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एक कायर,हत्यारे का महिमामंडन

 



प्रधानमंत्री जब विदेश जाते हैं तो वे भारत को गांधी और बुद्ध का देश बताते हैं. लेकिन भाजपा और उसके समर्थक  गांधी के हत्यारे के महिमामंडन का अभियान निरंतर चलाये रहते हैं. गांधी जयंती हो,गांधी का शहादत दिवस या फिर ऐसा ही कोई अन्य अवसर ट्विटर,फेसबुक,व्हाट्स ऐप जैसे माध्यमों पर भाजपा और उसके समर्थक गोडसे महिमा गान शुरू कर देते हैं.



आज भी भाजपा के आंध्र प्रदेश के सचिव रमेश नायडू नगोथु ने गोडसे का स्तुति गान करते हुए ट्वीट किया है और गोडसे को महान देश भक्त बताया है. हालांकि बाद में यह ट्वीट डिलीट कर दिया गया.




आज नाथूराम गोडसे को वीर ठहराने वाले इसलिए याद कर रहे हैं क्यूंकि आज ही के दिन यानि 15 नवंबर 1949 को गांधी की हत्या के लिए गोडसे को फांसी चढ़ा दिया गया था. 79 साल के बूढ़े गांधी पर गोली चलाने वालों के इस तथाकथित वीर के बारे में यह याद रखना चाहिए कि आजादी की लड़ाई में इस स्वयंभू वीर और इसके गिरोह ने अंग्रेजों के विरुद्ध गोली चलाना तो दूर बंदूक उठाने का साहस भी नहीं किया. नाथूराम गोडसे का छोटा भाई और गांधी हत्या का एक अभियुक्त गोपाल गोडसे सेना में सिविलियन स्टोर कीपर के तौर पर काम करता था.वह बकायदा छुट्टी की अर्जी दे कर गांधी की हत्या में शामिल होने आया था.  नाथूराम के साथ फांसी चढ़ने वाला नारायण आप्टे 1943 में भारतीय वायु सेना यानि भारत में अंग्रेजों की वायु सेना में भर्ती हुआ था.20 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या की कोशिश करने वाला मदनलाल पाहवा भी इसी दल का सदस्य था. वह स्कूल से भाग कर रॉयल इंडियन नेवी यानि अंग्रेजों की नौ सेना में भर्ती होने गया था. परीक्षा में फेल होने के बाद वह थलसेना में शामिल हुआ. इस तरह देखें तो गांधी की हत्या को देशभक्ति पूर्ण कृत्य ठहराने वाले इन हत्यारों को अंग्रेजों की सेना में भर्ती होने में कोई ऐतराज नहीं था,बल्कि वे प्रयास कर अंग्रेजों की सेना में भर्ती हुए थे.  



गांधी के हत्यारों के असली चेहरे समझने में जो साहित्य मददगार है,उसमें जी.डी.खोसला की एक छोटी पुस्तिका भी है. इस पुस्तिका का नाम है – द मर्डर ऑफ द महात्मा यानि महात्मा की हत्या. जी.डी.खोसला पंजाब उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे. वे उस तीन सदस्यीय खंडपीठ में बतौर न्यायाधीश मौजूद थे,जिस खंडपीठ ने सेशन कोर्ट द्वारा सजा हो जाने के पश्चात गांधी के हत्यारों की अपील सुनी थी.खोसला की उक्त पुस्तक, शिमला में गांधी के हत्यारों के अपील की सुनवाई और फांसी चढ़ने के साथ-साथ इस बात का भी विवरण देती है कि हत्यारों ने गांधी की हत्या का षड्यंत्र कैसे रचा और उसे कैसे अंजाम दिया.



जी.डी.खोसला की किताब में इस बात का उल्लेख है कि नाथूराम को इस बात का भरोसा था कि गांधी की हत्या करने के बावजूद अपने वाक चातुर्य के बल पर गांधी हत्या के प्रति उसके अच्छे मंतव्य को लेकर वह अदालत और सरकार को आश्वस्त करने में कामयाब हो जाएगा और अपने कृत्य को न्यायोचित साबित कर देगा.अदालत में उसने ऐसी कोशिश की भी. लेकिन पहले सेशन कोर्ट और फिर हाई कोर्ट ने उसकी मृत्युदंड की सजा कायम रखी. अदालत में गांधी हत्या के अपने कृत्य को जायज ठहराने के लिए लंबी-चौड़ी तकरीर करने वाले नाथूराम के बदलने और लड़खड़ाने का जिक्र भी जी.डी.खोसला ने किया है. वे लिखते हैं कि यह ज्ञात हुआ कि जेल में अपने अंतिम दिनों में गोडसे को अपने कृत्य पर अफसोस हुआ और उसने घोषणा की कि अगर उसे दूसरा मौका मिले तो वह अपना शेष जीवन शांति के प्रसार और देश की सेवा में बिताना चाहेगा.खोसला लिखते हैं कि जब उसे फांसी चढ़ाने ले जाया जा रहा था तो उसके कदम लड़खड़ा रहे थे,उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थी और उसका गला खुश्क हो रहा था. आज जो गोडसे की घृणा वाले विचार के वाहक हैं,उनके मुंह पर गोडसे के अंतिम समय का यह विवरण एक करारा तमाचा है.



गांधी की हत्या आजाद भारत की पहली आतंकवादी घटना थी और गोडसे उसका मुख्य अपराधी था.सिर्फ हिंसा,घृणा और आतंक के पैरोकारों को ही ऐसे कायर,हत्यारे, वीर और देशभक्त नजर आ सकते हैं.


-इन्द्रेश मैखुरी


यह आलेख पूर्व में लिखित आलेख का किंचित संशोधित रूप है. पूर्व में लिखित आलेख इस लिंक पर पढ़ सकते हैं :https://samkaleenjanmat.in/gandhi-and-his-killers/

 

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