबल हैंडसम सीएम हो जाते.

लेकिन फिर मुई नकल के ख्याल ने उनके चेहरे के नूर का वोल्टेज थोड़ा डिम हो गया, बोले : इस नकल का क्या करें ?

दरबारी फिर आइडिया लेकर हाजिर : हुजूर नकल से ज्यादा समस्या नकल की चर्चा है. इसलिए हमें नकल रोकने से ज्यादा नकल की चर्चा रोकने पर फोकस करना चाहिए. क्यूंकि हुजूर नकल की चर्चा न हो तो नकल हुई कि नहीं हुई, इससे क्या फर्क पड़ता है !

हैंडसम भैया के चेहरे पर पुनः 440 वोल्ट का नूर लौट आया !

दरबारी से बोले : ठीक है, सारे राज्य में मुनादी करवा दो कि नकल इसलिए फलफूल रही है क्यूंकि उसकी चर्चा हो रही है. इसलिए नकल रोकने के लिए कठोर कदम उठाते हुए नकल की चर्चा को जघन्य अपराध घोषित किया जाता है. नकल की माफी हो सकती है, लेकिन नकल की चर्चा की कतई माफी नहीं होगी. नकल की चर्चा, नकल से भी गंभीर अपराध माना जाएगा !

इस तरह “न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी” की तर्ज पर “न होगी न नकल की चर्चा, न रहेगी नकल” का लाजवाब, बेमिसाल आइडिया निकाला हैंडसम भैया ने !

तो बोलो-

चाय,समोसा, लॉलीपॉप

हैंडसम भैया सबसे टॉप

-इन्द्रेश मैखुरी

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