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विवशता के प्रतिनिधि चेहरे !

 







लोग भाजपा के रंग में रंग कर आए,भाजपा का झंडा उठा कर आए पर भाजपा के लिए नहीं बल्कि इसलिए आए कि कोई तो उनकी पीड़ा,उनका दुख सुन ले. आम जन बन कर कोई सुनवाई नहीं हो रही तो शायद सत्ता का रंग ओढ़ कर, उनका झंडा उठा कर ही कोई सुन ले !


जी हाँ, ऐसा ही कुछ दिखा 04 दिसंबर को देहरादून में प्रधानमंत्री की रैली में.  पिछले सात-आठ वर्षों में भाजपा ने दो ही काम बड़ी कुशलता से किए हैं, पहला चुनाव प्रचार और दूसरा मीडिया मैनेजमेंट. लेकिन फिर भी कई बार, कुछ जनपक्षधर पत्रकारों और कई बार परिस्थितियों के चलते कुछ हकीकत भी सामने आ ही जाती है.


ऐसा ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देहरादून की रैली में भी हुआ. प्रधानमंत्री मंच से अठारह हजार करोड़ की योजनाओं का घोष करते रहे, डबल इंजन द्वारा विकास की गंगा बहाने का दावा करते रहे और उधर भीड़ में भाजपा के रंग में पुते, भाजपा का झंडा उठाए, आम जन इस आस में रहे कि कोई उनकी बात, उनकी फरियाद भी तो सुने.


दैनिक अखबार-हिंदुस्तान और टीवी चैनल- ईटीवी पर दो खबरों डबल इंजन के विकास की गंगा की हकीकत बयान कर रही थी.


 हिंदुस्तान में छपी ठाकुर सिंह नेगी की खबर के अनुसार हरिद्वार से आए एक बुजुर्ग सिर पर भाजपा की टोपी और हाथ में मोदी की तस्वीर लिए रैली में आए. 



फोटो साभार : हिंदुस्तान 





पर वे प्रधानमंत्री को देखने या उनके वाग्जाल पर मोहित कर रैली में नहीं आए थे बल्कि ये बुजुर्ग बलवंत कुमार राशन कार्ड बनवाने की अर्जी के साथ रैली में आए थे. खबर के अनुसार इन बुजुर्ग का आठ साल से राशन कार्ड नहीं बन रहा है. वे समझे कि क्या पता प्रधानमंत्री की रैली से राशन कार्ड बनने का रास्ता खुले.  पर प्रधानमंत्री तो भाषण देने आए थे राशन देने नहीं तो इन बुजुर्ग को अपनी अर्जी के साथ वापस ही लौटना था !


दूसरी खबर ईटीवी उत्तराखंड पर थी. उन्होंने उस युवक की कहानी दिखाई जो अपने पूरे शरीर और चेहरे पर भाजपा के झंडे का रंग पोत कर आया था. युवा मनोज जखमोला ने कहा कि वह रोजगार की आस में ऐसा करता




वीडियो साभार : ईटीवी उत्तराखंड 






 है. इस युवा पर सोशल मीडिया पर कई सारे मीम्स बनते रहे हैं क्यूंकि यह इसी तरह खुद को कभी कॉंग्रेस तो कभी भाजपा के रंग में पोत का रैलियों में दिखता.  मीम्स में इसे अवसरवाद की मिसाल के तौर पर पेश किया जाता है पर ईटीवी की इस खबर से  पता चला कि वह अवसरवाद का नहीं आम जन की विवशता का प्रतिनिधि चेहरा है, जो बेहतरी की आस में इस या उस पार्टी के रंग में स्वयं को रंग था, हर बार ठगा जाता है और हर बार उस रंग को अपने शरीर से  छुड़ाने की पीड़ा भी भुगतता है.


प्रधानमंत्री जी कह गए कि उत्तराखंड में पूर्व की सरकार ने कोई विकास नहीं किया. हास्यास्पद यह था कि पूर्व की सरकार के अधिकांश मंत्री उनकी डबल इंजन की सरकार में मंत्री हैं, जिनका नाम प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में बड़े सम्मान से लिया ! प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके डबल इंजन ने प्रदेश में विकास की गंगा बहा दी है. स्वयं उनकी रैली में उनकी पार्टी के रंग में रंगे लोगों की पीड़ा बता रही है कि विकास की गंगा तो छोड़िए विकास का नाला भी कहीं से नहीं बहा है !


  सरकारी दफ्तरों में ठोकर खाये हुए लोगो, तुम यदि समझते हो कि इनकी रैली में झंडा पकड़ कर तुम्हारी सुनवाई होगी तो यह समझ लो कि इनकी रैली और प्रधानमंत्री की शैली तो संवाद नहीं एकालाप है.  उसमें एकतरफा दावें हैं.  माइक्रोफोन तो है पर ईयरफोन नहीं है. यह समझ लो कि जब तक तुम्हारी पीड़ा टुकड़े-टुकड़े में रिसती रहेगी कहीं सुनवाई न होगी, अपनी पीड़ा को समेटो, उसे रिसने मत दो, उससे ऐसा बवंडर पैदा करो कि सिंहासन डोलते नजर आयें, एकालाप के शहंशाहों की जुबान पर ताला पड़ जाये और उनके बंद पड़े कान खुल जायें.  तुम्हारी विवशता नहीं, तुम्हारा एकजुट संघर्ष, तुम्हारी समस्याओं के समाधान का रास्ता खोलेगा !


-इन्द्रेश मैखुरी

 

 

 

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1 Comments

  1. 'रैली और शैली' के बीच लाचार चेहरों का समाधान ज़रूरी है।

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