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तबलीगी जमात प्रकरण : ज़िम्मेदारी किस पर आयद होनी चाहिए ?


दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाके में तबलीगी जमात द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम, देश में कोरोना वाइरस के फैलाव का हॉटस्पॉट बताया जा रहा है. खबरों के अनुसार इस मुस्लिम संगठन के  मार्च के पहले-दूसरे हफ्ते के  बीच आयोजित कार्यक्रम में चार हजार से अधिक, देश और विदेश के लोग शामिल हुए. इनमें से कई सारे लोग 24 मार्च को घोषित देशव्यापी लॉकडाउन के बाद भी तबलीग के मुख्यालय यानि मरकज़ में ही थे,जिनको लेकर सोशल मीडिया में “फंसे हुए" और “छुपे हुए” का विमर्श चल रहा है.



कोरोना के कहर से पूरी दुनिया की तरह ही भारत भी प्रभावित है. इस संक्रमण से बचाव के लिए देश में 14 अप्रैल तक का लॉकडाउन किया गया है. लेकिन तबलीगी जमात के कार्यक्रम में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के एकत्र होने और उनमें से कई के कोरोना वाइरस से संक्रमित होने की खबरों ने, मामले को एक अलग ही मोड़ दे दिया है. समाचार चैनलों के हाथ भी, लगता है कि काफी दिनों के बाद कोई सनसनी लगी है,जिसे भुनाने का अवसर, वे किसी सूरत में नहीं चूकना चाहते हैं.

निश्चित ही तबलीगी जमात ने दुनिया भर में कोरोना वाइरस के संक्रमण के फैलने के बीच विदेशियों सहित हजारों लोगों की भागीदारी वाला कार्यक्रम आयोजित करके बड़ी गलती की. चीन में कोरोना के संक्रमण का पता दिसंबर 2019 में चल गया था. चीन से बाहर पहला कोरोना संक्रमण का मामला इस वर्ष 13 जनवरी को थाइलैंड में सामने आया.मलेशिया में भी जनवरी में ही पहला मामला सामने आ चुका था.  मार्च तक तो कोरोना महामारी का रूप ले कर सारी दुनिया में फैल चुका था.पूरी दुनिया में कोरोना के संक्रमण के फैलने और मौतों व मरीजों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी के बीच तबलीगी जमात द्वारा विदेशियों सहित हजारों की तादाद वाला कार्यक्रम आयोजित करना, आपराधिक लापरवाही और नितांत बेवकूफना हरकत थी.

पर सवाल यह है कि क्या यह कार्यक्रम बिना अनुमति के हो रहा था ? बड़ी तादाद में विदेशी नागरिक और वह भी उन देशों के जो कोरोना संक्रमण की चपेट में जनवरी माह में ही आ चुके थे,देश की राजधानी में एक धार्मिक जमावड़े में मौजूद हैं,क्या यह कोई नहीं जानता था ? इस धार्मिक जमावड़े से निकल कर ये विदेशी नागरिक देश के विभिन्न स्थानों में जा रहे हैं,क्या यह भी किसी पुलिस,प्रशासन या इंटेलिजेंस एजेंसी की जानकारी में नहीं था ?
अँग्रेजी न्यूज़ पोर्टल- द क्विंट में अदित्य मेनन ने लिखा है कि 16 मार्च को दस इंडोनेशियाई नागरिकों को तेलंगाना में अस्पताल में भर्ती किया गया.18 मार्च को इनमें से आठ कोरोना संक्रमित पाये गए. लेकिन निज़ामुद्दीन इलाके के इस जमावड़े को लेकर खबर,सनसनी और अफवाहबाजी तो कल से शुरू हुई है. उक्त रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि भारत सरकार 01 फरवरी से अंतराष्ट्रीय उड़ानों से आने वालों पर नजर रखे हुए थी और उनकी जानकारी राज्य के अधिकारियों के साथ साझा कर रही थी. ऐसे में कोरोना संक्रमण के चपेट में आ चुके देशों-थाइलैंड,मलेशिया,इंडोनेशिया आदि के नागरिकों को बड़ी तादाद में देश में आने,धार्मिक जलसे में शामिल होने और देश के विभिन्न हिस्सों में जाने की छूट क्यूँ दी गयी ?

तबलीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल लोगों में से एक 74 वर्षीय व्यक्ति की 26 मार्च को तेलंगाना में मृत्यु हो गयी. यह तेलंगाना राज्य में कोरोना से हुई पहली मौत है. अँग्रेजी न्यूज़ पोर्टल- हफ़्फ़िंगटन पोस्ट के अनुसार उक्त मरीज की मृत्यु के बाद ही उनका कोरोना का टेस्ट किया गया. तेलंगाना के स्वास्थ्य मंत्री ने प्रेस वार्ता में कहा कि मरीज दिल्ली गया था और उसका निमोनिया का इलाज चल रहा था. हफ़्फ़िंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि उक्त व्यक्ति जब दिल्ली से हवाई जहाज से वापस लौटा तो हवाई अड्डे पर उनकी कोई जांच नहीं हुई. उक्त व्यक्ति का बेटा,उन्हें अस्पताल भी ले गया पर उनको आये बुखार का कारण आँख में हुआ संक्रमण माना गया. यह घटना एक बानगी है कि निज़ामुद्दीन की घटना के सनसनी बनने से पहले,उसमें शामिल हुए लोगों के उपचार और आवागमन में पूरी ढील बरती गयी. 
निज़ामुद्दीन में, जहां पर यह जमावड़ा हुआ,वह जगह स्थानीय पुलिस स्टेशन से बमुश्किल 100 मीटर की दूरी पर है. लेकिन तमाम अफवाहबाजी और घृणा अभियान के बीच अभी तक तो ऐसी जानकारी सामने नहीं आई है कि पुलिस ने इस जमावड़े को रोकने की कोई कोशिश की. अलबत्ता सोशल मीडिया में एक पत्र जरूर घूम रहा है,जो तबलीगी जमात की तरफ से हजरत निज़ामुद्दीन के कोतवाल को लिखा गया है. इसमें जमात द्वारा 23 मार्च तक 1500 लोगों को निकालने और 1000 लोगों के मरकज़ में होने का जिक्र है और एस.डी.एम. कार्यालय में वाहनों की अनुमति लंबित होने की बात कही गयी है. पत्र में कोतवाल का सहयोग के लिए धन्यवाद करते हुए,उनके दिशा निर्देश में काम करने की बात भी कही गयी है. अगर यह पत्र वास्तविक है तो इससे इतना तो साफ ही है कि दिल्ली सरकार के प्रशासनिक अधिकारी और दिल्ली पुलिस के अफसर, इस जमावड़े के बारे में सब जानते थे और उन्होंने इसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की.

कोरोना के संक्रमण के भारत में फैलने की शुरुआत के समय सोशल मीडिया में यह मीम और चुटकुला खूब चला कि यह वाइरस न अमीर-गरीब का भेद कर रहा है और न हिन्दू-मुस्लिम का ! लेकिन देश की सड़कों पर लाखों बदहवास गरीबों के भूखे-प्यासे घरों को लौटने के बीच जब कोरोना से निपटने की तमाम तैयारियों पर सवाल खड़े हो रहे हैं,तब लगता है कि धर्म की ही आड़ से  सत्ता का बचाव होगा. इस पूरी महामारी से निपटने की केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों के तौर-तरीके और योजनाएँ सवालों के घेरे में हैं. सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया भर में यह सवाल उठाया जा रहा है कि लाखों मजदूरों को भूख और साधनहीनता के हाल में छोड़ कर कोरोना से कैसे निपटा जाएगा ? सवालों का यह दबाव इतना ज्यादा बन गया कि “मन की बात” कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने “असुविधा” के लिए माफी मांगी.



लेकिन तबलीगी जमात प्रकरण से लगता है कि सत्ता और उसके वैचारिक सहोदर बड़ी राहत महसूस कर रहे हैं. कोरोना के संक्रमण के फैलने की चिंता की जगह, ऐसा शत्रु ढूंढ लेने के उत्साह ने ले ली है,जिसकी आड़ में सब नाकामियों को छुपाया जा सकता है. सामान्य समयों में मोदी जी और इस सत्ता के बराबर शक्तिशाली कोई नहीं है. लेकिन जैसे ही किसी चुनौती से निपटने की नौबत आएगी तो वह षड्यंत्र के सबसे बड़े पीड़ित के रूप में स्वयं को पेश करना शुरू कर देगी, भाजपा की यही मोडस ऑपरेंडी यानि कार्यप्रणाली  है. सोशल मीडिया में प्रचलित जुमले का इस्तेमाल करें तो कह सकते हैं कि सरकार अब तक कोरोना के मामले में फंसी हुई थी और अब धर्म की आड़ में छुप रही है !   
-इन्द्रेश मैखुरी

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