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विनोद दुआ : सरकार और दरबार के बरखिलाफ मोर्चे पर खड़ा पत्रकार

 







 

बहुत दिनों से जिस बात की आशंका प्रकट की जा रही थी, वह हो ही गया- पत्रकार विनोद दुआ का देहावसान हो गया.








शुरुआती तौर पर जिन पत्रकारों को देखा, विनोद दुआ उनमें से थे. दूरदर्शन पर ही दो लोगों की जोड़ी- विनोद दुआ और प्रणॉय रॉय को पहले-पहल देखा था. विनोद दुआ हिन्दी में परख नामक कार्यक्रम प्रस्तुत करते और प्रणॉय रॉय शुक्रवार को  अंग्रेजी में द वर्ल्ड दिस वीक. फिर चुनावों के परिणामों के दौरान भी इस जोड़ी को हिन्दी-अंग्रेजी में चुनावों का विश्लेषण करते सुना. देख कर ऐसा लगता था कि अपनी विशिष्टताओं के साथ ये दोनों एक-दूसरे के हिन्दी-अंग्रेजी संस्करण हैं.  बाद के दिनों में प्रणॉय रॉय ने दूरदर्शन पर एक कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाली अपनी कंपनी- न्यू डेल्ही टेलिविजन को पूरे टेलिविजन चैनल में बदल दिया. शुरुआती तौर पर तो एनडीटीवी के हिन्दी संस्करण कई सारे पत्रकार वही थे जो विनोद दुआ के परख में संवाददाता थे.  बाद के दिनों में विनोद दुआ एनडीटीवी पर एक खाने का शो करते थे- जाइका इंडिया का, जिसका टैग लाइन थी- हम देश के लिए खाते हैं ! हालांकि विनोद दुआ जैसे प्रतिभावन और सभी विषयों पर मजबूत पकड़ वाले पत्रकार को इस शो में देख कर ऐसा लगता था कि यह उनके सामर्थ्य और हुनर की बर्बादी है. संभवतः विनोद दुआ ने स्वयं भी ऐसा समझा होगा और फिर वे एनडीटीवी से निकल कर अलग-अलग चैनलों और डिजिटल प्लैटफ़ार्मों पर समसामयिक विषयों पर कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे.


दूरदर्शन के जमाने में भी वे मंत्रियों से तीखे सवाल पूछ लेते थे और जीवन के अंतिम समय तक अपना बेबाक-बेलौस अंदाज उन्होंने कायम रखा. वे सीधी और खरी बात कहने में यकीन रखते थे. हिंदी और अंग्रेजी भाषा पर उनकी समान रूप से पकड़ थी.


आज के दौर में पत्रकारों में सत्ता प्रतिष्ठान का प्रवक्ता बनने की होड़ है, वे सत्ता के प्रवक्ताओं से भी नीचे उतर कर सत्ता के पक्ष में खड़े दिखना चाहते हैं. ऐसे में कुछ साल पहले एक भाषण में विनोद दुआ अपनी बिरादरी से कह रहे थे- हमें सरकारी नहीं होना, हमें दरबारी नहीं होना.


सरकारी और दरबारी होने के बरखिलाफ सरकार और दरबार की आंखों में आंखें डाल कर मोर्चा लेने वाले इस साहसी पत्रकार को नमन, श्रद्धांजलि.


-इन्द्रेश मैखुरी  

 

 

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1 Comments

  1. एक बेबाक पत्रकार को आख़िरी सलाम!

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