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उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत बयां करती सीएजी रिपोर्ट

 







 

 

एक समय इस देश में सीएजी की रिपोर्ट बड़ी चर्चा का विषय बनती थी. लेकिन बीते कुछ वर्षों से सरकार, मीडिया आदि ने इन रिपोर्टों को तवज्जो देना लगभग बंद कर दिया है या काफी कम कर दिया है. लेकिन उसके बावजूद सीएजी की रिपोर्टों से सरकारी कामकाज की हकीकत का अंदाज तो लगता ही है.


ऐसी ही एक रिपोर्ट सीएजी ने उत्तराखंड की स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर दी है. यह रिपोर्ट 2014 से 2019 तक उत्तराखंड के विभिन्न अस्पतालों और स्वास्थ्य व्यवस्था का परफॉर्मेंस ऑडिट यानि प्रदर्शन संप्रेक्षण है. यह 2021 में उत्तराखंड के संदर्भ में सीएजी की पहली रिपोर्ट है.






उक्त रिपोर्ट को देखें तो स्पष्ट होता है कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर सरकारों का बेहद कामचलाऊ और लापरवाह रवैया है.


रिपोर्ट कहती है कि उत्तराखंड सरकार ने सरकारी अस्पतालों में मिलने वाली सेवाओं और अस्पतालों को संसाधन मुहैया करवाने के संदर्भ में कोई मानक ही निर्धारित नहीं किए हैं. जाहिर सी बात है कि जब कोई मानक नहीं हैं तो मानक के आधार पर सेवाओं के खराब या अच्छे होने के संबंध में कोई राय भी नहीं बनाई जा सकती.


भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता के मामले में इंडियन पब्लिक हैल्थ स्टैंडर्डस (आईपीएचएस) नाम से मानक जारी किए हैं. रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड सरकार ने न आईपीएचएस के मानकों को अपनाया और ना ही अपने मानक निर्धारित किए.


रिपोर्ट के अनुसार जिन अस्पतालों का सीएजी ने निरीक्षण किया, उन अस्पतालों में डाक्टरों और नर्सों की संख्या में भारी अंतर था और इस संख्या का अस्पताल में उपलब्ध बेड्स से कोई संबंध नजर नहीं आ रहा था यानि डाक्टर-नर्सों की संख्या अस्पताल में उपलब्ध बेड्स के अनुपात में नहीं थी.


पर्वतीय क्षेत्रों और मैदानी क्षेत्रों में विशेषज्ञ डाक्टरों की उपलब्धता के अंतर को सीएजी ने भी अपनी रिपोर्ट में रेखांकित किया है. रिपोर्ट के अनुसार कान,नाक, गला(ईएनटी) के डाक्टर, स्वीकृत पद होने के बावजूद पहाड़ के अस्पतालों में तैनात नहीं हैं, जबकि मैदानी क्षेत्रों के अस्पतालों में वे पदों की स्वीकृत संख्या के अनुपात में तैनात हैं. पहाड़ के अस्पतालों में हड्डी रोग विशेषज्ञ, स्वीकृत पदों के संख्या के अनुपात में केवल पचास प्रतिशत ही तैनात हैं. रिपोर्ट के अनुसार मैदान के अस्पतालों में जनरल सर्जन, स्वीकृत पदों से अधिक संख्या में तैनात हैं.


 रिपोर्ट के अनुसार अस्पतालों में कुल ओपीडी के मुक़ाबले स्त्री रोग विभाग और जनरल मेडिसिन विभाग में मरीजों का दबाव अधिक है. भारी भीड़ के चलते स्त्री रोग विभाग में 47 प्रतिशत मरीजों को और जनरल मेडिसिन विभाग में 75 प्रतिशत मरीजों को डाक्टर पाँच मिनट से कम वक्त दे पाते हैं.


सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि उत्तराखंड में सरकारी अस्पताल से मुफ्त दवाएं मिलने की दर बेहद कम है और 59 प्रतिशत ओपीडी मरीजों को दवाएं अपने खर्च पर खरीदनी पड़ती हैं.


सीएजी रिपोर्ट कहती है कि जिन सरकारी अस्पतालों की उन्होंने जांच की, उनमें पैथोलॉजी सेवाओं की हालत संतोषजनक नहीं थी. आईपीएचएस के पैमाने के अनुसार जिला अस्पतालों में 60 आवश्यक पैथोलॉजी उपकरण होने चाहिए. लेकिन जिन अस्पतालों का सीएजी ने निरीक्षण किया उनमें पैथोलॉजी उपकरण की कमी 48 से 78 प्रतिशत तक पाई गयी. रिपोर्ट में सरकारी अस्पतालों की पैथोलॉजी सेवाओं की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाया गया है. रिपोर्ट के अनुसार जिन सरकारी अस्पतालों का सीएजी ने निरीक्षण किया,उनमें से किसी ने 2014 से 2019 के बीच अपनी पैथोलॉजी सेवाओं की गुणवत्ता का बाहरी गुणवत्ता एजेंसी से प्रमाणन नहीं करवाया.


सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि जिन अस्पतालों का उन्होंने परीक्षण उन्होंने किया, वो अस्पताल 2014 से 2019 के बीच दुर्घटना व ट्रॉमा सेवाएँ तथा मनोचिकित्सीय सेवायें उपलब्ध करवाने में नाकाम रहे और डायलिसिस सेवा भी वहां उपलब्ध नहीं थी. आपातकालीन सेवाओं के लिए आवश्यक दवाओं की विभिन्न अस्पतालों में 25 से 85 प्रतिशत तक कमी, सीएजी द्वारा की गयी जांच की अवधि के दौरान पायी गयी, जबकि ऑपरेशन थिएटर के लिए आवश्यक दवाओं में इस दौरान 26 से 74 प्रतिशत तक कमी पायी गयी. आपातकालीन सेवाओं के लिए आवश्यक 14 प्रकार के  उपकरणों में 29 से 64 प्रतिशत की कमी पायी गयी तो ऑपरेशन थिएटर के लिए आवश्यक 29 प्रकार के उपकरणों की कमी की दर 41 से 69 प्रतिशत तक थी.


रिपोर्ट के अनुसार किसी भी अस्पताल में आपातकालीन सर्जरी की सुविधा उपलब्ध नहीं थी.


रिपोर्ट कहती है कि उत्तराखंड के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा निदेशक द्वारा जो दवाइयाँ, सीएजी की जांच की अवधि के दौरान अस्पतालों को उपलब्ध करवाई जा रही थी, वे अपर्याप्त थी. जिन अस्पतालों की सीएजी ने जांच की,उनमें 18 से 61 प्रतिशत तक दवाओं की कमी पाई गयी.


सीएजी के ऑडिट के पीछे लक्ष्य, सरकारी तंत्र के भीतर व्याप्त कमियों की ओर इंगित करके, सरकारों को उसे दुरुस्त करने के सुझाव देना है. उक्त रिपोर्ट में ऐसे सुझाव दिये भी गए हैं. लेकिन ऐसी रिपोर्टों को पेश कर देने की औपचारिकता निभा कर उन्हें ठंडे बस्ते में डालने का चलन आजकल काफी बढ़ गया है. उत्तराखंड में स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार जैसे मसले चूंकि एजेंडा नहीं बनते तो सरकारों के लिए भी उनसे किनाराकशी करना आसान होता है.


इस रिपोर्ट के आईने में देखें तो उत्तराखंड की स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत बेहद जर्जर है. सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की इस बदहाली की कीमत, उन आम लोगों को ही चुकानी पड़ती है, जो मंहगे प्राइवेट अस्पतालों में इलाज नहीं करवा सकते हैं.  


-इन्द्रेश मैखुरी

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