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इनके कुकृत्यों को सही ठहराने के लिए भी कोई मैसेज गढ़ लो !

 






जैसे ही देश में कोरोना की दूसरी लहर ने हाहाकार मचाना शुरू किया,लोग ऑक्सीजन, आईसीयू और दवाओं के लिए त्राहि-त्राहि कर उठे. जाहिर सी बात है कि जब शमशानों में चिताएं जलाने के लिए जगह कम पड़ने लगी तो सत्ता प्रतिष्ठान यानि सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर सवाल खड़े होने लगे. वर्तमान हुकूमत और उसके समर्थकों का यह चरित्र है कि वे और कुछ चाहे  बर्दाश्त करें या न करें पर प्रधानमंत्री पर कोई सवाल बर्दाश्त नहीं कर पाते. प्रधानमंत्री की आलोचना में कही गयी तर्कपूर्ण से तर्कपूर्ण बात का खंडन करने के लिए वे कुतर्क की किसी भी सीमा के पार जाने को तैयार रहते हैं. कोरोना हाहाकार के बीच भी यही हुआ. पहले सभी मीडिया चैनलों को निर्देश दिया गया कि कोरोना के कुप्रबंधन के चलते पैदा दुश्वारियों के संदर्भ में किसी भी हालत में नरेंद्र मोदी सरकार का जिक्र नहीं होना चाहिए. मीडिया से कहा गया कि सरकार की विफलता को सिस्टम की विफलता कहा जाये. सिस्टम को सरकार शब्द का स्थानापन्न बनाते हुए सारी विफलता सिस्टम के मत्थे मढ़ कर मोदी सरकार की छवि बचाने का नायाब नुस्खा निकाला गया. हालांकि ऐसा करते हुए वे भूल गए कि सिस्टम की विफलता भी अंततः उस सिस्टम के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति की ही असफलता में ही तो शुमार होगी. पर वे इतनी बरीकी में नहीं जाते, उनके लिया इतना बहुत है कि इस मामले में मोदी जी का नाम नहीं आ रहा है.



 यह तो हुई ऊपर की बात पर नीचे वाली जनता को भी तो कुछ समझाना पड़ेगा ना ! उनके लिए फिर व्हाट्स ऐप के जरिये फैलाने वाला मैसेज तैयार किया गया. यह मैसेज कहता है कि पीएम , सीएम, सांसद, विधायक, पार्षद सबको गाली दे दो लेकिन 700-800 का ऑक्सीमीटर तीन हजार में,रेमेडेसीवर बीस हजार में बेच रहे हैं,इनको क्या कहोगे. इस तरह और भी क्या-क्या मंहगे दामों में बेचा जा रहा है,उसकी लिस्ट है,इस मैसेज में. अचानक एक व्यक्ति की वाल पर ऐसा मैसेज देखते हैं तो आप उस व्यक्ति की समाज के प्रति चिंता पर फिदा होना चाहते हैं. फिर दसियों जगह बिना कॉमा-फुल स्टॉप के बदलाव के वही मैसेज देखते हैं तो मालूम पड़ता है कि यह तो केंद्रीय प्रचार सामग्री है, जो अपने आकाओं पर उठते सवालों से उन्हें बचाने के लिए ठेली जा रही है.  प्रचंड बहुमत की सत्ता के बावजूद कालाबाजारी हो रही है और उसी सत्ता का आईटी सेल, इसे स्वीकार करते हुए आम जन पर दोष मढ़ते मैसेज फॉरवर्ड कर रहा है,यह गज़ब है ! अरे भई मैसेज ठेलने वालो,यह तो बताओ कि जिस समय ये कालाबाजारी हो रही है,उस समय तुम्हारे ये पीएम, सीएम, सांसद,विधायक आदि कर क्या रहे हैं ? तुमसे मैसेज बनवा रहे हैं ? अगर ये कलाबाजारी रोकना इनका काम नहीं है तो ये क्या फकत मन की बात और चुनाव प्रचार के लिए हैं ?


   

 लेकिन बीते कुछ दिनों के घटनाक्रम से तो साफ हो गया कि जिन पर निशाना साध कर सत्ता का आईटी सेल अपने आकाओं को बचना चाहता है,वे तो उन्हीं के खेमे के लोग हैं ! महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फड़नवीस के भतीजे तन्मय फड़नवीस को अप्रैल मध्य में कोरोना वैक्सीन की दूसरी डोज़ लग गयी. इसका अर्थ यह है कि 22 वर्षीय तन्मय को पहली डोज़ इससे भी 28 दिन पहले लग गयी होगी जबकि तब तक  18 से 45 वर्ष वालों को वैक्सीन लगाए जाने की घोषणा भी नहीं हुई थी. पूर्व विधायक शोभती फड़नवीस तन्मय की मां और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस की चाची हैं. इसी तरह उत्तराखंड के भाजपा विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैम्पियन के युवा पुत्र को बीते दिनों वैक्सीन लग गयी,जबकि राज्य में 18 से 45 वर्ष वालों को वैक्सीन की अनुपलब्धता के चलते वैक्सिनेशन शुरू ही नहीं हो सका है.




 बिहार में पूर्व केंद्रीय मंत्री और सारण से भाजपा सांसद राजीव प्रताप रुडी के अहाते में मौजूद 30 से अधिक एंबुलेंस इस बात की गवाही दे रही हैं कि आवश्यक चीजों की कालाबाजारी और उन पर कब्जे में सत्ता पक्ष के ही लोग शामिल हैं. सांसद निधि से खरीदी गयी एंबुलेंसों को अपने घर में खड़े रखने के मामले में- ड्राइवरों की अनुपलब्धता- का रुड़ी का तर्क हास्यास्पद है. वे एंबुलेंस रुड़ी की निजी निजी संपत्ति नहीं हैं कि ड्राइवर ना होने पर वे उन्हें अपने घर के पिछवाड़े में रख लें. सांसद निधि का पैसा सार्वजनिक पैसा है. एंबुलेंस खरीदने के बाद वे अस्पतालों को जानी चाहिए थे. वहां ड्राइवर न होने के कारण वे न चलती तो अलग बात होती. अब तो यह भी पता चला है कि जिन एंबुलेंसों को वे ड्राईवर न होने के तर्क के साथ घर में रखे हुए हैं,उन्हीं एंबुलेंसों को बालू ढोने के लिए प्रयोग किया जा रहा है.





एंबुलेंसों के दुरुपयोग के मामले में राजीव प्रताप रुड़ी का नाम कोई पहली बार नहीं आया है. 2002 में भी उनके द्वारा एंबुलेंसों के निजी उपयोग की शिकायत मिलने पर छपरा के तत्कालीन जिलाधिकारी ने एंबुलेंसें जब्त कर ली थी.


एक तरफ बिहार में ही नहीं देश भर में लोग ठेले,रिक्शे पर मरीजों को ले जा रहे हैं,कंधे पर लाश ढोने को विवश हैं और दूसरी ओर सत्ता पक्ष के सांसद अपने घर में सार्वजनिक धन से खरीदी एंबुलेंसों को छुपाए हुए हैं,उनमें रेत ढो रहे हैं ! भाई आईटी सेल वालो,ऐसी संवेदनहीनता और आपदा में अवसर ढूंढने वाले तुम्हारे ही “माननीय” लोग हैं. इनके कुकृत्यों को सही ठहराने के लिए भी कोई मैसेज गढ़ो तो जरा ! कर लो,यही करते रहे हो,यही करना है !


-इन्द्रेश मैखुरी

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