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आपदा का सामना : 130 वर्ष पहले और अब

 






आपदाओं से उत्तराखंड का वास्ता पुराना रहा है. असल मसला है कि उन आपदाओं से निपटा कैसे जाता रहा है. आज जब जोशीमठ में भू धँसाव से निपटने में पूरा सरकारी तंत्र और उसके अफसरों की फौज किंकर्तव्यविमूढ़ अवस्था में है, ऊहापोह की हालत में है, तब यह याद करना समीचीन होगा कि अतीत में ऐसे संकटों का सामना कैसे किया जाता रहा है.


यह आज से लगभग 130 वर्ष पहले 1893 की बात है. उत्तराखंड के चमोली जिले में गौणा गाँव के पास से बहने वाली बिरही नदी में पहाड़ के गिरने से झील बन गयी. नदी में चट्टान गिरने और झील बनने की यह घटना सितंबर 1893 में हुई थी. 


 इस घटना का विस्तृत ब्यौरा, अंग्रेज़ आईसीएस अधिकारी एच.जी.वाल्टन द्वारा लिखित तथा 1910 में प्रकाशित “ब्रिटिश गढ़वाल :ए गजेटियर” में दर्ज है. वाल्टन लिखते हैं कि बिरहीगंगा में झील बनने की पहली रिपोर्ट एक पटवारी ने डिप्टी कमिश्नर को भेजी. लेकिन चूंकि उसमें सिर्फ पहाड़ गिरने की बात थी, इसलिए उसे गंभीरता से नहीं लिया गया. बाद में एक सर्वेयर और अधिशासी अभियंता जब इस इलाके से गुजरे, तब उन्होंने घटना की गंभीरता को रेखांकित किया. वाल्टन लिखते हैं कि बाद में अधीक्षण अभियंता लेफ्टिनेंट कर्नल पलफोर्ड ने इस इलाके के दौरा किया और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जब चट्टान गिरने से बनी यह झील भर जाएगी, तब इसमें से निकला पानी अलकनंदा और गंगा में भारी तबाही करेगा, झील भरने तक कोई नुकसान नहीं होगा. इस मसले पर काफी बहस हुई, लेकिन सरकार ने पलफोर्ड की राय को ही सही माना.


इस झील पर निगरानी रखने के लिए एक सहायक अभियंता वहाँ नियुक्त किया गया और सूचना देने के लिए एक टेलीग्राफ की लाइन भी लगाई गयी. वाल्टन के अनुसार संभावित बाढ़ पर निगरानी रखने के लिए गौणा, चमोली, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, श्रीनगर, बाह, ब्यांसघाट,ऋषिकेश और हरिद्वार में चौकियाँ स्थापित की गयी. खतरे के निशान को दर्शाने के लिए पिलर लगाए गए और इन पिलरों से आगे की आबादी को पीछे हटने की चेतावनी दे दी गयी. सारे झूलापुल उतार दिये गए और तीर्थ यात्रा के मार्ग को भी जिले के भीतर ही अस्थायी तौर पर बदल दिया गया. यह भी आकलन कर लिया गया कि झील अगस्त 1894 के मध्य तक नहीं भरेगी. वाल्टन लिखते हैं कि 22 अगस्त 1894 को सहायक अभियंता क्रूकशैन्क ने चेतावनी जारी कर दी कि अगले 48 घंटों में बाढ़ आ जाएगी. 25 अगस्त 1894 को बिरहीगंगा पर बनी झील से रिसाव शुरू हुआ, पानी की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हुई और आधी रात को झील पर चट्टान से बना हुआ बांध तेज आवाज के साथ फट गया. बाढ़ से सरकारी और निजी संपत्ति का भारी नुकसान हुआ, खास तौर पर श्रीनगर में भीषण तबाही हुई. लेकिन जान केवल एक साधु और उसके परिवार की गयी, वह भी इसलिए कि यह परिवार हटाए जाने के बावजूद पुनः खतरे वाली जगह पर चला गया था.


यह अंग्रेजी राज और एक झील का किस्सा है. उसके बरक्स 130 बरस बाद 2023 के जोशीमठ को देखिये. जोशीमठ दरक रहा है, धंस रहा है, बीते 14 महीनों से इस चेतावनी को अनदेखा किया गया. 










04 जनवरी 2023 के मशाल जुलूस और 05 जनवरी के चक्काजाम के बाद चमोली के अपर जिलाधिकारी ने एनटीपीसी और एचसीसी को लिखे पत्र जारी किए, जिनमें उनसे दो-दो हजार यानि कुल चार हजार प्री-फेब्रिकेटेड भवन बनाने की तैयारी करने को कहा गया. 20 जनवरी 2023 को चमोली के जिलाधिकारी ने ट्वीट किया कि मॉडल प्री-फेब्रिकेटेड भवन बनना शुरू हो गए हैं ! चार हजार प्री-फेब्रिकेटेड भवन बनाने की घोषणा के पंद्रह दिन बाद मॉडल प्री-फेब्रिकेटेड भवन बनाने का ट्वीट, यह राहत कार्यों की कच्छप गति का आइना है.  13 जनवरी को राज्य के मंत्रिमंडल ने जोशीमठ के विस्थापन, पुनर्वास, पुनर्निर्माण आदि के खर्च का आकलन बना कर सरकार को भेजने का निर्देश किया था. लेकिन समय सीमा बीत जाने के बाद भी इस आकलन का दूर-दूर तक कहीं पता नहीं है. जोशीमठ में जिन घरों में दरारें हैं, उनमें रहने वालों को अन्यत्र शिफ्ट किया जा रहा है. खतरनाक समझे जा रहे घर, होटल आदि को तोड़ने की प्रक्रिया भी चल रही है. लेकिन जिनके घर, होटल आदि तोड़े गए हैं, उनको कितना मुआवजा मिलेगा, मुआवजा देने के प्रावधान क्या होंगे, इसका दूर-दूर तक कोई अता-पता नहीं है. 11 जनवरी 2023 को सरकार ने एक लाख रुपए की धनराशि भू धँसाव के प्रभावितों को अग्रिम तौर पर तथा पचास हजार रुपया सामान ढुलाई और तात्कालिक आवश्यकताओं के लिए जारी किया. इस धनराशि को जारी करने का आदेश जिस पत्र में दिया गया, उस पत्र में आपदा प्रबंधन के सचिव ने लिखा कि उक्त धनराशि भविष्य में बनने वाली नीति के अनुसार समायोजित की जाएगी. 24 जनवरी को उन्हीं आपदा प्रबंधन के सचिव का अखबारों में बयान छपा कि अभी नीति बन रही है ! यानि लोग घर से बाहर निकाले जा रहे हैं, घर तोड़े भी जा रहे हैं, लेकिन न तो मुआवजे का कहीं पता है और ना ही मुआवजे की नीति का नाम-ओ-निशान कहीं नजर आ रहा है ! 






 

जोशीमठ के लोगों का पुनर्वास कहां किया जाएगा, इसको लेकर भी कोई स्पष्टता नहीं है. प्रशासन कुछ नाम हवा में उछालता है, फिर विरोध होने पर कहता है कि संभावित पक्षों की सहमति से निर्णय लिया जाएगा और फिर किसी नयी जगह का नाम उछालने में मशगूल हो जाता है !


सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने तंज़ किया कि भराड़ीसैण में जो विधानसभा भवन है, वह किसी उपयोग में नहीं आ रहा है, इसलिए जोशीमठ के आपदा पीड़ितों को वहाँ रखा जाना चाहिए ! यह बात व्यंग्य में कही गयी, लेकिन विचार शून्यता से जूझ रहे प्रशासन को इसमें भी राह दिखाई दी और आपदा प्रबंधन के सचिव ने घोषित कर दिया कि भराड़ीसैण में विधानसभा परिसर में भी जोशीमठ के आपदा पीड़ितों को रखने का इंतजाम किया गया है ! अगर सचमुच सोशल मीडिया में किया गया यह तंज़ हकीकत में बदलता है तो आपदा पीड़ितों को सौ-सवा सौ किलोमीटर दूर,अस्थायी शिविरों में रखने की यह अभूतपूर्व मिसाल होगी ! ऐसे उलूलजुलूल विचारों पर हंसने या सिर धुनने के अलावा कर ही  क्या सकते हैं ?


अंग्रेज़ इस मुल्क पर राज करने और इसे लूटने आए थे. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने 130 वर्ष पहले एक आसन्न आपदा को अत्याधिक गंभीरता से लिया और उसमें जन हानि होने से बचाने के लिए पूरे एक साल तक बेहद शिद्दत से काम किया. आज हम जिनसे दो-चार हो रहे हैं, वे तथाकथित तौर पर हमारे अपने हैं, हमारे लोकसेवक हैं, लेकिन उसके बावजूद उनके कानों तक अपनी बात पहुंचाना ही आकाश-कुसुम है. उनके पास अंग्रेजी ठाठ-बाट, रौब-दाब, अंग्रेजी ठसक और  तुनकमिजाजी तो भरपूर है, लेकिन आपदा का सामना करने की ना तो उनके पास शऊर है और ना ही बुद्धि. इस सबकी जगह भरने के लिए उनके पास फकत साहबी अकड़ है ! वे उस साहबी अकड़ के प्रदर्शन के लिए यहाँ से वहाँ गाड़ी दौड़ा रहे हैं, उसी को अपना काम बता रहे हैं !


-इन्द्रेश मैखुरी   

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