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पुलिस का एक चेहरा ऐसा भी !

कोरोना के माहौल में देश भर में गरीब मजदूरों से जालिमाना तरीके से निपटते हुए पुलिस की कई तस्वीरें और विडियो सामने आए. ये पुलिस का वो क्रूर चेहरा सामने लाते हैं जो अँग्रेजी राज के जमाने से इस देश में कायम है. पुलिस और यह क्रूरता एक तरह से पर्यायवाची सी है.

लेकिन इस महामारी के आपदा काल में पुलिस का ऐसा चेहरा भी सामने आया है,जो पुलिस के परंपरागत क्रूर चेहरे के विपरीत है. हालांकि वह क्रूर चेहरा भी हकीकत है और मानवीय चेहरा भी सच्चाई है. बहरहाल थोड़ी चर्चा पुलिस के मानवीय चेहरे की करते हैं.

देश भर में कोरोना से निपटने के लिए किए गए लॉकडाउन की सीधी मार गरीब मजदूर तबके पर पड़ी है. इस तबके की हालत-रोज कुआं खोदो,रोज पानी पियो-वाली है. लॉकडाउन हो गया तो काम मिलना बंद हो गया,काम बंद हो गया तो आय का कोई साधन न रहा और कुछ ही दिनों में भूखों मरने की नौबत आ गयी. इसीलिए हजारों की तादाद में मजदूर सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर स्थित अपने स्थायी ठिकानों की ओर पैदल ही चल पड़े. लेकिन मजदूरों का एक हिस्सा जहां था,वहीं फंसा रह गया.

ऐसा ही मजदूरों का एक समूह देहारादून के भानियावाला में है. इनके पास जो भी राशन पानी था, धीरे-धीरे करके वह खत्म हो गया और फाका करने की नौबत आ गयी. ये सभी मजदूर बिहार के पश्चिमी चंपारण के हैं.

भाकपा(माले) द्वारा राशन-पानी का अभाव झेलते मजदूरों की सहायता के लिए एक व्हाट्स एप्प ग्रुप बनाया गया है. इस ग्रुप में देश भर में विभिन्न जगहों पर फंसे मजदूरों के संदर्भ में सूचना और कार्यवाही का काम निरंतर,लगभाग चौबीसों घंटे चलता रहता है. इसी ग्रुप के जरिये एक दिन इन मजदूरों के संदर्भ में मेरे पास संदेश आया. यह उस दिन की बात है जब इन मजदूरों के पास उस शाम भर का खाने का सामान था. पार्टी की केन्द्रीय कमेटी के सदस्य कॉमरेड संजय शर्मा और कॉमरेड राजेन्द्र प्रथोली ने फोन करके भी इन मजदूरों के लिए सहायता का बंदोबस्त करने को कहा.

मेरी समझदारी यह है कि ऐसे मौकों पर प्रशासनिक मदद ही ज्यादा कारगर और विश्वसनीय होती है. अतः उत्तराखंड पुलिस की वैबसाइट से मैंने डोईवाला के कोतवाल का नंबर निकाला. प्रसंगवश यह भी कहना है कि फोन नंबर आदि सूचनाओं के मामले में उत्तराखंड पुलिस की वैबसाइट काफी जानकारीपरक और यूजर फ्रेंडली है.

उत्तराखंड की पुलिस की वैबसाइट से डोईवाला के कोतवाल का नंबर निकाल कर मैंने उन्हें फोन किया. फोन पर जो सज्जन थेउन्होंने मजदूरों को अगली सुबह कोतवाली भेजने को कहा. पर पता नहीं क्यूँ, मैं बहुत आश्वस्त नहीं था. सोचने लगा क्या किया जाये. फिर मुझे ख्याल आया कि उत्तराखंड सरकार ने आई.पी.एस. अफसर अजय सिंह को कोरोना कहर से निपटने के लिए बनाए गए कंट्रोल रूम का इंचार्ज बनाया है. अजय सिंह चूंकि पूर्व में रुद्रप्रयाग जिले के एस.पी रहे थे तो रुद्रप्रयाग के एक युवा पत्रकार मित्र से उनका नंबर लिया. उन्हें फोन करके मजदूरों की समस्या बताई. अजय सिंह ने आश्वस्त किया कि मजदूरों की मदद हो जाएगी. थोड़ी देर में डोईवाला के कोतवाल का पुनः फोन आया,उन्होंने पूछा-आपकी अजय सिंह साहब से भी बात हुई,मैंने कहा हाँ. वे बोले कल दस बजे मजदूरों को कोतवाली भिजवा दीजिएगाउन्हें राशन मिल जाएगा. अगले दिन मजदूरों को राशन मिल गया.

एक अन्य मामले में देहारादून में रहने वाले एक मित्र की माता जी गाँव में बीमार थी और ये मित्र उन्हें लेने जाना चाहते थे. इनका गाँव कर्णप्रयाग के नजदीक है. मैंने गढ़वाल जोन के आई.जी. अजय रौतेला को फोन करके समस्या बताई तो उन्होने व्यवस्था करवा दी और वो मित्र गांव से अपनी माता जी को देहारादून ले आए.

एक अन्य मामले में एक साथी ने फोन करके बताया कि हिमाचल प्रदेश में हाइड्रोपावर सैक्टर में इंजीनियर एक युवक ऋषिकेश से अपने घर लैंसडाउन जाना चाहता है. पर दो दिन से प्रशासन उसकी बात सुन ही नहीं रहा है. मैं विभिन्न विकल्प आजमा रहा था. तभी फेसबुक पर नरेंद्रनगर के सी ओ प्रमोद साह का पोस्ट देखा,जिसमें उन्होंने यात्रा संबंधी दिक्कत होने पर मदद की बात लिखी थी. मैंने उन्हें फोन किया तो उन्होंने बेहद सकारात्मक और आश्वस्तकारी  प्रतिक्रिया दी.

इन सभी मामलों में पुलिस ने न केवल मदद की, बल्कि मामला उनके पास पहुँच जाने के बाद “मुद्दई सुस्त,गवाह चुस्त”, वाली बात हो गयी. मजदूरों के मामले में अगली सुबह ही अजय सिंह ने अपनी तरफ से मैसेज करके मजदूरों के संदर्भ में जानकारी मांगी. डोईवाला के कोतवाल के पास जब मजदूर अपनी हिचक और संशय के चलते नहीं पहुंचे तो वे लगातार व्हाट्स एप्प पर मैसेज भेज कर मजदूरों को भेजने के लिए कहते रहे. गढ़वाल जोन के आई.जी. अजय रौतेला भी मैसेज करके उक्त मित्र के डीटेल मांगते रहे और वे अपनी तरफ से अतिरिक्त चिंता और सक्रियता उक्त मामले में बरतते रहे.

इस मामले में यह भी गौरतलब है कि डोईवाला के कोतवाल का तो मैं नाम भी नहीं जानता था. जब मजदूरों को दो बार राशन मिल गया,तब एक पत्रकार मित्र से मैंने उनका नाम जानने के लिए फोन किया. जो आदमी मजदूरों को दो बार राशन दिलवा चुका है और कह रहा है कि जरूरत होगी तो फिर इंतजाम कर देगा,उसका नाम तो पता होना ही चाहिए. तो पता चला कि उनका नाम-प्रदीप बिष्ट है.

आई.पी.एस. अफसर अजय सिंह से उस दिन, पहली बार ही मेरी फोन पर बात हुई. उससे पहले तो देहरादून में जब वे नियुक्त थे तो कई आंदोलनों में बैरिकेडों पर उन्होंने काले चश्मे की भीतर से घूरते हुए देखा और हमने बिना चश्में के, जवाब में उनको घूरा.लेकिन इस मामले में कार्यवाही के प्रति अजय सिंह न केवल काफी तत्पर थे बल्कि संवेदनशील भी थे.

आई.जी. अजय रौतेला से पहली मुलाकात आंदोलन के बैरिकेड पर हुई थी.सालों-साल से बात-मुलाक़ात कुछ भी नहीं थी. इस मामले में अपनी माता जी के लिए जितना वो मित्र चिंतित थे,रौतेला जी भी कुछ कम चिंतित नहीं थे.

केवल नरेंद्रनगर के सी.ओ. प्रमोद साह ही ऐसे व्यक्ति हैं जिनसे सोशल मीडिया में गाहे-बगाहे मुलाक़ात होती रहती है और आभासी दुनिया से बाहर भी कभी-कभी मुलाक़ात हो जाती है.  
जब वह मित्र अपनी माता जी को गाँव से देहारादून ले आया तो आई.जी. अजय रौतेला से मैंने कहा- धन्यवाद.  वे बोले धन्यवाद किस बात का,इंसान होने के नाते हम, दूसरे इंसान के जितने काम आ सकते हैं,उतना तो आना ही चाहिए.

दरअसल पुलिस की वर्दी को ऐसी इंसानियत की जरूरत है,तभी उसके भीतर पैठे हुए  औपनिवेशिक काल के कठोर चेहरे से मुक्ति मिल सकेगी. इस सिलसिले में पुलिस सुधार की बात लंबे अरसे से होती रहती है. सुधार की दरकार इसलिए भी है कि पुलिस की मनुष्यता पूर्ण कार्यवाहियाँ अपवाद नहीं नियम हो.

पंजाब के क्रांतिकारी कवि पाश तो पुलिस से मनुष्य होने का आह्वान करते हुए अपनी कविता
                          “पुलिस के सिपाही से ”  
में बहुत पहले लिख गए :

मैं उस रौशनी के बुर्ज तक
अकेला नहीं पहुँच सकता
तुम्हारी भी जरूरत है
तुम्हें भी वहाँ पहुँचना होगा
हम एक काफिला हैं
ज़िंदगी की तेज ख़ुशबुओं का
तुम्हारी पीढ़ियों की खाद
इसके चमन में लगी है
हम गीतों जैसी गजर के बेताब आशिक हैं
और हमारी तड़प में
तुम्हारी उदासी का नगमा भी है !  

·    इन्द्रेश मैखुरी   

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2 Comments

  1. पुलिस का ये रूप ही अवाम को दिखता मिले ताकि अवाम भी अपने आपको सुरक्षित महसूस कर सके

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  2. कुछ इसी तरह की तस्वीर यहाँ हल्द्वानी में भी नजर आई इस दौरान, एक 70 वर्षीय बुजुर्ग दंपती भीमताल में बिना दवाइयों के फंसे रह गए थे, उनका इलाज दिल्ली से चल रहा है, और उनके पास केवल 2 दिन की दवाईयां शेष रह गयी थी। वो इन दवाइयों की चिंता में बहुत परेशान थे, घर मे और कोई था नहीं जो इंतजाम कर पाता। वो दवाइयों से ज्यादा इन हालातों की वजह से चिंता और घबराहट से बहुत व्याकुल थे। उनसे मेरा परिचय कुछ दिनों पहले तब हुआ जब वो अपना चश्मा बनवाने मेरी दुकान पर आए थे। उन्होंने इस उम्मीद से मुझसे मदद मांगी क्योंकि शायद उन्हें मालूम था कि मैं हल्द्वानी से रोज भीमताल आता जाता हूँ, और मैं जरूर उनको उपलब्ध करा दूँगा।
    लेकिन लॉकडाउन की वजह से पिछले इतने दिनों से मेरा भी बाहर निकलना बंद हुआ पड़ा था, मन बहुत विचलित था कि मैं उनको सहायता नहीं कर पा रहा। अपने मित्र पृथ्वी दा को जब फोन कॉल के दौरान अपनी व्यथा बताई तब उन्होंने मुझे ये राह सुझाई, दरअसल हल्द्वानी पुलिस महकमे में एस पी सिटी श्री अमित श्रीवास्तव तेज तर्रार अधिकारी होने के साथ साथ बहुत अच्छे साहित्यकार और लेखक भी हैं, और अपनी साहित्यिक अभिरुचि के चलते उनके अच्छे मित्र भी रहे हैं। तो पृथ्वी जी ने बताया कि वो इस मामले में बहुत मददगार साबित हो सकते हैं, उनका फोन नम्बर उपलब्ध कराया तथा उनको वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुवे सहायता मांगी।
    अमित जी ने तत्काल अपने पुलिस नेटवर्क के द्वारा जो पुलिस टीम के सदस्य इस बीच मे उस तरफ को निकलने वाले थे उनके द्वारा उन इमरजेंसी दवाइयों को बुजुर्ग दंपति तक पहुँचाने की व्यवस्था की। वाकई में ये सब अनुभव पुलिस का बहुत अच्छा चेहरा सामने लाते हैं।

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