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हेलंग की जुझारू घसियारियों के समर्थन में उत्तराखंड की आंदोलनकारी महिलाओं का हेलंग कूच

 







हेलंग एकजुटता मंच के आह्वान पर प्रदेश भर के आंदोलनकारी महिला संगठनों ने आज हेलंग कूच किया. 24 जुलाई को हेलंग में प्रतिवाद प्रदर्शन के बाद हेलंग में प्रदेश भर की आंदोलनकारी महिलाओं का हेलंग में जमवाड़ा दूसरा कार्यक्रम है, जिसे इस आंदोलन को तेज करने की दिशा में अगले कदम के रूप में आंदोलनकारी संगठनों ने आयोजित किया.


हेलंग में कार्यक्रम शुरू होने से पहले जोशीमठ में आंदोलनकारियों ने जनगीतों और नारों के साथ जुलूस निकाला और मुख्य चौराहे पर नुक्कड़ सभा की.












हेलंग में कार्यक्रम क्यूंकि 15 जुलाई को सीआईएसएफ़ और पुलिस द्वारा घसियारी महिला से घास छीनने और पुलिस उत्पीड़न के विरुद्ध था तथा प्रदेश भर से महिलाएं, मंदोदरी देवी और लीला देवी से एकजुटता जाहिर करने आयीं थी,इसलिए कार्यक्रम हेलंग संघर्ष की नायिकाओं के आँगन में ही आयोजित किया गया. हेलंग में सभा की शुरुआत रंगकर्मी सतीश धौलाखंडी द्वारा जनगीत गा कर की गयी. 








हेलंग में सभा को संबोधित करते हुए उत्तराखंड महिला मंच की केन्द्रीय संयोजक कमला पंत ने कहा कि उत्तराखंड के जल-जंगल-जमीन को पहाड़ की महिलाओं ने संरक्षित करके रखा है. घसियारी हमारे पहाड़ के श्रम और सम्मान का प्रतीक हैं. उत्तराखंड में तमाम आंदोलनों की अगुवाई महिलाओं ने की है. एक महिला का उत्पीड़न प्रदेश की सभी महिलाओं के साथ अन्याय है, जिसे किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को तो राज्य बनने के 22 वर्षों बाद भी सजा नहीं मिली और आज महिला उत्पीड़न की नयी दास्तान उत्तराखंड की सरकार लिख रही है.


कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल में हिन्दी की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.उमा भट्ट ने कहा कि पहाड़ को संरक्षित और संवर्द्धन का सबक सरकारों को पहाड़ की महिलाओं से सीखना चाहिए. लेकिन इसके उलट महिलाओं के संघर्ष के दम पर बने राज्य में कंपनियों की शह पर सरकार और प्रशासन महिलाओं का उत्पीड़न कर रहा है.


रीज़नल रिपोर्टर की संपादक गंगा असनोड़ा थपलियाल ने कहा कि विकास के नाम पर उत्तराखंड के लोगों के साथ कैसा छल किया जा रहा है, यह हेलंग में हुई घटना से स्पष्ट हो गया है. जंगल उत्तराखंड के पर्यवतीय इलाकों में रहने वाले लोगों के अस्तित्व से जुड़ा मामला है और उससे वंचित करने की कोई भी कोशिश स्वीकार्य नहीं हो सकती.












पर्यावरणविद डॉ.रवि चोपड़ा ने कहा कि आजादी के आंदोलन के समय से यह नारा चला आ रहा है कि जमीन जोतने वाले की. इसी तरह वनों की रक्षा करने वालों के हाथ में ही उनका स्वामित्व होना चाहिए. सिर्फ हक-हकूक की ही नहीं है, जल-जंगल-जमीन पर स्वामित्व उन स्थानीय लोगों का होना चाहिए, जो इन सबको संरक्षित कर रहे हैं. बांध बनाने का फैसला कंपनियों के हितों के अनुसार नहीं स्थानीय लोगों की जरूरतों और अनुमति के आधार पर तय होना चाहिए.


15 जुलाई को हेलंग में जिन मंदोदरी देवी से घास छीना गया, उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हम प्रशासन के लोगों से अनुनय-विनय करते रहे हमारा चारागाह बर्बाद न करो, लेकिन वे नहीं माने.अपने जंगल को बचाने के लिए हम पूरी ताकत से लड़ेंगे. 

 

15 जुलाई को हेलंग में गिरफ्तार की गयी लीला देवी ने कहा कि प्रशासन और पुलिस ने हमारे परिवार के बारे में झूठ फैलाया. हम अपने चारागाह बचाने के लिए हम संघर्ष कर रहे थे, हमने पेड़ लगाए और हमको अतिक्रमणकारी कहा गया. प्रधान और सरपंच ने भी हमारा साथ देने के बजाए प्रशासन और टीएचडीसी द्वारा हमारे दमन का समर्थन किया.

     

 

नैनीताल समाचार के संपादक राजीवलोचन साह ने कहा कि हेलंग की घटना उत्तराखंड की मातृशक्ति की अस्मिता, गरिमा और रोजगार पर आघात है. पचास साल पहले रैणी में गौरा देवी ने अपनी साथियों के साथ चिपको आंदोलन का बिगुल फूंका था. आज हेलंग में मंदोदरी देवी, लीला देवी और उनकी साथियों ने कंपनी राज और माफिया राज के खिलाफ लड़ाई का शंखनाद किया है.


सलना की महिला मंगल दल की अध्यक्ष पूर्वी देवी ने कहा कि जंगल हमारा मायका है और ससुराल भी जंगल है, हमारा सब कुछ जंगल है, इसलिए हमें एकजुट हो कर अपना जंगल बचाना चाहिए, अपने गाँव को बचाना चाहिए. कंपनियों की ठगी से लोगों को सचेत रहना चाहिए. हमको न परियोजनाओं से बिजली है और ना रोजगार है, परियोजना के विस्फोटों से हमारे घर हिल रहे हैं.











उत्तराखंड महिला मंच की केन्द्रीय संयोजक मण्डल की सदस्य निर्मला बिष्ट ने कहा घसियारी हमारी शान है, उस पर इस तरह का हमला किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उत्तराखंड में बड़ी परियोजनाओं बनाने के पीछे की रणनीति यह है कि स्थानीय निवासियों को इस हालत में ले आओ कि वे पलायन करने को मजबूर हो जाएँ और कंपनियों के हवाले सारा जंगल,जमीन और पानी कर दिया जाये.


सभा का संचालन करते हुए जोशीमठ क्षेत्र के आंदोलनों के अगुवा नेता और भाकपा(माले) के राज्य कमेटी सदस्य अतुल सती ने कहा कि यह उत्तराखंड के जल-जंगल-जमीन को बचाने की लड़ाई है और हम इस लड़ाई को गाँव-गाँव तक पहुंचाएंगे. यह उत्तराखंड आंदोलन में अधूरे छूटे सवालों को पूरा करने का संघर्ष है.हेलंग आंदोलन के दबाव में प्रशासन झुका तो है, परंतु अभी भी कुछ स्तर पर मनमानी जारी है. यह शर्मनाक है कि हेलंग की घटना को एक महीना होने वाला है, लेकिन अभी तक राज्य सरकार ने एक भी जिम्मेदार पुलिस और प्रशासन के अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही नहीं की है.


हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा प्रतिनिधि शिवानी पांडेय ने कहा कि नयी पीढ़ी को जल-जंगल-जमीन और उसको बचाने के संघर्ष के मायने समझाए जाने की जरूरत है. तब वह इस संघर्ष में मजबूती से खड़ी होगी.











द्वारहाट से आई मधुबाला कांडपाल ने कहा कि गौरक्षा कानून के बाद आवारा पशुओं की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो गयी. उन्होंने 2008 में आवारा पशुओं के प्रबंध के लिए अपने आंदोलन का अनुभव साझा किया. उनके आंदोलन के दबाव में  प्रशासन को आवारा पशुओं को अन्यत्र भेजना पड़ा. उन्होंने साझा लड़ाइयों पर ज़ोर दिया.


ब्लॉक के प्रधान संघ के अध्यक्ष अनूप नेगी ने कहा कि ये सारी परियोजनाएं उत्तराखंड के किसी काम की नहीं है. पहाड़ का पानी हमारे काम नहीं आ रहा है बल्कि इसकी आड़ में हम पर ऐसा हमला हो रहा है, जैसा 15 जुलाई को हेलंग में हुआ. इस लड़ाई को बड़ा स्वरूप प्रदान करने की आवश्यकता है.  


लाता के वन पंचायत सरपंच धर्मेंद्र राणा ने कहा कि ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए, जो संकट के समय जनता के साथ खड़े होने के बजाय कंपनियों की दलाली कर रहे हैं. हमारे अस्तित्व और जीवन का आधार है-जल,जंगल, जमीन.


सभा को नैनीताल से आई माया चिलवाल, पैनी की महिला मंगल दल की अध्यक्ष हेमा रौतेला, सेलंग की महिला मंगल दल की अध्यक्ष भवानी देवी, , जनदेश की कलावती साह,उर्गम की महिला मंगल दल अध्यक्ष अनीता देवी,महिला एकता परिषद, एआईडीएसओ की रेशमा,पत्रकार एक्टिविस्ट त्रिलोचन भट्ट, पूरन बर्त्वाल,उत्तराखंड महिला मंच की पद्मा गुप्ता,पद्मा रावत, कमलेश्वरी बडोला, शांति सेमवाल, करुणा राणा, गौरी देवी,विजया नैथानी,गीता देवी,बीना देवी,दमयंती देवी किशोरी देवी,विमला देवी,कॉंग्रेस नेता कमल रतूड़ी आदि शामिल थे. 

 -इन्द्रेश मैखुरी 

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