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सरकार से करो दो-दो हाथ, पुरानी पेंशन पर तब बनेगी बात !

 






हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में सत्ताधारी भाजपा की हार के बाद पुरानी पेंशन की चर्चा एक बार फिर तेज हुई है. न केवल हिमाचल में बल्कि पड़ौसी राज्य उत्तराखंड में भी शिक्षक-कर्मचारी उत्साहित हैं कि राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़, पंजाब आदि राज्यों की सरकारों द्वारा पुरानी पेंशन लागू करने की घोषणा के साथ ही हिमाचल प्रदेश में भी ऐसा होने को है.







हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ही पुरानी पेंशन स्कीम पर बहस शिक्षक- कर्मचारी दायरे के अलावा राजनीतिक हलकों का हिस्सा भी बन रही है. अंग्रेजी अखबार- इंडियन एक्सप्रेस में बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने पुरानी पेंशन स्कीम का विरोध करते हुए लेख लिखा है. उनके लेख का शीर्षक है- ए बैड आइडिया रिटर्न्स यानि एक बुरे विचार की वापसी. जो सुशील कुमार मोदी, विधानसभा और विधानपरिषद की पेंशन पाते हैं और राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने पर वहां की पेंशन के हकदार हो जाएंगे, उन्हें बरसों-बरस सरकारी सेवा करने वाले कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाली पेंशन एक बुरा विचार लगती है. वे एनपीएस को दूरदृष्टि पूर्ण नीतिगत हस्तक्षेप बताते हैं, उसे बेहतरीन सेवानिवृत्ति उत्पाद करार देते हैं. साथ ही इस बात पर ज़ोर देते हैं कि सत्तापक्ष को इस मामले में मुख्य विपक्षी कॉंग्रेस को अपने साथ लेने का प्रयास करना चाहिए.


सत्ता पक्ष के भीतर पुरानी पेंशन स्कीम के खिलाफ एक और मुखर स्वर आया है- 15 वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह का. उन्होंने इसे राजकोषीय आपदा करार दिया है.


केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार तो कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने का खुल कर विरोध करती रही है. संसद के पटल पर मोदी सरकार ने साफ तौर पर यह बात कही है. 15 जुलाई 2019, 02 दिसंबर 2019 और 16 मार्च 2020 को लोकसभा में पुरानी पेंशन योजना लागू करने संबंधी प्रश्नों के जवाब में केंद्र सरकार ने स्पष्ट तौर पर कहा कि उसका पुरानी पेंशन योजना लागू करने का कोई इरादा नहीं है. 15 जुलाई 2019 को लोकसभा में जवाब देते हुए तत्कालीन वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि सरकार जानती है कि ट्रेड यूनियनें और सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार ने बेहद सचेत तरीके से नयी पेंशन योजना(नेशनल पेंशन सिस्टम) लागू करने की दिशा में कदम उठाया है. 16 मार्च 2020  को दिये गए जवाब में वित्त राज्य मंत्री ने साफ कहा कि पुरानी पेंशन योजना की तरफ वापस लौटने का सरकार का कोई इरादा नहीं है.


गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से संसद में पुरानी पेंशन योजना की ओर न लौटने का इरादा जाहिर करने वाले केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, उसी हिमाचल प्रदेश के प्रमुख नेता हैं, जहां से सत्ता परिवर्तन के बाद शिक्षक-कर्मचारियों को पुरानी पेंशन की नयी आस बंधी है.


लेकिन यह आस जगी कैसे है ? यह आस जगी है- पुरानी पेंशन योजना से इंकार करने और उसका मखौल उड़ाने वालों को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा कर.


जिन्हें हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद वहां पुरानी पेंशन स्कीम के लागू होने में खुद की भी आस दिखाई दे रही है, उन्हें जानना चाहिए कि हिमाचल के शिक्षक-कर्मचारियों ने आंदोलन के जरिये पुरानी पेंशन की मांग को चुनाव की प्रमुख मांग में तब्दील किया. कोई दिखावटी-सजावटी किस्म के प्रतीकात्मक कार्यक्रम नहीं किए बल्कि उन्होंने सत्ता से सीधी टक्कर ली. पुरानी पेंशन के लिए हिमाचल में चले आंदोलन और सत्ता की बौखलाहट व अहंकार का नतीजा था कि निवर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने विधानसभा में कहा कि जिन कर्मचारियों की विधायकों की पेंशन पर नजर है, वे चुनाव लड़ लें.













जयराम ठाकुर के अड़ियल रुख के खिलाफ ही हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों ने सड़क पर नारा बुलंद किया- जोय्या मामा मानदा नहीं, कर्मचारियों दी सुणदा नी ! 












यह नारा लगाने के लिए कर्मचारियों ने कार्यवाही भी झेली.


 चुनावी बेला में भी कर्मचारी डटे रहे और उन्होंने पुरानी पेंशन के मामले में सत्ता के अहंकार में पगे जोय्या मामा तथा उनकी सरकार को घर बैठा दिया. मोदी का प्रचार भी कर्मचारियों के दृढ़ इरादे को डिगा नहीं पाया. हिमाचल प्रदेश के निवर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने स्वयं स्वीकार किया कि पुरानी पेंशन स्कीम का मसला, भाजपा सरकार के जाने की प्रमुख वजह है.


तो पुरानी पेंशन की आस लगाए शिक्षक-कर्मचारी साथियो, हिमाचल प्रदेश के उदाहरण से साफ है कि पुरानी पेंशन का रास्ता तो नयी पेंशन योजना के समर्थक जोय्या मामाओं और उनके केंद्रीय राजनीतिक आकाओं को घर बैठाने से ही खुलेगा. तय आपको करना है कि केंद्रीय सत्ता की अंधभक्ति की माला जपते रहना है या अपने हितों पर कुठराघात करने वालों से पुरानी पेंशन हासिल करने के लिए उन्हें राजनीतिक सबक सिखाना है !


-इन्द्रेश मैखुरी

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