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बेनीताल : असल हाल

 






उत्तराखंड के चमोली जिले में कर्णप्रयाग से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बेनीताल आजकल सुर्खियों में है. अचानक सोशल मीडिया में चर्चा चल पड़ी है कि वहां कोई अवैध अतिक्रमण कर लिया गया है. कुछ लोग और अधिक ताव में आ गए, जिन्हें इसमें भू माफिया और जाने किस-किस का हाथ नजर आने लगा है.


पर बेनीताल का असल हाल क्या है ? वहां जो जमीन है, उस पर किसका स्वामित्व है ? जो सनसनी फैलाई जा रही है,उसकी जमीनी हकीकत क्या है ? इस सिलसिले में शहीद स्मृति बेनीताल विकास समिति के सचिव बीरेन्द्र सिंह मिंगवाल जी के साथ चर्चा की. मिंगवाल जी इस क्षेत्र से जिला पंचायत के सदस्य रहे हैं. 2004 में बाबा मोहन उत्तराखंडी द्वारा गैरसैण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनाए जाने समेत अन्य मांगों के लिए किए गए आमरण अनशन के दौरान,उस आंदोलन से वे सक्रियता से जुड़े रहे और बाबा की शहादत के बाद 2005 से हर वर्ष बेनीताल में शहीद स्मृति मेला आयोजित करते रहते हैं.


इस चर्चा में बेनीताल में प्रश्नगत जमीन से जुड़े सभी पहलुओं पर हमने चर्चा की. चर्चा को नीचे दिये गए वीडियो में देखा जा सकता है.  :






बेनीताल के मामले में 1978 से लेकर 2011 तक मुकदमें का 33 साल का इतिहास है. मामला असिस्टेंट कलेक्टर, कर्णप्रयाग से लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय तक गया और अंततः उच्चतम न्यायालय में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया की अध्यक्षता में पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले का निस्तारण किया. मुकदमें के इस इतिहास का भी जिक्र वीडियो में है.


इस मामले में अंग्रेजी अखबार- टाइम्स ऑफ इंडिया की भूमिका हैरत में डालती है. टाइम्स ऑफ इंडिया की संवाददाता ने इस मामले के मुकदमें का पूरा इतिहास लिखते हुए भी इसे सनसनीखेज बना दिया ! जबकि इस मामले में मुकदमें का इतिहास जानने के बाद उन्हें समझ जाना चाहिए था कि जो उन्हें बताया जा रहा है, वह तो खबर है ही नहीं !


इस सिलसिले में सिर्फ यह निवेदन है कि किसी भी मुद्दे को उछालने और उसे सनसनी बनाने से पहले उसके सभी पहलुओं को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए. किसी भी मसले में उत्तेजना और सनसनी से समाधान तक नहीं पहुंचा जा सकता. इसके लिए मामले की ठोस समझदारी आवश्यक है.


-इन्द्रेश मैखुरी  

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