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क्या उत्तराखंड के आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज,हाई कोर्ट-सुप्रीम कोर्ट से भी ऊपर हैं?

 








ऐसा लगता है कि उत्तराखंड में प्राइवेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज चलाने वालों ने ठान रखा है कि चाहे कुछ हो जाये पर वे उन अभिभावकों को आर्थिक रूप से निचोड़ कर रहेंगे, जिन्होंने अपने बच्चों को उनके कॉलेजों में एडमिशन दिलाने की “भूल” कर दी !







ताजा जानकारी के अनुसार उत्तराखंड के प्राइवेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज के मालिकान, अभिभावकों से वह फीस भी वसूलने पर उतारू हैं, जिस फीस वृद्धि को अवैध घोषित करते हुए, वापस लौटाने का आदेश उत्तराखंड उच्च न्यायालय 2018 में कर चुका है. अभिभावकों का कहना है कि प्राइवेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों ने उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार फीस वापस नहीं लौटाई तो उन्हें लगा कि यह आगे की फीस में एडजस्ट कर दी जाएगी. लेकिन अब आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज अभिभावकों से उसी फीस वृद्धि के अनुसार फीस जमा करने को कह रहे हैं, जिसे हाई कोर्ट रद्द कर चुका है. उच्चतम न्यायालय द्वारा भी फीस वृद्धि को रद्द करने के फैसले पर मोहर लगायी जा चुकी है पर प्राइवेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज तो जैसे इस सबसे ऊपर हैं !


आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों द्वारा फीस वृद्धि का यह किस्सा जितना लंबा है, उतना ही वह इन मेडिकल कॉलेजों द्वारा फीस बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक जाने की दास्तान भी है.


  14 अक्टूबर 2015 को यानि हरीश रावत के मुख्यमंत्रित्व काल में तत्कालीन प्रमुख सचिव ओमप्रकाश द्वारा एक शासनादेश जारी करके निजी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों में बी.ए.एम.एस. की फीस 80 हजार रुपये प्रतिवर्ष तथा छात्रावास शुल्क 18 हजार रुपये को बढ़ा कर 2 लाख 15 हजार रुपया प्रतिवर्ष कर दिया गया. बी.एच.एम.एस. पाठ्यक्रम के लिए यह फीस 73 हजार 600 रुपया प्रतिवर्ष तथा छात्रावास शुल्क 18 हजार रुपये से  बढ़ा कर 1 लाख 10 हजार रुपया प्रति वर्ष कर दी गयी.बढ़ी हुई फीस नए छात्र- छात्राओं से ही नहीं पहले से पढ़ रहे छात्र-छात्राओं से भी वसूली जाने लगी.  तत्कालीन प्रमुख सचिव ओम प्रकाश का फीस वृद्धि संबंधी उक्त आदेश पूरी तरह अवैधानिक था. 2004 में पी.ए. इनामदार बनाम महाराष्ट्र सरकार के मुकदमे में उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया था कि प्राइवेट कॉलेजों की फीस निर्धारण के लिए राज्य स्तर पर विशेषज्ञ कमेटी गठित की जाये. उक्त आदेश के अनुपालन में उत्तराखंड सरकार  द्वारा  उत्तरांचल अनएडेड प्राइवेट प्रोफेशनल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस (रेग्युलेशन एंड फ़िक्सेशन ऑफ फी) अधिनियम,2006” पारित किया गया. उक्त अधिनियम के अनुसार निजी संस्थानों में शुल्क निर्धारण, उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली कमेटी द्वारा किया जाएगा. जहां 2006 में पारित उक्त अधिनियम में शुल्क निर्धारण कमेटी के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश को नामित करने का अधिकार उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दिया गया था,वहीं 2010 में राज्य में बनी भाजपा की सरकार ने उक्त अधिनियम में संशोधन करके शुल्क निर्धारण कमेटी के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश को नामित करने का अधिकार सरकार के हाथ में यानि स्वयं के हाथ में ले लिया.


 फिर भी शुल्क वृद्धि का अधिकार वैधानिक रूप से उक्त कमेटी को ही है. परंतु तत्कालीन प्रमुख सचिव ओमप्रकाश ने हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में नियम -कायदों की धज्जियां उड़ाते हुए स्वयं ही शुल्क वृद्धि का ऐलान कर दिया. इस शुल्क वृद्धि के खिलाफ बी.ए.एम.एस. के  2013-14,2014-15 तथा 2015-16 बैच के 5 छात्रों ने उच्च न्यायालय,नैनीताल में जनहित याचिका दाखिल की. उत्तराखंड सरकार ने न्यायालय में तर्क दिया कि उक्त शुल्क वृद्धि इसलिए जायज है क्यूंकि यह 7 साल बाद की गयी है. जुलाई 2018 में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकल पीठ ने राज्य सरकार के तर्क को खारिज  करते हुए फीस वृद्धि के राज्य सरकार के आदेश को अरक्षणीय करार देते हुए रद्द कर दिया. एकल पीठ ने यह भी आदेश दिया कि यदि किसी कॉलेज ने छात्र-छात्राओं  से बढ़ी हुई फीस ली है तो न्यायालय के आदेश की प्रति प्राप्त होने के 2 हफ्ते के भीतर वह वसूली गयी धनराशि लौटा दे.


उच्च न्यायालय की एकल पीठ के फैसले के खिलाफ प्राइवेट आयुर्वेदिक कॉलेजों की एसोसिएशन ने डबल बेंच में अपील की. डबल बेंच ने 9 अक्टूबर 2018 को सुनाये गए अपने फैसले में कहा कि फीस बढ़ाने का राज्य सरकार का निर्णय उत्तरांचल अनएडेड प्राइवेट प्रोफेशनल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस (रेग्युलेशन एंड फ़िक्सेशन ऑफ फी) अधिनियम,2006 और उच्चतम न्यायालय द्वारा स्थापित कानून का उल्लंघन है.साथ ही डबल बेंच ने एकल पीठ के फैसले को सही करार दिया.


उच्चतम नयायालय ने 20 जुलाई 2020 को उत्तराखंड के आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों में फीस वृद्धि को रद्द करने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी. यह याचिका एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज द्वारा दाखिल की गयी थी. उच्चतम न्यायालय ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की याचिका न केवल खारिज कर दी,बल्कि यह भी आदेश दिया कि इस मामले में कोई पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं की जा सकेगी.


यह भी गौरतलब है कि इस फीस वृद्धि को रद्द करवाने और उच्च न्यायालय का फैसला लागू करवाने के लिए प्राइवेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने 2019 में देहारादून में परेड ग्राउंड में कई महीनों तक धरना-प्रदर्शन किया. इस दौरान इन छात्रों का पुलिस द्वारा उत्पीड़न भी तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने किया.


वैधानिक रूप से होना तो यह चाहिए था कि उच्च न्यायालय का आदेश लागू करवाते हुए आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों द्वारा बढ़ाई गयी फीस,  उत्तराखंड सरकार को वापस दिलवानी चाहिए थी. लेकिन उत्तराखंड सरकार उस समय खुले तौर पर प्राइवेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों के पक्ष में खड़ी हो कर इन कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं का ही उत्पीड़न करती रही.


अभिभावकों के अनुसार वर्तमान समय में प्राइवेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों ने बेहद चालाकी बरतते हुए फीस वसूली का कोई लिखित आदेश नहीं निकाला है बल्कि मौखिक रूप से छात्र-छात्राओं से बढ़ी हुई दरों पर फीस जमा करने को कहा जा रहा है. इन आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों द्वारा पूर्व में बढ़ाई गयी फीस उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद न लौटना और पुनः बढ़ी हुई फीस वसूलना यह दर्शाता है कि वे, उत्तराखंड सरकार के संरक्षण के प्रति इस कदर आश्वस्त हैं कि उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लंघन करने में भी उन्हें कोई गुरेज नहीं है.


प्राइवेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों द्वारा फीस वसूली के नाम पर की जा रही इस लूट पर रोक लगनी चाहिए.


-इन्द्रेश मैखुरी  

 

 

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