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हाकम-मनराल आश्रितों पर, धामी जी की कृपा प्रचंड !

 







कुछ नाशुक्रे लोग फिर हिसाब लगाने लगे हैं. उत्तराखंड के भर्ती घोटालों में पुलिस ने 41 गिरफ्तार किए थे, उनमें से 18 जमानत पर छूट चुके हैं, अब 23 ही हिरासत में बचे हैं. ताजा-ताजा छूटने वालों में वो मनराल बाबू भी हैं, जो मास्टरमाइंड बताए जा रहे थे. मुकदमें का दम देखिये कि वे कोई ऊपर की अदालत से भी नहीं छूटे बल्कि सबसे निचली अदालत ही उन्हें जमानत पर रिहा कर दे रही है.


पर ऐसा क्यूँ हो रहा है ? अरे भई होगा क्यूँ नहीं ? भर्ती घोटालों में हल्ले के बाद अब राज्य में भर्ती परीक्षाओं का दौर जो शुरू हो गया है. उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष के रूप में एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी नौकरी पा चुके हैं.  हर खबर को ब्रेकिंग करार देने वाले हर घंटे-दो घंटे में चीख-ओ-पुकार कर रहे हैं- बेरोजगारों के लिए खुशखबरी, यहाँ निकली बंपर भर्तियाँ !  पहले ऐसी खबरें, कभी छठी-छमाही में दिखती थी. अब हर दूसरे दिन नमूदार हो रही हैं.









तो भय्या जब इतनी सारी भर्तियाँ हो रही हैं, ऐसे में भर्ती परीक्षाओं के ये अनुभवी लोग जेल में रहेंगे तो भर्तियाँ निर्विघ्न कैसे संपन्न होगी ? पूरे सरकारी तंत्र को बीते दो दशक से इन अनुभवी लोगों के जरिये परीक्षा पास किए हुए लोगों की आदत है. अचानक इनके बिना, परीक्षा पास करके लोग आने लगें तो उन्हें सरकारी तंत्र को हैंडल करने का शऊर भी न आएगा. इन “मास्टरों” के हाथ से जो माइंड  सरकारी तंत्र में पहुँचते थे, वो जानते थे कि बिना लेन-देन के सरकारी तंत्र में पत्ता भी नहीं हिलता.  अपने अनुभव से उन्हें पता था कि जब लेन-देन हुआ, तब परीक्षक हिला, कॉल लेटर चला, नौकरी का दरवाजा खुला. इस तरह सरकारी तंत्र में प्रवेश करने से पहले सरकारी वर्क कल्चर से परिचित होते थे. मुख्य काम की ट्रेनिंग का खर्चा और समय दोनों ही बचता था.


सरकारी वर्क कल्चर में दक्ष बना कर सरकारी विभागों को कार्मिक सप्लाई करने वाले ऐसे कुशल प्रशिक्षकों को कुछ लोग भ्रष्टाचारी कहते हैं, ना समझ हैं, वो सब !


तो संकट ये था कि ये अनुभवी, कुशल प्रशिक्षक जेल में रहें और भर्तियाँ हो जाएँ तो पूरे तंत्र में अनाड़ी, अकुशल कार्मिकों के भर्ती होने का खतरा है. अरे सिर्फ पढ़ाई- लिखाई में अव्वल लोगों से तंत्र चलता है कोई ? चार अक्षर पढ़ लिए और व्यावहारिक लेन-देन के ज्ञान में अनाड़ी हुए तो बेचारे तंत्र को सालों-साल सिरदर्दी होती रहेगी.


इसलिए दूरदर्शी लोगों ने सोचा होगा कि सरकारी भर्तियों के लिए “लेन-देन” में पारंगत “कार्मिक” उपलब्ध करवाने वाले कुशल शिल्पियों का जेल में रहना, सिस्टम की सेहत के लिए दंगल फिल्म के बापू के तरह “हानिकारक” हो सकता है. परीक्षाओं में लेन-देन में दक्ष कार्मिकों का सुगम प्रवाह बना रहे, इसके लिए अनुभवी लोगों को परीक्षाओं की घोषणा के साथ ही बाहर लाया जा रहा है. राज्य हित के इस कदम से कोई हिट यानि चोटिल हो तो बेचारे धाकड़ भाई क्या कर सकते हैं !


हमारे विश्वविद्यालय में एक समय एक कुलपति होते थे. खुद वे अच्छे-खासे पढे लिखे थे. लेकिन नियुक्ति के वक्त पढ़ने-लिखने वाले विद्यार्थियों को समझाते थे- बेटा तू तो फ़र्स्ट डिविजन वाला है, तेरा तो कहीं भी हो जाएगा पर इसको देख, ये निरा गधा है, ये बेचारा कहां जाएगा. उनकी इस दयालुता से पढ़ने- लिखने वाले नौकरियों से बाहर होते रहे. धामी जी भी सोच रहे होंगे कि जो पढ़ा-लिखा है, उसका क्या, वो तो कहीं भी नौकरी पा जाएगा ! पर जिसको हाकम-मनराल का ही सहारा वो कहां जाएगा ? तो हाकम- मनराल एंड कंपनी को वे चरणबद्ध तरीके से बाहर आने दे रहे हैं ! मनराल आ चुके, देर-सबेर हाकम भाई भी आ जाएंगे !


हाकम-मनराल आश्रितों पर

धामी जी की कृपा प्रचंड

याद रखेगा उत्तराखंड !!

-इन्द्रेश मैखुरी

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