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केदार भंडारी प्रकरण में पुलिसकर्मियों पर एफ़आईआर के आदेश

 










एक 19 वर्ष का युवा केदार भंडारी अग्निवीर परीक्षा में भर्ती होने के लिए उत्तरकाशी से कोटद्वार के लिए निकला. यह 18 अगस्त 2022 की बात है. 20 अगस्त को भर्ती में शामिल होने के बाद वह 21 अगस्त को ऋषिकेश से लगे  लक्ष्मण झूला क्षेत्र में एक होटल में आ कर रुकता है. उस शाम दोस्तों के साथ घूमने जाने और अपनी कुशलता की सूचना केदार भंडारी अपने परिजनों को फोन से देता है.












लेकिन उससे अगला दिन केदार भंडारी की कुशलता की खबर नहीं लाया सका. केदार भण्डारी के पिता लक्ष्मण सिंह द्वारा युवा अधिवक्ता पंकज क्षेत्री के साथ 04 अक्टूबर को देहरादून में पत्रकारों के समक्ष दिये गए ब्यौरे के अनुसार सुबह उनके बड़े पुत्र को यह सूचना आई कि केदार भण्डारी तपोवन चौकी में बंद है. शाम को स्वयं केदार के पिता लक्ष्मण सिंह को यह सूचना प्राप्त हुई कि उनका पुत्र केदार गंगा नदी में कूद गया है और गोताखोर उसे ढूंढ रहे हैं पर कुछ पता नहीं चल रहा है. बक़ौल लक्ष्मण सिंह यह सूचना उनको लक्ष्मण झूला कोतवाली के तत्कालीन कोतवाल संतोष सिंह कुँवर द्वारा दी गयी. अगले दिन जब परिजन लक्ष्मण झूला कोतवाली पहुंचे तो उनको बताया गया कि केदार को 22 अगस्त को रात में दो बजे तपोवन पुलिस द्वारा गिरफ्तार करके, प्रातः 10 बजे लक्ष्मण झूला पुलिस को सौंपा गया था और वह कोतवाली से भाग कर नदी में कूद गया.


इस प्रकरण के तूल पकड़ने के बाद 03 अक्टूबर को पौड़ी के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक यशवंत सिंह चौहान ने सोशल मीडिया पर वीडियो बयान जारी करके कहा कि केदार को मुनि की रेती पुलिस ने परमार्थ निकेतन में हुई चोरी के सामान के साथ पकड़ा था और उसे लक्ष्मण झूला पुलिस को सौंप दिया था. तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के बयान का सबसे रोचक अंश है कि- तब तक परमार्थ निकेतन से कोई तहरीर नहीं आई थी, तो हमने उसे ससम्मान बैरक में बैठा रखा था कि परमार्थ वालों की तहरीर आती है या उनसे बात करेंगे कि वे कार्यवाही करना चाहते हैं कि नहीं करना चाहते हैं, तदनुसार उसका कार्यवाही होगी, इसलिए उसका प्रोपर दाखिला नहीं किया गया था. इस बीच वह पीआरडी के जवान को धक्का दे कर भाग गया और नदी में कूद गया.












आखिर वह कैसा सम्मान था, जिसके साथ लक्ष्मण झूला पुलिस ने केदार भण्डारी को बैठाया हुआ था, जिसे वह झेल नहीं सका और नदी में कूद सका.  

सनद रहे कि पौड़ी के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने यह बयान 03 अक्टूबर को जारी किया जबकि पुलिस का तथाकथित सम्मान न झेल पाने से केदार भंडारी के नदी में कूदने की घटना 22 अगस्त को हो चुकी थी. लेकिन डेढ़ महीने बाद दिये गए इस बयान में यह कहीं उल्लेख नहीं था कि जिस तथाकथित चोरी के लिए केदार भंडारी को पकड़ा गया था, उसकी रिपोर्ट परमार्थ निकेतन वालों ने लिखवाई या नहीं ? अगर नहीं लिखवाई तो क्यूँ और वह माल कहाँ है, जिसे बरामद करने का दावा पुलिस द्वारा किया गया था ? प्रश्न यह भी है कि ऐसे कितने मामले होते हैं, जिसमें बिना आधिकारिक शिकायत के पुलिस, आरोपी को बैठा लेती है और फिर इंतजार करती है कि शिकायत आए तो वे आगे कार्यवाही करें ?  एक और कमाल की बात जो डेढ़ महीने बाद दिये गए तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदय के बयान में थी, वो यह कि उन्हें नहीं पता कि केदार भंडारी अग्निवीर भर्ती में शामिल होने गया या नहीं ! बिना लिखित शिकायत के उन्हें पता था कि इसने चोरी की, लेकिन उनके ही जिले में वह अग्निवीर में भर्ती हुआ,इसका पता पुलिस को डेढ़ महीने बाद भी नहीं था !

प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए 02 नवंबर को केदार भंडारी के पिता की अर्जी पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पौड़ी की अदालत ने लक्ष्मण झूला के तत्कालीन कोतवाल संतोष सिंह कुँवर और तपोवन के चौकी प्रभारी आशीष चौहान के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिये हैं.

अदालत का पुलिस के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश भी यह संकेत है कि पुलिस की कहानी में झोल है. यह कथा क्यूँ रची गयी, यह तो जांच का विषय है पर पुलिस की इस गढ़ी गयी कथा ने एक युवा ज़िंदगी का चिराग असमय ही बुझा दिया.

उत्तराखंड जैसे राज्य में जहां पुलिस का नारा मित्र पुलिस होने का है, वहां एक युवा के साथ इस तरह का शत्रुतापूर्ण व्यवहार बेहद अफसोसजनक है.  लक्ष्मण झूला कोतवाली  अंकिता भंडारी के प्रकरण में अंकिता के पिता की रिपोर्ट यह कह कर लिखने से इंकार करती है कि मामला पटवारी क्षेत्र का है, जबकि अपर पुलिस महानिदेशक का 12 जुलाई 2022 का स्पष्ट आदेश है कि राजस्व क्षेत्र के संगेय अपराधों पर ज़ीरो एफ़आईआर करके तत्काल कार्यवाही शुरू कर देनी है. वही लक्ष्मण झूला पुलिस बिना शिकायत के ही केदार भंडारी को उठा लेती है और उस हालत में पहुंचा देती है कि वह ज़िंदगी से हाथ धो बैठे !  यह व्यवहार अपने आप में बेहद अचरज में डालने वाला है. पुलिस और अपराधियों के तौर-तरीकों के बीच की रेखा ही मिटने लगे तो “मित्र पुलिस के नारे और सोशल मीडिया ब्रांडिंग से ही कितने दिन काम चलाइएगा ? उत्तराखंड पुलिस के आला अफसरों और प्रशासन व पुलिस को अभयदान देने की मुद्रा में बैठी हुई उत्तराखंड सरकार को भी इस बात पर विचार करना चाहिए.

-इन्द्रेश मैखुरी

  

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