कामरेड महेंद्र सिंह एकीकृत बिहार और बाद में झारखंड की विधानसभा में भाकपा(माले) के विधायक थे.1990 में पहली बार विधायक चुने जाने के बाद वे अपने जीवन के अंतिम दिन तक विधायक चुने जाते रहे.झारखंड की विधानसभा में आधिकारिक रूप से विपक्ष के नेता का दर्जा उन्हें हासिल नहीं था.पर विपक्ष के नेता की भूमिका उन्होंने विधानसभा के भीतर और बाहर बखूबी अदा की.
झारखंड सरकार ने विधायकों की तनख्वाह बढ़ाने की कोशिश की तो उन्होंने सदन में उसका विरोध किया.विधानसभा में विभिन्न विभागों द्वारा अपना बजट पास कराने के लिए बांटे जाने वाले तमाम उपहारों का उन्होंने हमेशा विरोध किया.विधायक निधि के कामों में कौन विधायक कितना कमीशन खाता है,इसकी सूची तक महेंद्र सिंह विधानसभा में ले आये.झारखण्ड विधानसभा में पेश की गई इस सूची में तमाम अन्य विधायकों के अलावा तब के विधानसभा अध्यक्ष द्वारा लिए गए कमीशन का भी ब्यौरा था.
ऐसा व्यक्ति जो सत्ता की हर काली करतूत का खुलासा कर दे,उसे खामोश करने का,हत्या के अलावा सत्ता के पास और क्या रास्ता हो सकता है?और यही महेंद्र सिंह के साथ हुआ.16 जनवरी 2005 को उनकी हत्या कर दी गयी.
महेंद्र सिंह विधानसभा के चुनाव प्रचार में एक सभा संबोधित करके निकल रहे थे.अचानक दो बंदूकधारी मोटरसाइकिल पर आए.उन्होंने पूछा-महेंद्र सिंह कौन है?अज्ञात बंदूकधारियों को देखते ही उनकी मंशा समझ ली गयी.पर महेंद्र सिंह बिना किसी भय के बोले-मैं महेंद्र सिंह हूँ. हत्यारों ने उन पर ताबड़तोड़ गोलियां दागी और फरार हो गए.
जन आंदोलन के दबाव में उनको हत्या की सी.बी.आई. जांच की घोषणा हुई पर हत्यारे कानून की गिरफ्त से बाहर ही रहे.सरकारी तोता मालिकों से पूरी वफादारी जो निभाता है!
कॉमरेड महेंद्र सिंह को लाल सलाम!
- इन्द्रेश मैखुरी
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