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सिफ़ारिश एक्ट की धाराओं में गोता लगाओ, ट्रांस्फर का भवसागर तर जाओ !

 









उत्तराखंड के सरकारी महकमों में और खास तौर पर शिक्षा विभाग में ट्रांस्फर सर्वाधिक चर्चा का विषय है. इस पर कैसे एक्ट किया जाये, इसके लिए धूमधाम से एक एक्ट बना. बड़ी वहावाही हुई साहब, गाजे-बाजे खूब बजे.


यह एक्ट त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री रहते बना. लेकिन एक्ट पर एक्ट करने की हिम्मत त्रिवेंद्र भाई भी न जुटा सके. इसलिए एक्ट बेचारा उतना भी न चल सका, जितना कि त्रिवेंद्र भाई का मुख्यमंत्री काल.


बेचारे बनने के साथ ही ठंडे बस्ते में चला गया. उत्तराखंड जैसे बर्फीले पहाड़ों वाले प्रदेश में कोई कानून ठंडे बस्ते में चला जाएगा तो सोचिए कि उसका क्या हाल होगा ! उसकी बेचारे की पहले कंपकंपी छूटेगी और फिर प्राण. ट्रांस्फर एक्ट भी बेचारा ठंडे बस्ते में पड़ा-पड़ा ठंडा पड़ गया.


लेकिन ट्रांस्फर एक्ट ठंडा पड़ा है, ट्रांस्फर और अटैचमेंट का कारोबार नहीं. वह बदस्तूर जारी है. कल ही अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री महोदय की पत्नी को पिथौरागढ़ के जुम्मा से सीधा देहरादून ले आया गया है.








वर्तमान सत्ता के चाल,चरित्र,चेहरे को देखते हुए उनको देहरादून लाये जाने पर आश्चर्य नहीं करना चाहिए, आश्चर्य तो इस बात पर है कि  सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री की पत्नी होने के बावजूद वे अब तक पिथौरागढ़ के जुम्मा में तैनात थीं.


जैसा कि पहले जिक्र किया जा चुका है कि ट्रांस्फर एक्ट तो कब का ठंडा चुका है. सिर्फ नोटबंदी ही ऐसा एकलौता कृत्य नहीं है, जिसका भाजपाई अब भूले से भी नाम नहीं लेते. ट्रांस्फर एक्ट भी उसी श्रेणी का कृत्य है.


समझदार लोग तो जानते हैं पर कुछ नादान लोग हैं, जो कुछ नहीं समझते, वे तो पूछेंगे कि जब ट्रांस्फर एक्ट, ठंडे बस्ते में ठंडा पड़ चुका है तो फिर सांसद जी की पत्नी के ट्रांस्फर का एक्ट, किस एक्ट के तहत हुआ ?


जाहिर सी बात है कि ऊंची पहुँच किसी एक्ट की मोहताज नहीं होती, वह अपने आप में अलिखित कानून है. बाकी इस देश में किसी भी कानून का चूँ-चूँ का मुरब्बा बन सकता है पर सिफ़ारिश का जो एक्ट है, वो हर एक्ट पर भारी है. सिफ़ारिश का एक्ट, ब्रिटेन के संविधान जैसा है. कहीं लिखा नहीं है, लेकिन फिर भी प्रभावी है ! तबादला सीजन नहीं है फिर भी सैकड़ों किलोमीटर दूर तबादला हो जाएगा. तबादले का आदेश ऐसा निकलेगा कि आदमी चक्कर में पड़ जाएगा कि तबादला है कि प्रतिनियुक्ति है क्यूंकि आदेश में तो दोनों ही लिखा है !


अभी कुछ दिन पहले मेरे फेसबुक के मेसेंजर में दो शिक्षकों के संदेश आए, जो बता रहे हैं कि कई-कई बार फॉर्म भरने के बाद भी उनके नियमसम्मत तबादले नहीं हो रहे हैं. मुमकिन हैं कि उन शिक्षकों के तबादले लिखित कानून के हिसाब से नियम सम्मत होंगे. लेकिन जो अलिखित एक्ट है, जिस पर असल एक्ट होना है,यानि सिफ़ारिश एक्ट, उसके दायरे में नहीं आ रहे होंगे ऐसे तबादले ! इसलिए बरसों-बरस से ट्रांस्फर की बाट जोह रहे शिक्षक मित्रो, तबादला कानून और उसकी धाराओं में अपने तबादले की राह मत तलाशो. सिफ़ारिश एक्ट की धाराओं में गोता लगाओ और ट्रांस्फर का भवसागर तर जाओ !


-इन्द्रेश मैखुरी  

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