बीते शुक्रवार को देहरादून के एक बिल्डर सतेंद्र साहनी
उर्फ बाबा साहनी ने एक भवन की आठवीं मंज़िल से कूद कर आत्महत्या कर ली.
सतेंद्र साहनी ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि
वे 32 साल से कंस्ट्रक्शन के कारोबार में हैं और उन्होंने हर प्रोजेक्ट समय पर करके
दिया है. आत्महत्या करने की परिस्थितियों का जिक्र करते हुए साहनी ने लिखा है कि उन्हें
दो प्रोजेक्ट मिले थे. इतने बड़े प्रोजेक्ट के लिए उनके पास पैसे नहीं
थे. लेकिन उन्होंने अपनी साख के दम पर जमीन के मालिकों को इस बात के लिए राजी कर लिया
कि वे प्रोजेक्ट उन्हें दे दें. इन प्रोजेक्टों
की योजना बनाते वक्त बलजीत सोनी ने उनकी मुलाक़ात डालनवाला में रहने वाले अनिल गुप्ता
से कराई. सतेंद्र साहनी आगे जो लिखते हैं, उसका लब्बोलुआब यह है
कि शुरू में तो अनिल गुप्ता के साथ सब ठीक चला, अनिल गुप्ता ने
उनसे कंपनियों में हस्तक्षेप न करने का वायदा किया और प्रोजेक्ट में जितना पैसा लगेगा, उसका 85 प्रतिशत निवेश करने का भरोसा दिलाया.
सतेंद्र साहनी लिखते हैं कि जैसे ही दोनों प्रोजेक्टों
का डेवपमेंट एग्रीमेंट की रजिस्ट्री हो गयी, वैसे ही अनिल गुप्ता
ने बात करना बंद कर दिया और अनिल गुप्ता की जगह हर मामले में अजय गुप्ता ने हस्तक्षेप
करना शुरू कर दिया. गौरतलब है कि अजय गुप्ता के बहनोई हैं अनिल गुप्ता. सतेंद्र साहनी
अपने सुसाइड नोट में लिखते हैं कि अजय गुप्ता ने लगातार दबाव बनाना शुरू किया. अजय
गुप्ता लगातार धमकाते थे कि गूगल पर चेक करके देख लो कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में
क्या किया है !
साभार : अविकल उत्तराखंड
यूं तो उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों और खास तौर पर देहरादून
में जमीन संबंधी विवाद रोज़मर्रा की बात होती जा रही है. कौन,किसकी जमीन,किस-किस को, कितनी बार
बेच देगा, इसका कोई हिसाब नहीं है ! एक ही जमीन की कितनी बार
रजिस्ट्री हो जाएगी, इसका भी कोई पता नहीं ! जमीन सिमटती जा रही
है और उसे चाहने वालों और उसके नाम पर फर्जीवाड़ा करने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है.
लेकिन सतेंद्र साहनी आत्महत्या प्रकरण, जमीन के धंधे में अपराध का एक नया कोण सामने रखता है. इसमें जमीन के धंधे
के अंदरूनी सतह पर पनप रहे अपराध की झलक देखी जा सकती है. वह अपराध जिसमें बनाई-बनाई
कंपनी को हड़पने के लिए इस हद तक जाया जा सकता है कि एक व्यक्ति के पास अपनी कंपनी, धमकाने वालों को सौंपने या फिर अत्महत्या करने का ही विकल्प शेष रह जाये
!
बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के धंधे में पनप रहे अपराध की चेतावनी तो यह प्रकरण देता ही है, लेकिन इस प्रकरण में जिन पात्रों के नाम सामने आए हैं, वे भले ही उत्तराखंड के सत्ता प्रतिष्ठान के प्रिय हों पर उत्तराखंड राज्य के लिए खतरे की घंटी एक बार फिर बजी है !
सतेंद्र साहनी आत्महत्या के मामले में पुलिस ने अजय गुप्ता
और उनके बहनोई अनिल गुप्ता को सतेंद्र साहनी के सुसाइड नोट और उनके बेटे द्वारा दर्ज
एफ़आईआर के आधार पर गिरफ्तार किया है.
अजय गुप्ता, उन कुख्यात गुप्ता बंधुओं
की तिकड़ी में से सबसे बड़े हैं, जिन पर दक्षिण अफ्रीका में भीषण
भ्रष्टाचार का आरोप लगा था. भ्रष्टाचार का वह कारनामा इतना बड़ा था कि उसे दक्षिण अफ्रीका
में कहा गया- स्टेट कैप्चर ! इसका हिन्दी में अर्थ है राज्य पर कब्जा यानि पूरी सरकार
पर कब्जा. वास्तव में गुप्ता बंधुओं ने दक्षिण अफ्रीका की पूरी सरकार पर ही कब्जा कर
लिया था. आरोप है कि गुप्ता
बंधुओं ने तत्कालीन राष्ट्रपति जैकब जुमा से निकटता का लाभ उठाते हुए 500 बिलियन
रैंड यानि लगभग 37 बिलियन डॉलर, दक्षिण अफ्रीका के सरकारी खजाने से भ्रष्ट
तरीकों से हड़प लिए. जैकब जुमा के साथ गुप्ता बंधुओं के भ्रष्ट गठबंधन को लोगों ने
दक्षिण अफ्रीका में- जुप्तास- नाम दिया.
गुप्ता बंधुओं के साथ इस घोटाले के सामने आने के बाद
जैकब जुमा को 2018 में राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा और उन्हें जेल भेज दिया गया.
अपने भ्रष्ट कारनामों की पोल खुलती देख गुप्ता बंधु
यानि अजय गुप्ता, राजेश
गुप्ता और अतुल गुप्ता दक्षिण अफ्रीका से भाग कर दुबई चले गए. वे दक्षिण अफ्रीका में
अब भी वांछित आर्थिक भगौड़े हैं. गुप्ता बंधुओं के वापस दक्षिण अफ्रीका प्रत्यर्पण के
लिए वहाँ की सरकार 2018 से प्रयास कर रही है. इसी के लिए 2021 में दक्षिण अफ्रीका ने
संयुक्त अरब अमीरात से प्रत्यर्पण संधि भी की.
दक्षिण अफ्रीका
के आर्थिक भगौड़े गुप्ता बंधुओं पर उत्तराखंड की भाजपा
सरकार निरंतर मेहरबान रही है. 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने इन
गुप्ता बंधुओं के दो पुत्रों के विवाह के लिए औली का बुग्याल दे दिया. जून 2019 में
अजय गुप्ता और अतुल गुप्ता के दो बेटों की शादी औली में आयोजित हुई. इस शादी के आयोजन
पर दो सौ करोड़ रुपया खर्च होना बताया गया. उस समय भाजपा द्वारा बनाए गए मुख्यमंत्री
त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि वे औली को वैडिंग डेस्टिनेशन बनाना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने
गुप्ता बंधुओं की शादी वहां करवा दी ! इस शादी के लिए औली को
तहस-नहस किया गया. लेकिन उक्त शादी करवाने के भाजपा की त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व
वाली सरकार इस हद तक चली गयी कि उच्च न्यायालय में त्रिवेन्द्र रावत सरकार ने औली को
बुग्याल मानने से ही इंकार कर दिया.
सोचिए कि दक्षिण अफ्रीका के आर्थिक अपराध के भगौड़ों के
दम पर औली को वैडिंग डेस्टिनेशन बनाने चली थी, भाजपा की त्रिवेंद्र
रावत के नेतृत्व वाली सरकार !
लेकिन भाजपा सरकार की दक्षिण अफ्रीका के आर्थिक अपराध
के भगौड़ों पर मेहरबानी यहीं पर नहीं रुकी बल्कि इनको भाजपा सरकार ने ज़ेड प्लस सुरक्षा
दी हुई थी. और यह मेहरबानी तब है जबकि ये कुख्यात गुप्ता बंधु उत्तराखंड के रहने वाले
भी नहीं हैं. वे उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के रहने वाले हैं. गुप्ता बंधुओं पर भाजपा
सरकार की इस कुल मेहरबानी की जांच होनी चाहिए कि आखिर इसके पीछे कोई आर्थिक स्वार्थ
तो नहीं छुपा हुआ है. उत्तराखंड में उनके कारोबारों का भी खुलासा होना चाहिए और यह
भी स्पष्ट होना चाहिए कि उन्हें किसका संरक्षण हासिल था.
आखिर गुप्ता बंधुओं को हासिल भाजपा सरकार के इस अप्रत्याशित
संरक्षण के चलते ही तो वे सतेंद्र साहनी को धमकाने की इस हद तक जा पाये कि अंततः साहनी
को अपनी जीवनलीला ही समाप्त करनी पड़ी ! दक्षिण अफ्रीका के आर्थिक अपराध के भगौड़ों को
उत्तराखंड में अपराध करने के लिए खुला छोड़ने से बेहतर है कि उन्हें दक्षिण अफ्रीका
को सौंप दिया जाये ताकि वे शेष जीवन वहां की जेलों में ही काटें !
-इन्द्रेश मैखुरी
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