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उच्च न्यायालय को न्यायिक प्रक्रिया का पाठ पढ़ाया उच्चतम न्यायालय ने !

 








केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा मोनू की जमानत को उच्चतम न्यायालय ने रद्द कर दिया. ज्ञातव्य है कि आशीष मिश्रा मोनू पर आरोप है कि  03 अक्टूबर 2021 को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले के तिकोनिया में उसने अपनी थार गाड़ी किसानों के ऊपर चढ़ा दी,जिसमें चार किसानों और एक पत्रकार की मौत हो गयी और कई घायल हुए. 











यह समय था जब पूरे देश में केंद्र सरकार के तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ आंदोलनरत थे. केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने अपने एक भाषण में किसानों के खिलाफ धमकी भरी भाषा का इस्तेमाल किया था.











 इसके खिलाफ किसानों ने टेनी के विरोध का ऐलान किया था.



03 अक्टूबर 2021 को टेनी जब अपने गाँव में एक दंगल का उद्घाटन करने के लिए उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के साथ आने वाले थे. प्रदर्शनकारी किसानों ने हेलीपैड घेर लिया. विरोध प्रदर्शन जब समाप्त हो कर किसान वापस लौट रहे थे, तभी पीछे से मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा मोनू ने किसानों पर गाड़ी चढ़ा कर उन्हें रौंद डाला.







इस प्रकरण का पूरे देश में विरोध होने पर उत्तर प्रदेश सरकार को आशीष मिश्रा को गिरफ्तार करना पड़ा. उच्चतम न्यायालय ने भी इस मामले में एसआईटी का गठन किया था.


उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने 10 फरवरी 2022 को आशीष मिश्रा को जमानत दे दी. चार्जशीट दाखिल होने और आशीष मिश्रा द्वारा जांच में सहयोग करने जैसे आधारों पर जमानत दी गयी.


इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा कल (18 अप्रैल 2022) को सुनाये गए फैसले में उच्च न्यायालय के फैसले पर तीखी टिप्पणी की गयी है. उच्चतम न्यायालय ने अपने चौबीस पन्नों के फैसले में लिखा कि उच्च न्यायालय, पीड़ितों के अधिकारों को मान्यता देने में विफल रहा. उच्च न्यायालय में आशीष मिश्रा की जमानत पर सुनवाई के दौरान,  पीड़ित पक्ष नेटवर्क की दिक्कत के चलते डिसकनेक्ट हो गया. पीड़ित पक्ष ने इस आधार पर उनकी बात पुनः सुने जाने का आग्रह उच्च न्यायालय से किया   पर इस आग्रह का ठुकरा दिया गया. उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की खंडपीठ ने फैसले में लिखा- इससे स्पष्ट है कि आरोपी को जमानत देते समय पीड़ितों को निष्पक्ष एवं प्रभावकारी सुनवाई से इंकार किया गया.


उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में लिखा कि आम तौर पर निचली अदालतों द्वारा दी गयी जमानत के मामले में यह न्यायालय (उच्चतम न्यायालय) हस्तक्षेप नहीं करता है. लेकिन अगर यह पाया जाये कि ऐसा आदेश अवैध या विकृत है या यह ऐसी असंगत सामग्री पर आधारित है, जो जमानत के आदेश को दोषपूर्ण बना देता है तो ऐसे फैसले को खारिज करना और जमानत रद्द करना अपीलीय अदालत के दायरे में आता है.


उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में लिखा कि आरोपी को जमानत देने में उच्च न्यायालय ने असंगत सामग्री को ध्यान में रखा और जमानत देने के लिए स्थापित न्यायिक दृष्टांतों और प्रतिमानों की अनदेखी की. उच्चतम न्यायालय ने लिखा कि उच्च न्यायालय ने जमानत देने में अदूरदर्शितापूर्ण रुख अपनाया.


उच्च न्यायालय द्वारा आशीष मिश्रा मोनू को जमानत देने के फैसले के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय की कठोर टिप्पणियां बताती हैं कि अभियुक्त को जमानत हासिल होने में कानून का नहीं बल्कि अभियुक्त की शक्तिशाली पृष्ठभूमि ने अधिक भूमिका निभाई.


उच्च न्यायालय के फैसले पर तीखी टिप्पणियां करते हुए उच्चतम न्यायालय ने आशीष मिश्रा मोनू की जमानत रद्द कर दी और उसे एक हफ्ते में समर्पण करने को कहा. उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस मामले के पीड़ितों और गवाहों की सुरक्षा का आदेश दिया. गौरतलब है कि बीते दिनों इस मामले के गवाहों पर हमले की खबरें लगातार आती रही हैं.


इस मामले में फ़ौजदारी मुकदमों के दौरान पीड़ित पक्ष के अधिकार पर भी उच्चतम न्यायालय ने विस्तार से प्रकाश डाला है.


उच्चतम न्यायालय में इस मामले की सुनवाई के दौरान सबसे रोचक रुख उत्तर प्रदेश सरकार का था. उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने दलील दी कि जमानत की सुनवाई को “मिनी ट्रायल” नहीं बनाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि जमानत का फैसला करते हुए यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि क्या अभियुक्त साक्ष्य नष्ट कर सकता है और क्या उसके फरार होने का खतरा है. इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार के इंतज़ामों का हवाला देते हुए उन्होंने दोनों संभावनाओं से इंकार किया. उनकी इन दलीलों से ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वे अभियुक्त को जमानत दिये जाने की पैरवी कर रहे हों ! पर अपनी दलीलों से ठीक विपरीत तर्क करते हुए उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय में अभियुक्त को जमानत देने का उत्तर प्रदेश सरकार ने तीव्र विरोध किया था और अभी भी वह किसी तरीके से अपने पुराने पक्ष से डिगी नहीं है.


यह प्रकरण एक बार फिर कानून के राज के नाम पर चल रहे विद्ररूप की तरफ इंगित करता है. लोगों  को गाड़ी से कुचलने के जिस आरोपी की जमानत रद्द करने के लिए देश की सबसे बड़ी अदालत को एक राज्य की सबसे बड़ी अदालत   पर दृष्टिदोष होने जैसी कठोर टिप्पणी करणी पड़ती है, उस आरोपी का पिता, देश की सरकार के गृह विभाग में राज्य मंत्री है ! यह क्रूर मज़ाक नहीं तो और क्या है ?


-इन्द्रेश मैखुरी

 

 

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