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उत्तराखंड में रोजगार का सवाल

 




खबर है कि उत्तराखंड में 15 जून को आयोजित होने वाली स्टाफ नर्स  की भर्ती परीक्षा एक बार फिर स्थगित हो गयी है. यह परीक्षा पहले 28 अप्रैल को प्रस्तावित थी. कोरोना के चलते इसकी तिथि 28 मई की गयी,फिर तिथि पुनर्निर्धारित करते हुए 15 जून की गयी. अब 15 मई को भी यह परीक्षा स्थगित कर दी गयी है. स्टाफ नर्स के 2621 पदों के लिए यह परीक्षा आयोजित होनी है पर इसकी स्थिति – तारीख पर तारीख – वाली हो चुकी है.


उत्तराखंड सरकार के कैबिनेट मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत का बयान बीते दिनों अखबारों में प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने कहा कि राज्य सरकार नियुक्तियों के लिए सेवायोजन विभाग के जरिये एक नयी आउटसोर्सिंग एजेंसी बना रही है, जो बेरोजगारों से नियुक्त पर कमीशन भी नहीं लेगी. मंत्री महोदय के बयान से स्पष्ट है कि सरकार का राज्य के बेरोजगारों को स्थायी नियुक्ति देने का कोई इरादा नहीं है. बल्कि आउटसोर्सिंग से भर्ती करके ही राज्य सरकार अपना काम चलाना चाहती है. यह तब है जब उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों के कल्याण के नाम पर बना निगम- उपनल- बरसों से आउटसोर्सिंग एजेंसी या यूं कहें कि ठेके पर मजदूर सप्लाई करने वाली एजेंसी ही बना हुआ है. 15-16 वर्ष से अधिक उपनल के जरिये अस्थायी, असुरक्षित नौकरी कर चुके युवा समय-समय पर स्थायी नियुक्ति के लिए आंदोलन करते रहते हैं. हाल में ही उपनल कर्मियों के आंदोलन को उत्तराखंड सरकार ने कुछ आश्वासन दे कर खत्म किया है. लेकिन अब मंत्री जी के नई आउटसोर्सिंग एजेंसी वाले बयान से ऐसा लगता है कि युवाओं के स्थायी एवं नियमित नौकरी के सपने पर मट्ठा डालने के लिए उपनल की ही तरह एक और आउटसोर्सिंग एजेंसी बनाने की तैयारी उत्तराखंड की भाजपा सरकार कर रही है. यह विडंबना है कि जो खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, वे सत्ता पाने के बाद बेरोजगार युवाओं के योग्यता अनुसार रोजगार पाने के रास्ते में नित नई बाधाएं खड़ी करते रहते हैं.


2019 को उत्तराखंड में त्रिवेंद्र रावत ने मुख्यमंत्री रहते रोजगार वर्ष घोषित किया था. लेकिन रोजगार का रास्ता बेरोजगार युवाओं के लिए न खुल सका. हाल ही में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में बीते पाँच सालों में बेरोजगारी की दर 1.61 प्रतिशत से बढ़ कर 10.99 प्रतिशत हो गयी है. वर्ष 2018 में उत्तराखंड सरकार द्वारा तैयार करवाई गयी मानव संसाधन विकास रिपोर्ट के अनुसार राज्य में माध्यमिक स्तर से ऊपर के पढे लिखे युवाओं में बेरोजगारी की दर 2004-05 में 9.8 प्रतिशत थी और 2017 में यह दर बढ़ कर 17.4 प्रतिशत हो गयी.


दैनिक अमर उजाला में आज प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा विभाग में 370 पदों पर भर्ती की तैयारी है पर इन पदों को भी आउटसोर्सिंग से भरा जाना और इसके लिए पीआरडी को आउटसोर्सिंग एजेंसी के तौर पर प्रयोग किया जाएगा.राज्य में तकरीबन 56 हजार पद खाली हैं, लेकिन राज्य सरकार स्थायी नियुक्ति की दिशा में कदम उठाने को तैयार नहीं है.


पाँच साल होने को हैं और उत्तराखंड में लोकसेवा आयोग पीसीएस की एक भी परीक्षा आयोजित नहीं करवा सका है.





 इन परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं के लिए भविष्य का दरवाजा उत्तराखंड सरकार और उसका लोकसेवा आयोग बंद करने पर उतारू है.


तो क्या उत्तराखंड में किसी को रोजगार नहीं मिलता ? क्यूँ नहीं ! पाँच साल में दो मुख्यमंत्री पा जाते हैं हम ! पार्टी अदल-बदल करके जो मंत्री बने हुए हैं,उन्हें देख कर तो ऐसा लगता है कि स्थायी एवं नियमित नियुक्ति तो उनकी ही है !


और नौकरशाहों की जमात भी तो है, जो रिटायर बाद में होते हैं और नयी नौकरी उनके दरवाजे पर पहले आ कर खड़ी होती है.  उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत द्वारा हाल ही में नियुक्त मुख्यमंत्री के दो सलाहकारों को ही देख लीजिये.


डॉ.आरबीएस रावत उत्तराखंड में वन महकमे के मुखिया रहे. वहाँ से सेवानिवृत्त हुए  तो कॉंग्रेस की सरकार ने उनको उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का अध्यक्ष बना दिया. वहाँ एक परीक्षा में धांधली का मामले सामने आया. रावत साहब ने इतनी कृपा जरूर राज्य पर की कि परीक्षा में धांधली के आरोप सामने आने पर उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया. कॉंग्रेस की सरकार में वे अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष थे और भाजपा की सरकार में वे मुख्यमंत्री के सलाहकार नियुक्त कर दिये गए हैं.


शत्रुघ्न सिंह 2015 में कॉंग्रेस की हरीश रावत सरकार के दौर में उत्तराखंड के मुख्य सचिव  बने. अगले साल 2016 में अपना मुख्य सचिव का कार्यकाल पूरा करने से पहले उन्होंने वीआरएस ले लिया. कॉंग्रेस सरकार के ही जमाने में वे तत्काल मुख्य सूचना आयुक्त बना दिये गए. बीते दिनों मुख्य सूचना आयुक्त का कार्यकाल पूरा होने से पहले शत्रुघ्न सिंह ने फिर इस्तीफा दिया और वे तत्काल ही वे मुख्यमंत्री के सलाहकार नियुक्त कर दिये गए.


इस तरह देखें तो अफसरों के लिए पोस्ट रिटायरमेंट, नौकरी का बंदोबस्त इस राज्य में भाजपा और कॉंग्रेस दोनों बड़ी शिद्दत से करती रही हैं. लेकिन बेरोजगार युवा, जो इनका झण्डा-डंडा ढोते हैं,इनको सत्ता में भी पहुंचाते हैं, उन बेरोजगारों को स्थायी नौकरी पाने की राह में नित नयी दुश्वारियां खड़ी करना, उत्तराखंड के सत्ताधीशों का प्रिय शगल है.


-इन्द्रेश मैखुरी

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