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मजखाली : उत्तराखंड के हाथ खाली

 







उत्तराखंड में अल्मोड़ा जिले के मजखाली में एक नाबालिग लड़की से दिल्ली के प्रशासनिक अफसर एवी प्रेमनाथ द्वारा छेड़छाड़ और दुराचार का मामला सामने आया है.


जिस एवी प्रेमनाथ पर नाबालिग से छेड़छाड़ और दुराचार का आरोप लगा है, वह पहले से विवादों के घेरे में रहा है. उसके विरुद्ध इस इलाके में सरकारी ज़मीनें कब्जाने के आरोप अरसे से लगते रहे हैं.


जनज्वार में छपी सलीम मालिक की रिपोर्ट के अनुसार एवी प्रेमनाथ ने चार माह पहले इस नाबालिग लड़की का यौन शोषण किया. जून 2022 में पटवारी के पास लड़की और उसकी मां ने रिपोर्ट लिखवाने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे. फिर उन्होंने अल्मोड़ा के जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पास गुहार लगाई, तब जा कर रिपोर्ट दर्ज हुई और अब मामला सिविल पुलिस को सौंप दिया गया है. दिल्ली भागने की कोशिश कर रहे प्रेमनाथ को उत्तराखंड पुलिस द्वारा हल्द्वानी में  गिरफ्तार कर लिया गया है. 













 

यह पूरा प्रकरण ऐसा में जिसमें लड़की और उसकी मां, राज्य से बाहर की रहने वाली हैं, प्रेमनाथ भी उत्तराखंड से बाहर का रहने वाला है. लेकिन लड़की की मां को जेल भिजवाने के लिए प्रेमनाथ ने उत्तराखंड का इस्तेमाल किया और फिर मां को जमानत दिलवाने के नाम पर लड़की के यौन शोषण के लिए भी उत्तराखंड की जमीन का इस्तेमाल किया गया.













इस पूरे प्रकरण के कुछ गंभीर और चिंताजनक संकेत हैं. एक व्यक्ति जो दूसरे राज्य में सरकारी अफसर है, वह अपने रसूख का इस्तेमाल उत्तराखंड में जमीन कब्जाने के लिए करता है. हैरत यह कि उत्तराखंड में सरकारी मशीनरी, उसके रसूख के दबाव में आ भी जाती है और आंदोलन के बावजूद उसके विरुद्ध कार्यवाही नहीं करती. अफसर होने की धौंस और प्रशासनिक मशीनरी के दबाब में होने की वजह से प्रेमनाथ इस हद तक पहुँच गया कि वह लड़की की मां को उत्तराखंड में जेल भिजवा दे और फिर उसकी जमानत करवाने के नाम पर लड़की का यौन शोषण भी करे.


स्पष्ट तौर पर यह उत्तराखंड की कानून व्यवस्था और उसके लिए उत्तरदाई एजेंसियों की क्षमता पर गंभीर सवाल है. और हाँ अपने नाकारेपन के लिए पटवारी क्षेत्र का घिसा-पिटा राग अलापना बंद कीजिये.


जिस इलाके में यह घटना हुई है,यह इलाका और इसके आसपास के गांव अस्सी के दशक से ही बिकना शुरू हो गए थे. वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट चारु तिवारी के अनुसार मजखाली समेत 32 गांव और तीन न्याय पंचायतों की ज़मीनें 1987 से बिकना शुरू हो गयी थी.







फोटो : मयंक मैनाली के फेसबुक पेज से साभार 





ज़मीनें खरीदे जाने की इंतहा देखिये कि उत्तर प्रदेश के जमाने से ही इस इलाके में जो एसडीएम आया, उसने यहाँ जमीन खरीदे, इसलिए एक गांव तो एसडीएम-ओं  का गांव ही हो गया. कहने को मजखाली ग्रामीण इलाके में है, लेकिन आप वहां से गुजरते हैं तो लगता है कि किसी पॉश कॉलोनी से गुजर रहे हैं. बड़ी-बड़ी भव्य कोठियाँ हैं, जिनके चारों तरफ एक रहस्यमय सन्नाटा पसरा रहता है. यह रहस्यमय सन्नाटा से प्रेमनाथ जैसे खाये-पिये-अघाए लोगों को अय्याशी का वातावरण मुहैया कराता है. जिन स्थानीय लोगों ने समझा कि वे, धनपशुओं को जमीन बेच कर धन्नासेठ हो जाएँगे, वे कुल मिलाकर अपनी पैतृक ज़मीनों पर उग आई ज़मीनों पर चौकीदार और धनाढ्यों की इन ऐशगाहों में होने वाले अपराधों के मूक दर्शक ही बन पाये ! उत्तराखंड के हिस्से अपराध ही आया और ज़मीनें हाथ से छूट गयी,सो अलग. साफ है कि मजखाली जैसी ऐशगाहों से उत्तराखंड के हाथ कुछ नहीं आना है.


उत्तराखंड पूरा ही मजखाली के रास्ता पर है. सरकार भी ज़मीनों की बेखटके-बेरोकटोक बिक्री को विकास की पहली सीढ़ी के तौर पर प्रचारित करने के अभियान में लगी हुई है. लेकिन इस प्रक्रिया में उत्तराखंड प्रेमनाथ जैसे सफेदपोश अपराधियों के लिए व्यभिचार करने का सुरक्षित अभयारण्य बना हुआ है, जहां आकर वह बिना भयभीत हुए आपराधिक आखेट को अंजाम दे सकता है.


कानून व्यवस्था की दृष्टि से शांत राज्य होना अच्छी बात है, लेकिन इतनी मुर्दा शांति पसर जाये कि बाहर से आकर अपराधी शांति और सुकून के साथ अपराध करने लगें, यह गंभीर चिंता का विषय है. अपराधी यदि शांति और सुकून से अपराध को अंजाम दे रहे हैं तो तय जानिए कि इस राज्य में कानून-व्यवस्था, शांति और सुकून ज्यादा दिन तक नहीं रहने वाला है.


-इन्द्रेश मैखुरी  

  

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