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साथानकुलम : वीभत्सता और क्रूरता के मामले में तमिलनाडू की पुलिस ने अपराधियों को मात दे दी


क्या यह कल्पना भी की जा सकती है कि लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करने के लिए किसी की हत्या हो जाये ? दो दिन पहले तक तो यह ख्याल भी नहीं आ सकता था. लेकिन यह सोचने में भी मुश्किल प्रतीत होने वाले बात अब हकीकत बन चुकी है. तमिलनाडू के तूथूकुड़ी जिले के साथानकुलम के जयराज और बेनिक्स तो पुलिस की हिरासत में न केवल कत्ल किए गए बल्कि बेहद बर्बर-वीभत्स तरीके से कत्ल कर दिये गए. दोनों बाप-बेटों को वहशियाना तरीके से पीटा गया और  उनके यौनांगों को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया.



पर  इतनी दरिंदगी क्यूँ ? सिर्फ इसलिए कि जयराज की दुकान लॉकडाउन में दुकान बंद करने के लिए निर्धारित समय से 15 मिनट देर तक खुली हुई थी ! पुलिस की कथा के अनुसार जयराज और बेनिक्स की दुकान देर तक खुली हुई थी. उन्हें दुकान बंद करने को कहा तो वे जमीन पर बैठ गए और गाली देने लगे. पुलिस द्वारा रचित कथा के अनुसार दोनों बाप-बेटों को आंतरिक चोटें,इसलिए आई क्यूंकि दुकान बंद करने के बजाय वे जमीन पर लुढ़कने लगे. झूठ और मक्कारी  की इंतहा है,यह कथा कि जयराज और बेनिक्स के यौनांग पुलिस की मार से नहीं बल्कि खुद उनके जमीन पर लुढ़कने से क्षत-विक्षत हो गए ! इस तरह से पुलिस ने आंतरिक चोटों से हुई मौतों के लिए मरने वालों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया.


पुलिस की कथा के अनुसार दोनों बाप-बेटे दुकान पर मौजूद थे. जबकि प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार बेनिक्स तो अपने पिता की गिरफ्तारी की खबर सुन कर थाने गया था. विडंबना देखिये कि गया वह अपने पिता को छुड़ाने था,लेकिन लौटा पिता के साथ लाश बन कर !


 तमिलनाडू पुलिस और उसके मुखिया को बताना चाहिए कि लॉकडाउन उल्लंघन के लिए हिरासत में पीट-पीट कर मारने की सजा कब से और कौन से कानून ने निर्धारित की है ?


पुलिस ने जिन धाराओं में जयराज और बेनिक्स पर मुकदमा दर्ज किया,वे बहुत संगीन धाराएँ भी नहीं थी. वे इतनी मामूली धाराएँ थी,जिनके लिए गिरफ्तारी भी जरूरी नहीं थी.उक्त मामले में 188, 269, 294(b), 353 and 506(2) आई.पी.सी. के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. 



इस मामले में सवाल उस न्यायिक मजिस्ट्रेट की कानूनी समझ पर भी हैं,जिसने खून से लथपथ बाप-बेटे को पुलिस की कथा पर भरोसा करते हुए,सौ किलोमीटर दूर जेल भेजा दिया,जबकि नजदीक में जेल थी.


लॉकडाउन काल में पुलिस उत्पीड़न की घटनाएँ देश के विभिन्न हिस्सों से निरंतर सामने आ रही हैं. जयराज-बेनिक्स की हिरासत में मौत की यह घटना लॉकडाउन के दौरान पुलिस उत्पीड़न की घटनाओं का चरम है. इस मसले पर उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह मई में सुप्रीम कोर्ट गए थे.अपनी जनहित याचिका में डॉ.विक्रम सिंह ने कहा था कि 23 मार्च से 13 अप्रैल के बीच दिल्ली के 50 पुलिस थानों में 188 आई.पी.सी. के तहत 848 मुकदमें दर्ज किए गए. उत्तर प्रदेश में 48503 लोगों के खिलाफ 15378 एफ.आई.आर. दर्ज की गयी.अपनी याचिका में विभिन्न कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए डॉ.विक्रम सिंह ने उक्त धारा में दर्ज एफ.आई.आर. रद्द करने की मांग की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उक्त याचिका यह कहते हुए रद्द कर दी कि सुप्रीम कोर्ट, “सुपर सरकार” नहीं बन सकता. शायद सुप्रीम कोर्ट ने उक्त याचिका में उठाए गए सवालों की गंभीरता को समझा होता तो नौबत साथानकुलम की घटना तक नहीं पहुँचती.


हमारे देश में पूरी कानूनी प्रणाली की दशा गज़ब है. निचली अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक हत्या का अपराधी सिद्ध हो चुका धनाढ्य पिता की संतान मनु शर्मा कोरोना काल में  जेल में भीड़भाड़ कम करने और अच्छे आचरण  के नाम पर जेल से छूट जाता है और जयराज व बेनिक्स, कोरोना काल में दुकान 15 मिनट देर तक खोलने के लिए हिरासत में कत्ल कर दिये जाते हैं ! फिर भी दावा यह है कि कानून की निगाह में सब समान हैं ?  

   

लगभग आधी शताब्दि पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के नयायमूर्ति अवध नारायण मुल्ला ने अपने एक फैसले में पुलिस पर टिप्पणी करते हुए लिखा था- There is not a single lawless group in the whole of the country whose record of crime comes anywhere near the record of that single organised unit which is known as the Indian police force.... ” यानि पूरे देश में अपराधियों का कोई एक समूह नहीं है, जिसके अपराधों का रिकॉर्ड उस एक संगठित इकाई के अपराधों के आसपास भी ठहरता हो, जिसे भारतीय पुलिस फोर्स के नाम से जाना जाता है. साथानकुलम की घटना ने इस उक्ति को पुनः सच सिद्ध किया और यह भी स्थापित कर दिया कि वीभत्सता और क्रूरता के मामले में तमिलनाडू की पुलिस ने अपराधियों को मात दे दी !



-इन्द्रेश मैखुरी 

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1 Comments

  1. ह्रदय विदारक घटना है यह, लोकतंत्र पर कलंक

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