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उत्तराखंड : सरकार का खाप बनना स्वीकार्य नहीं

 

उत्तराखंड की त्रिवेन्द्र रावत की सरकार, केंद्र और भाजपा की अन्य राज्य सरकारों की ही तरह अंतर धार्मिक विवाह के नाम पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है. उत्तराखंड जैसे राज्य में जहां अल्पसंख्यक आबादी बेहद कम है,वहाँ अंतर धार्मिक विवाह को लव जिहाद” जैसे शब्दावली के साथ एक बड़े खतरे के रूप में प्रस्तुत करना,वास्तविक समस्याओं से ध्यान हटा कर एक नकली शत्रु गढ़ने और उसके भय की आड़ में अपनी नाकामियों को छुपाने की कोशिश है.






भाजपा सरकार तमाम चीजों का निजीकरण कर रही है. शिक्षा,स्वास्थ्य,रोजगार जैसे क्षेत्रों का वह निजीकरण करना चाहती है और शादी जैसे नितांत निजी मसले का नियंत्रण अपने हाथों में रखना चाहती है. त्रिवेंद्र रावत और उनकी सरकार याद रखे कि लोगों ने सरकार चुनी है,शादी करवाने का ठेका नहीं सौंपा है.


यह विचित्र विडंबना है कि जो वयस्क लोग सरकार चुनने में सक्षम है,उनके वोट से चुनी हुई सरकार,उन्हें यह बता रही है कि वे जीवन साथी चुनने में सक्षम नहीं है !


1976 के एक शासनादेश की आड़ में यह वितंडा फैलाया जा रहा है. लेकिन जो भी युगल प्रेम के चलते अंतर धार्मिक या अंतर जातीय विवाह करते हैं,वे न तो किसी सरकारी धनराशि की वजह से ऐसा करते हैं, ना ही सरकारी धनराशि मिलना बंद होने के बाद ऐसा विवाह करना बंद करेंगे.


उत्तराखंड सरकार को यदि स्व धर्मियों की ही इतनी चिंता होती तो उनके गरीब बच्चों के लिए चलने वाले सरकारी स्कूलों पर वह ताला नहीं लगा रही होती. राज्य में तीन हजार से अधिक सरकारी स्कूलों को बंद किया जा चुका है. किसी भी तरह के धार्मिक पाखंड में फँसने से लोगों को बचाने के लिए शिक्षा ही सर्वाधिक मजबूत औज़ार है. लेकिन सरकार शिक्षा को गरीबों से छीन लेने का जतन कर रही है. राज्य में हजारों पद रिक्त हैं. सरकार उन पदों को भरने की दिशा में कोई कदम नहीं  उठाना चाहती. स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत बदहाल है. बीते छह माह में हर माह औसतन एक गर्भवती की मृत्यु बिना उपचार के हुई है. इलाज के अभाव में असमय काल-कवलित होती युवा प्रसूताओं के दर्द से सरकार का कोई सरोकार नहीं है. लेकिन उनके अपने जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता को वह नियंत्रित करना चाहती है. किसी भी विवाह के भीतर महिला उत्पीड़न को जायज नहीं ठहराया जा सकता. महिला उत्पीड़न के किसी भी रूप को नियंत्रित करने के उपाय होने चाहिए. लेकिन इसकी आड़ में युवा महिलाओं के जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता को बाधित करने की कोई भी कोशिश कतई स्वीकार नहीं की जा सकती. सरकारों के खाप पंचायत की भूमिका अदा करने की चाह असंवैधानिक और अस्वीकार्य है.


-इन्द्रेश मैखुरी


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