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नागालैंड में हिंसा

 








भारत के उत्तर पूर्व का राज्य नागालैंड जल रहा है. यहां भारतीय सेना द्वारा एक वाहन पर गोली चलाने से 6 लोगों की मृत्यु हो गयी.







 बाद में हुई झड़पों में सात लोग और मारे गए.  वाहन पर गोली चलाये जाने से मारे गए छह लोगों के बारे में कहा जा रहा है कि वे कोयले की खदान में काम करने वाले थे. संसद में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह गोलीबारी सेना द्वारा पहचानने में भूल (mistaken identity) का परिणाम है.












लेकिन लगता है कि नागालैंड की भाजपा, जो राज्य में सरकार में साझीदार भी है, गृह मंत्री अमित शाह के इस बयान से इतर राय रखती है. इस गोलीकांड के बाद आए बयानों से लगता है कि नागालैंड भाजपा के अध्यक्ष और भाजपा के मोन जिले के अध्यक्ष, अपनी ही पार्टी की केंद्र सरकार के गृह मंत्री की इस राय से सहमत नहीं हैं.








तेमजेन इमना अलोंग, भाजपा के नागालैंड प्रदेश अध्यक्ष हैं. वे नागालैंड सरकार में उच्च शिक्षा और जनजातीय मामलों के मंत्री भी हैं. 











उक्त गोलीकांड के बाद उन्होंने सेना द्वारा नागरिकों की हत्या किए जाने की कड़े शब्दों में निंदा की. उन्होंने इसे नरसंहार बताया. अपने बयान में उन्होंने कहा कि वे मजदूर थे, जिनके पास कोई हथियार नहीं थे. इसलिए यह शांतिकाल में किया गया युद्ध अपराध है. तेमजेन इमना अलोंग ने अपने बयान में कहा कि इसे किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और केवल इंटेलिजेंस फेलियर पर सारा दोष मढ़ना, एक बेहूदा बहाना है.


उक्त हत्याकांड ओटिंग में घटा जो नागालैंड के मोन जिले में आता है. मोन जिले  के भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष ने भी जो कुछ कहा, वह अमित शाह के बयान को ही गलत सिद्ध करता है. मोन जिले के भाजपा अध्यक्ष न्यावंग कोनयक तो कहते हैं कि सैनिकों ने उनकी गाड़ी पर भी गोली चलायी, जिस पर भाजपा का झण्डा लगा हुआ था. 


उनका आरोप है कि सैनिकों ने मृत लोगों को खाखी वर्दियाँ पहनाने की कोशिश की, जिसके बाद सैनिकों और स्थानीय लोगों के बीच बहस शुरू हो गयी. इस बहस के बाद सैनिकों द्वारा चलायी गयी गोली के बारे में न्यावंग कोनयक ने टिप्पणी की- खुशी-खुशी मार रहे थे !


भाजपा के इन दो नेताओं के बयानों से स्पष्ट है कि यह गलतफहमी की वजह से चलायी गयी गोलियों की वजह से हुई मौतें तो नहीं है बल्कि इसके पीछे कुछ बेहद गंभीर निहितार्थ हैं. इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए नागालैंड पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ़आईआर) दर्ज कर ली है. द वायर के अनुसार नागालैंड पुलिस की प्राथमिक जांच में भी यह बात सामने आई है कि मारे गए लोग खदान मजदूर थे, जिन पर बिना उकसावे के गोलियां चलायी गयी.   


 सैन्य बल विशेषाधिकार कानून( एएफ़एसपीए) को लेकर भी उत्तर पूर्व में फिर से सवाल खड़े हो गए हैं. यह कानून किसी भी क्षेत्र को गड़बड़ी वाला क्षेत्र घोषित किए जाने के बाद सेना को असीमित अधिकार देता है. नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफिऊ रियो, जो भाजपा के साथ गठबंधन सरकार चला रहे हैं, उनका कहना है कि एएफ़एसपीए के चलते सेना ने उनके राज्य में कानून व्यवस्था की समस्या पैदा कर दी है. मेघालय में भी भाजपा के साथ गठबंधन सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री कौनराड संगमा ने एएफ़एसपीए हटाने की मांग की है.


गोलीकांड के बाद भड़की हिंसा में एक सैनिक की भी मौत हो गयी. विडम्बना यह है कि मारा गया सैनिक गौतम लाल भी एक साधारण परिवार से था. इस तरह हिंसा के इस चक्र में जहां एक तरफ कोयला खदान के मजदूरों को जान गंवानी पड़ी, उसके बाद अन्य सामान्य नागरिक सुरक्षा बलों की गोली का शिकार हुए. हिंसक झड़पों में एक सैनिक भी मारा गया. सुरक्षा बलों की गोलीबारी में मरने वालों की संख्या कुल पंद्रह हो चुकी है.  


एक तरफ नागालैंड में शांति कायम करने के लिए केंद्र सरकार शांति वार्ता चलवा रही है और दूसरी तरफ निर्दोष नागरिक मारे जा रहे हैं. नागालैंड में इस तरह निर्दोष मजदूरों की हत्या किया जाना बेहद निंदनीय है. सुरक्षा के नाम पर निर्दोषों के कत्ल की कतई अनुमति नहीं होनी चाहिए. ऐसी घटना क्यूं घटी, इसके पीछे क्या मंतव्य था, बिना किसी उकसावे के अंधाधुंध गोली चलाने का विचार किसका था, यह सब एक व्यापक जांच एवं खुलासे की मांग करता है.


-इन्द्रेश मैखुरी

     

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